Sunday 6 June 2010

श्री श्री की बाते

डार कोंसीटीच्युशन हॉल
वाशिंगटन डी सी,
अप्रैल २५,२०१०
'आर्ट ऑफ़ लिविंग' में हम एक योजना को लागु करने के लिए इन्तजार नहीं करते हम काम करना शुरू कर देतें हैं और जो भी आवश्यक होता है अपने आप आने लगता है इसे सिद्धि या पूर्णता कहतें हैं - जब जो कुछ भी आवश्यक होगा, मिल जाएगा प्राणायाम और ध्यान की फिर यहाँ भूमिका है इस से आप ऐसे बन जाते हो कि कोई कमी ही महसूस नहीं होती हमें वापिस इस अवस्था में आने की आवश्यकता है वातानुकूलित कमरे और सब तरह के ठाट का क्या फायदा यदि इससे साथ अनिद्रा और मुधुमेह जैसे रोग हों? इसलिए हमें अपने आसपास सकरात्मक उर्जा पैदा करने की जरूरत है ये चिंतित रहने यां सोचते रहने से नहीं हो सकता मैं आपको कार्य करने के दो तरीके बताना चाहूँगा एक तो यह कि आप कुछ करते हो क्योंकि आप को कुछ चाहिए होता है, आप उस कार्य की पूर्णता से खुशी की उम्मीद करते हो दूसरा, आनंद की अभिव्यक्ति के साथ कुछ करना ,आप एक कार्य करते हो क्योंकि आपके पास कुछ है आनंद की अभिव्यक्ति के साथ कुछ करना और आनंद पाने के लिए कुछ करना , दोनों में बहुत अंतर है आज दुनिया में बहुत से लोग अवसाद से पीड़ित हैं आंकड़े बतातें हैं कि आने वाले दशक में यह संख्या बढ़ कर ५० प्रतिशत हो जायेगी दुनिया की आधी जनसंख्या - यह बहुत दुःख की बात है हमें इसे बदलना होगा psychiatric दवाएं लेना समाधान नहीं है ध्यान और प्राणायाम से ही यह बदला जा सकता है
प्रेम सभी नकरात्मक भावनायों का जन्मदाता है जिनको उत्तमता से प्रेम होता है वे शीघ्र क्रोधित हो जाते हैं वे सब कुछ उत्तम चाहते हैं उनमें पित्त अधिक होता है( प्राचीन विज्ञान आयुर्वेद के अनुसार शरीर की एक विशेषता) वे हर चीज में पूर्णता ढूंढते हैं ईर्ष्या प्रेम के कारण होती है आप किसी से प्रेम करते हो तो ईर्ष्या भी आती है लालच आता है जब आप लोगों की बजाय वस्तुयों को अधिक चाहते हो जब आप अपने आप को बहुत ज्यादा प्रेम करते हो तो अभिमान बन जाता है अभिमान अपने आप को विकृत रूप से प्रेम करना है इस ग्रह पर कोई एक भी ऐसा नहीं है जो प्रेम नहीं चाहता और प्रेम से अलग रहना चाहता हो फिर भी हम प्रेम के साथ आने वाले दुःख को नहीं लेना चाहते ऐसी अवस्था कैसे प्राप्त की जा सकती है? अपने अस्तित्व और आत्मा को शुद्ध करके जो कि आध्यात्म द्वारा ही संभव है हम पदार्थ और आत्मा दोनों से बने हैं हमारे शरीर को विटामिन की आवश्यकता होती है यदि शरीर में कोई पोषक तत्व नहीं हो तो शरीर में इसकी कमी हो जाती है इसी तरह हम आत्मा भी है आत्मा सुंदर,सत्य,आनंद,सुख,प्रेम और शांति है मेरे अनुसार आध्यात्म वह है जिससे ये सारे गुण बढ़ते हैं और सीमाएं खत्म हो जाती है हम अपने बच्चों और युवायों की इस अध्यात्मिक तरीके से परवरिश कर सकते हैं
आजकल कॉलेज कैम्पस में हिंसा आम बात हो गई है यह बड़े दुर्भाग्य की बात है यदि वहां हिंसा है तो वहां मूलरूप में कुछ गलत है जब मैं बड़ा हुआ उस समय अहिंसा और समभाव को बहुत गर्व से देखा जाता था स्कूल और कॉलेजों में शांति,ख़ुशी,उत्सव और आनंद लाना होगा पर अगर हम स्वयं दु:ख में है तो यह संभव नहीं होगा पहले हमें अपने दुःख
की ओर ध्यान देना होगा यह कैच २२ की तरह है यदि आप खुश नहीं हो तो आप दूसरों को खुश करने के लिए कुछ नहीं कर सकते तो आप कैसे खुश हो सकते हो? खुश रहने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण महत्त्वपूर्ण है दुखी होने के लिए एक तरीका है यदि आप हर समय केवल अपने बारे में सोचते रहोगे - "मेरा क्या होगा?", तो आप उदास हो जाओगे हमें अपने आप को किसी सेवा परियोजना में व्यस्त रखने और अध्यात्मिक अभ्यास की आवश्यकता है, जिससे नकारात्मक भाव खत्म होते हैं इससे हमारा अस्तित्व शुद्ध होता है, भाव में खुशी आती है और सहज ज्ञान (Intuitive knowledge) प्राप्त होता है अंतर्ज्ञान (Intuition) आवश्यक है यदि आप कोई व्यापारी हो तो आपको किस शेयर में पैसे लगायें जाए, यह जानने के लिए अंतर्ज्ञान की आवश्यकता होगी यदि आप कोई कवि हो या साहित्य से संबंध रखते हो तो भी आपको अंतर्ज्ञान की जरूरत होगी यदि आप डॉक्टर हो तो आप को अंतर्ज्ञान की जरूरत होगी डॉक्टर दवाई का सुझाव केवल अवलोकन के आधार पर ही नहीं देते उसमें किसी और कारण का योगदान भी होता है - अंतर्ज्ञान यहाँ पर उपस्थित सारे डॉक्टर मेरे साथ सहमत होंगे अंतर्ज्ञान तब आ सकता है जब हम अपने भीतर जाते हैं बिना अंतर्ज्ञान और आध्यात्म के जीवन बिना सिम के मोबिल इस्तेमाल करने जैसा है हम प्रार्थना करतें हैं परन्तु उस स्रोत से सम्पर्क में नहीं होते तब हम हैरान होते हैं कि हमारी प्रार्थना सुनी क्यों नहीं जा रही क्योंकि हम में आध्यात्मिकता और मानवीय मूल्य नहीं होते इस तरह से बहुत से लोग नास्तिक बन जाते हैं उनके जीवन में एक घटना होती है, उनकी प्रार्थना सफल नहीं होती और वे भ्रम में आ जातें हैं हम में से हर एक में विशाल क्षमता है आपके विचार बहुत शक्तिशाली हैं आप जो चाहें बना सकते हो इसका मतलब यह नहीं कि कल ही तुम चाँद पर जा सकते हो परन्तु ऐसा होने के लिए पहले दृष्टि रखना आवश्यक है पहले अंतर्ज्ञान की शक्ति आनी चाहिए पहले यह विश्वास करो कि आपके लिए असीमित प्रेम और शांति में रहना संभव है एक बच्चे के रूप में आप इस अवस्था का अनुभव कर चुके हो तब हम जोश से भरे हुए थे ऐसा अभ भी संभव है
्न : कोई हर रोज कैसे खुश रह सकता है?
श्री श्री रवि शंकर : उदास होने के लिए कोई कारण होना चाहिए खुश होने के लिए किसी कारण की जरूरत नहीं होती
प्रश्न : जब कोई आपसे घृणा करे और उनकी उपस्थिति में आपको अच्छा न लगे, उस स्थिति में क्या करना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर : उन्हें आशीर्वाद दो शांत और निर्मल मन लेज़र की किरन की तरह हो जाता है तब आपके पास आशीर्वाद की शक्ति आ जाती है भारत और चीन में एक प्रथा है जब भी घर में कोई शादी या समारोह हो तो आपको घर में सबसे बड़े व्यक्ति के पास जाकर उनका आशीर्वाद लेते है इसके पीछे वैज्ञानिक कारण है जैसे जैसे आप बड़े होते हो तो आप और अधिक निर्मल और संतुष्ट हो जाते हो एक संतुष्ट मन के पास आशीर्वाद की शक्ति होती है यदि आप संतुष्ट नहीं हो तो आपके पास आशीर्वाद की शक्ति नहीं होगी,तब आप किसी और को आशीर्वाद कैसे दे सकते हो? यदि आप अपने जीवन में पाने वाली वस्तुओं से कृतज्ञ हो तो आपमें लोगों को आशीर्वाद देने की योग्यता आती है पहले आप केन्द्रित हो यदि वे आपसे घृणा करते हैं तो क्या? आप खुश रहो और उनको आशीर्वाद दो कि उनका घृणा से पीछा छूट जाए प्राय हम लोगों को सुधारने की कोशिश करते हैं क्योंकि उनके रवैये से हम परेशान हो जाते हैं परन्तु यदि आपक इरादा उनमे बदलाव लाना है क्योंकि उनका बरताव उनको कष्ट दे रहा है तो, धीरे धीरे उनमे बदलाव अवश्य आएगा क्या आप समझ रहे हो मैं क्या कह रहा हूँ?
प्र : सेवा का ऐसा कौनसा कार्य है जो हर कोई कर सकता है?
श्री श्री रवि शंकर : कोई भी कार्य सेवा का कार्य हो सकता है दुनिया आप से ऐसे काम की आशा नहीं करेगी जो आप से न हो सके आप जो भी कर सकते हैं और बदले में बिना किसी अपेक्षा के जो आप करते हैं वही सेवा है कोई भी कार्य दो तरह से हो सकता है पहला, हम इसलिए करें कि हमें काम पूर्ण होने के बाद खुशी की अपेक्षा है दूसरा, हम आनंद के साथ कार्य पूर्ण करते है नौकरी और सेवा में यही फ़र्क है
प्रश्न : मैं जन्म से मांसाहारी हूँ और मुझे यह समझ में नहीं आता कि माँस क्यों नहीं खाना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर : थोड़ी देर के लिए आध्यात्म के बारे में भूल जाओ। एक खोज के अनुसार एक किलो माँस पैदा करने में जितनी खपत होती है उससे ४०० व्यक्ति भोजन कर सकते हैं। एक और खोज के अनुसर अगर केवल १० प्रतिशत लोग मांसाहार छोड़ दें तो ग्लोबल वार्मिंग की समस्या खत्म हो जाएगी। इस आधार पर इस ग्रह के लिए और तांकि सब लोगों को भोजन मिल सके, इस के लिए मांसाहारी भोजन की खपत कम करना ज़रुरी है। भगवान ने हमें धरती की और धरती पर रहने वालों की देखभाल करने की होश तो दी है।
हम जितना भोजन उगाते हैं उससे ४० - ५० प्रतिशत अधिक इस्तेमाल करते हैं। ध्यान के साथ साथ पेड़ उगाना, जानवरों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी और शाकाहारी होना भी आध्यात्म का हिस्सा है।
हम अपने जीवन में प्राय धन्यवाद बोलते हैं और क्षमा मांगते हैं पर महसूस नहीं करते यह लगभग वैसे ही है जैसे विमान परिचारिकाएं विमान से उतरते समय आपको बोलती हैं, 'आपका दिन शुभ हो' विमान प्रचारिका आपका अभिवादन करती है परन्तु बिना किसी भाव के यही शब्द यदि किसी प्रिय व्यक्ति की ओर से आये तो इनका भाव ओर असर अलग रहता है हमारा अस्तित्व हमारे शब्दों से अधिक महतव्पूर्ण है एक बच्चा बिना बोले जो प्रेम का भाव व्यक्त करता है कोई दूसरा बोल कर भी वैसे नहीं कर सकता हम सब इस भाव के साथ सम्पन्न है परन्तु यह भाव कहीं परेशानी और भागदौड़ में गुम हो गया है यह तनाव के कारण है ना तो घर पर और ना ही स्कूल में किसी ने हमें अपने भाव को शुद्ध रखना सिखाया है यदि हम घर पर गुस्सा हो तो यही गुस्सा लेकर दफ़तर पहुंच जाते हैंजब हम दफ़तर में परेशान रहते हैं तो यह तनाव हमारे शरीर की कार्य प्रणाली में आ जाता है और हम घर पर भी तनाव में रहते हैं हम इसे छोड़ नहीं पाते इसके लिए हमे अपने भीतरी स्रोत में जाना होगा अब प्रश्न यह है - हम अपने स्रोत के पास कैसे जाएँ? हम अपने भाव को कैसे शुद्ध करें? इसी के लिए ध्यान किया जाता है ये शोर से मौन की ओर जाना है
बहुत से लोग सोचते हैं कि ध्यान यानि एकाग्रता ऐसा नहीं है बल्कि ध्यान एकाग्रता के विपरीत है यदि आपको किसी वाहन को चलाना हो तो एकाग्रता की आवश्यकता होती है यदि आपको विश्राम करना हो तो किसी प्रयास की जरूरत नहीं होती ध्यान गहरा विश्राम है नाकि एकाग्रता इसलिए यदि ध्यान में कोई विचार आते हैं तो हम उनके पीछे नहीं भागते जितना हम उनके पीछे भागते हैं उतने ही और विचार आते हैं यदि आप किसी विचार से पीछा छुड़ाने का प्रयत्न करते हो तो यह आसानी से नहीं जायेगा यह और सशक्त हो कर वापिस आ जाएगा हम एक और रणनीति अपनाते हैं यदि कोई बुरे विचार आते हैं तो हम उन्हें आने देते हैं हम उन्हें मित्र बना लेते हैं तब वे गायब हो जाते हैं यदि अच्छे विचार आते हैं तो हम उन्हें आने देते हैं तब वे शांत हो जाते हैं जो कोई भी विचार आये हम उन्हें रोकने की कोशिश नहीं करते यह एक प्रयास रहित प्रक्रिया है
ध्यान में उतरने के लिए तीन महत्वपूर्ण नियम हैं सबसे पहला है - "मुझे इस समय कुछ नहीं चाहिए" जब आपको कुछ नहीं चाहिए तो आप को कुछ करना भी नहीं होता यदि आप कहो "मुझे पानी पीना है यां मुझे अपनी अवस्था बदलनी है" तो ध्यान नहीं हो सकता दूसरा महत्वपूर्ण नियम है - "मैं कुछ नहीं करता" आप केवल साँस लेते हो और फिर - "मैं कुछ नहीं हूँ" ध्यान के समय आप अपने बारे में सभी धारणायों का त्याग कर देते हो उस समय ना आप बुद्धिमान हो, ना आप मूर्ख हो, ना अमीर हो, ना गरीब होतो आप हो क्या? कुछ भी नहीं "मैं कुछ नहीं हूँ मैं कुछ नहीं चाहता हूँ मैं कुछ नहीं करता" ध्यान के बाद आप दोबारा कुछ हो सकते हो यह आपकी इच्छा है,परन्तु यदि ध्यान के समय आप स्वयं को महान यां बेकार समझते हो तो आप अपने भीतर विश्राम नहीं कर सकते उस चेतना में स्थित होने के लिए जिससे हम सब बने हैं यह सबसे पहला कदम है यह ध्वनी से मौन की यात्रा है
इस तरह से हम तीन बार ॐ का उच्चारण करके अपने चारों ओर प्रेम और शांति की लहर फैलायेंगे यह आन्तरिक शांति है जब हम में यह आन्तरिक शांति होती है,हम में धैर्य होता है और हमारा सोचने का तरीका बेहतर होता है हमारी निरिक्षण करने की योग्यता और अभिव्यक्ति बेहतर होती है प्राय हम यह कहते हैं, "कोई भी मुझे नहीं समझता" हम कभी नहीं कहते, "मैं अपने को अच्छे से व्यक्त नहीं कर पाया" हमारी अभिव्यक्ति ध्यान से सुधरती है यह ध्यान का जादू है
कुछ लोग पूछ्ते हैं ध्यान से क्या होता है? इससे समाज हिंसा रहित हो सकता है आज कोल्म्बिन हाई स्कूल की ग्यारहवी बर्षगांठ है अपराधी और अपराध के शिकार हुए दोनों के लिए ही जानने की जरुरत है कि मन को कैसे शांत करना है ना तो स्कूल में और ना ही घर पर कोई सिखाता है कि नकरात्मक भावनायों से कैसे पीछा छुड़ाना है ये भावनाएं आती हैं और आप इनमें फस के रह जाते हो वर्ल्ड हेल्थ संगठन (WHO) की भविष्यवाणी है अगले दस बर्षों में अवसाद (Depression) सबसे बड़ा घातक रोग होगा अवसाद के बाद कैंसर दूसरा बड़ा घातक रोग होगा ध्यान इससे निपटने के लिए आवश्यक है प्राणायाम,योग,सुदर्शन क्रिया और ध्यान से इस तरह के बदलाव लाये जा सकतें हैं
वे कुछ आदतें क्या हैं जिनसे सफलता मिलेगी?
श्री श्री रविशंकर : पहले आप को सफलता को परिभाषित करना होगा बहुत बड़े बैंक खाते हो पर नींद न आए तो यह सफलता नहीं है आपके पास बहुत से पैसे हो सकते हैं परन्तु उसके साथ यदि आपको बहुत सी स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियां हैं, डर और चिंता से भरे हो,आपके पास मित्र नहीं है तो यह सफलता नहीं है मेरे लिए सफलता आपकी मुस्कान से मापी जा सकती है आपका जीवन कितना मुसकान से भरा है और अन्य लोगों की मुस्कान के लिए आपका क्या योगदान है? आपको अपनी योग्यता में कितना साहस और विश्वास है? आप केवल अपने भविष्य को लेकर चिंतित नहीं हैं- मेरे लिए यह सफलता का निशान है पैसा जीवन के लिए आवश्यक है परन्तु जीवन केवल पैसे के लिए ही नहीं है
प्रश्न : आप सफलता को कैसे परिभाषित करोगे?
श्री श्री रवि शंकर : सफलता को आपकी दिल से आने वाली मुस्कुराहटों से तोला जा सकता है यह आपका आत्मविश्वास है जिनसे आप चुनौतिओं का सामना करते हो जब सब ठीक चल रहा हो तो आप आसानी से मुस्कुरा सकते हो जब आप पूरी तरह असफल रहते हो और फिर भी मुस्कुरा सकते हो ,वह सफलता है एक व्यक्ति जो जीवन की सारी चुनौतियों को स्वीकार करता है ,सफल है!
प्रश्न : हम अपने को बुरे विचारों से कैसे बचा सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : हम जैसा सोचते हैं वैसा ही बन जाते हैं। विशेषकर एक भक्त जो सोचता है वो सच हो जाता है। जब तुम एक भक्त होते हो तो बुरे विचार नहीं आते। भक्ति से सब विकल्प दूर हो जाते हैं।
प्रश्न : गुरु तत्व क्या है?
श्री श्री रवि शंकर : तुमने यह सवाल पूछा क्योंकि तुम कुछ जानना चाहते हैं। कुछ जानने के लिए प्यास शिष्यत्व है। जो तुम्हे उत्तर देता है वो गुरु है। और वो स्रोत जिसमे जीवन का हर उत्तर निहित है, गुरु तत्व है। हमें उत्तर क्यों चाहिए? ताकिं हम पूर्ण महसूस करें। ज्ञान हमें पूर्ण करता है। जिस तत्व की उपस्थिति में जीवन में कोइ कमी नहीं रहती, वो गुरु तत्व है।

3 comments:

  1. excellent post which deals with t philosophy of AOL

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  2. श्रीश्री रविशंकर सभी को अच्‍छे लगते हैं यह आलेख हमें और पेरित करेगा

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