Wednesday, 30 June 2010

GYAN KEE BATE

प्रश्न : मैं आप के साथ कुछ समय बिताना चाहता हूँ, बैठ कर आप से बातें करना चाहता हूँ। आपके साथ यात्रा करना चाहता हूँ। इसके लिये मुझे क्या करना होगा?

श्री श्री रवि शंकर : जो इच्छाएं तुम पूरी कर सकते हो, वो पूरी कर लो, और जो इच्छाएं समर्पित कर सकते हो, उन्हें समर्पित कर दो। किसी भी इच्छा की पूर्ति में समय और प्रयास लगता है। जब तुम अपनी इच्छाओं को समर्पित कर देते हो, वो अपने आप ही पूरी हो जाती हैं। कुछ इच्छाएं बहुत लंबे समय तक इच्छा करने पर पूरी होती हैं। और कुछ इच्छाएं तब भी पूरी नहीं होती हैं। कई बार तुम पाते हो कि किसी इच्छा का पूरा ना होना तुम्हारे हित में था। इस विश्वास के साथ चलो कि ईश्वर जानता है तुम्हारे लिए क्या उत्त्म है। ना तो इच्छाओं की आलोचना करो, और ना ही उनके साथ बह जाओ। ठीक है? ये बीच का रास्ता है। जैसे ही तुम सजग होते जाते हो, बाकी सब अपने आप ही शांतिपूर्ण हो जाता है।

प्रश्न : लोगों को आप पर बहुत विश्वास है। अगर आप कहें कि आप गुरु नहीं हैं तो उनके विश्वास का क्या होगा? मैं यह नहीं कह रहा कि ऐसा है पर मैं एक स्थिति दर्शाने की कोशिश कर रहा हूँ जो कि मेरी जीवन में घट चुकी है। अगर कोई कहे कि मैंने जिसपर विश्वास किया वो गलत है, तो मेरी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिये?

श्री श्री रवि शंकर : तुम ने मन में एक कल्पना बनाई है और एक जो अस्तित्व से तुम्हारा मन कहता है। विश्वास वही है जो संशय से हिलता नहीं है। संशय आसमान में छाये बादलों की तरह आ कर चला जाता है। कितने भी बादल हों पर आसमान को अधिक देर के लिए ढक नहीं सकते। १०० परिक्षा भी हो पर दिल कहीं तो कहता है क्या सत्य है।
अगर तुम्हारे पैर में दर्द हो और मैं भी तुम से कहूं कि तुम्हारे पैर में दर्द नहीं है, तो क्या तुम मान लोगे? जीवन में कुछ ऐसे अनुभव होते हैं चाहे पूरी दुनिया कहदे गलत है पर मन नहीं मानता।
एक प्रकार से, संशय करना अच्छा है। एक तरह से पकने के लिए प्रभु की कृपा हो गया। संशय की अग्नि से तुम्हें मज़बूत बनने का मौका मिलता है।

प्रश्न : गायत्री मंत्र में कहा है, ‘धियो यो ना प्रचोदयात:’ इसका क्या अर्थ है?

श्री श्री रवि शंकर : बुद्धि में दिव्यता का प्रवाह हो। बुद्धि में केवल अच्छे विचार ही आएं।

प्रश्न : योगी होने का क्या अर्थ है?

श्री श्री रवि शंकर : योगी होने का अर्थ है फिर एक बच्चे की तरह हो जाना। अष्टावक्र भी यही कह रहे हैं – कोई तृष्णा, कोई द्वेष, कोई राग आत्मज्ञान को ढक नहीं सकता।

प्रश्न : इच्छा और संकल्प में क्या अंतर है?

श्री श्री रवि शंकर : जीवन में हर कार्य संकल्प से होता है। तुम्हारे मन में ये संकल्प उठा कि तुम यहाँ आओ, तभी तुम यहाँ आ सके। अगर कोई चीज़ तुम्हारे मन में बार बार आती रहे, तो वह इच्छा है। ये मत सोचो कि मन में कोई इच्छा नहीं होनी चाहिए। बड़े बड़े काम करने के संकल्प करो। अधिक काम की ज़िम्मेदारी लो, पर कभी कभी उन्हें किनारे रख कर विश्राम भी करो।

प्रश्न :मन को एकाग्र कैसे कर सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर : तुम्हारा मन प्रेम से स्थिर हो जाता है। लालच और भय भी मन को स्थिर करते हैं। मैं प्रेम को बाकी दोनों उपायों से श्रेष्ठ मानता हूँ।

प्रश्न : आपकी उपस्थिति में इतनी शांति और आनंद मिलता है कि मैं हमेशा उसी आनंद में रहना चाहता हूं। मैं क्या करूं?

श्री श्री रवि शंकर : चाहे तुम विश्व में कहीं भी हो जब तुम इन अनुभवों को याद करते हो, तो तुम उस आनंद को अनुभव कर लेते हो। संसार के बाकी सभी छाप इस अनुभव से धुल जाती हैं।


जो ध्यान करते हैं, उनके सानिध्य में सब वैर छूट जाता है। आज सारी दुनिया आतंकवाद से पीड़ित है। ध्यान और साधना एक ही रास्ता है जिससे इस वैर को खत्म किया जा सकता है। आज श्याम यहाँ भी एक आतंकवादी आया था। उसने गोली तो चलाई पर किसी को ज़्यादा नुकसान नहीं हुआ। इस वातावरण में आकर उसके भीतर भी ज़्यादा नुकसान करने का भाव नहीं आया, वो एक गोली चला के भाग गया। उसका भी मन परिवर्तन हो गया। एक जन को पैर में थोड़ा सा लगा, नहीं तो कुछ भी हो सकता था।योगासूत्र में दिया गया ज्ञान,तत सानिध्य वैर त्याग:, ध्यान करने वालों के सानिध्य में किसी भी तरह का वैर छूट जाता है। जहाँ सब ध्यान करते हैं वहाँ ज़्यादा नुकसान हो ही नहीं सकता। जब हम २५ वर्ष पूरे होने पर उत्सव की तैयारी कर रहे थे, तब भी किसी ने कहा था, "यह हो ही नहीं सकता"। और हमने कहा था कि यह होकर ही रहेगा। हम सबको मिलकर इस ज्ञान को घर घर में फ़ैला देना है। घर घर में लोग ध्यान और योग करें तो देश भर में एक नई लहर हमको ले के आनी है। अभी एक तारीक को कई नक्सल लोग जो हिंसा में लगे हुए हैं, आ रहे हैं। वो बोले दर्शन करना चाहते हैं। हमा लोगों के साथ बैठकर वो सत्संग करेंगे, सब हिंसा छोड़ देंगे और फूल की तरह खिल जाएंगे।
देशभर में जितने लोग आतंक में लगे हुए हैं हम उन सबका स्वागत करते हैं। इस दैवी उर्जा में उनका भी मन बदल जाएगा। हरेक इंसान के अन्दर कुछ मान्यता है, दैवी गुण हैं, बस वो जगने की ज़रुरत है। कई लोग हमसे पूछते हैं कि इतने प्रचार और प्रसार की क्या ज़रुरत है। हमे क्या ज़रुरत है! हमे कुछ भी नहीं चाहिए पर जब तक यह ज्ञान लोगों तक नहीं पहुँचता, समाज शांति से नहीं रह सकता। इसलिए समाज में शांति और लोक कल्याण के लिए हम सबको काम करना पड़ेगा। अगर यहाँ एक एक आदमी ज्ञान, भक्ति और ध्यान फैलाने की ज़िम्मेदारी ले ले तो सोचो समाज कितना सुन्दर हो जाएगा। आप लोग भी प्रसन्नता से और निर्भय होकर आगे बड़ो, यह जानकर की आपको एक सुरक्षा का कवच मिल गया।

"अपनी क्षमता के अनुसार और बिना किसी अपेक्षा के किए जाने वाला कर्म सेवा है"

संगीत हमे जोड़ता है और ध्यान हमे अपनी भीतर गहराई में ले कर जाता है| इससे हम में संपूर्णता आती है| यदि आप भारत में ज्ञान की देवी सरस्वती को देखें तो पाएँगे कि वे एक चट्टान पर बैठतीं हैं| चट्टान स्थिर और अचल है| यह इस बात का प्रतीक है कि सीखा हुआ ज्ञान आप का हिस्सा बन जाता है| जब कि धन की देवी लक्ष्मी कमल के फूल पर विराजमान हैं| बरसात आती है और पानी के बहाव के साथ कमल का फूल भी हिलता है| देवी सरस्वती के हाथों में वीणा, पुस्तक और माला है| पुस्तक ज्ञान का, वीणा संगीत का और माला ध्यान के प्रतीक हैं| ध्यान, ज्ञान और संगीत - ये तीन पहलू हमें जीवन में उतारने चाहिए|

प्र : 'आर्ट ऑफ लिविंग' व्यक्ति की धार्मिक मान्यताओं और पद्धतियों से कैसे संबधित है?

श्री श्री रवि शंकर :
आप अपनी मान्यताएँ और पद्धतियाँ बनाए रख सकते हैं क्योकिं 'आर्ट ऑफ लिविंग' में हम विविधता में विश्वास रखते हैं| अपना धर्म निभाते हुए अध्यात्म में आगे बढ़ा जा सकता है|

प्र : मुश्किल के समय में देखा गया है कि शासन, व्यापार और धर्म के क्षेत्र में लोग हमारी आशाओं पर पानी फेर देते हैं| आपके हिसाब से ऐसे में परिस्थिती कैसे संभाल सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
महात्मा गाँधी ने ऐसे नेताओं की एक नस्ल बनाई जो दुनिया के चारों ओर सम्मानित हुए|
राजनीति में अध्यात्म , ज्ञान का विश्विकर्ण और धर्म में धर्मनिरपेक्षता आव्श्यक है| हर किसी को हरेक धर्म के बारे में थोड़ा बहुत मालूम होना चाहिए| यदि सभी बौध धर्म, हिंदू धर्म, सिख धर्म, जैन धर्म और ईसाई धर्म के बारे में थोड़ा-थोड़ा सीख लें तो हमारे पास धर्म का एक पूरा सम्मिश्रण तैयार मिलेगा| यही एक तरीका है जिससे हम एक दूसरे को समझ सकते हैं और आध्यात्म की तरफ आगे बढ़ सकते हैं| अगर हर बच्चा हरेक धर्म के बारे में थोड़ा-बहुत जानता हो, तो वे सभी धर्मों को स्वीकार करते हुए आगे बड़ेगा |

प्र : सेवा का ऐसा कौनसा कार्य है जो हर कोई कर सकता है?

श्री श्री रवि शंकर :
कोई भी कार्य सेवा का कार्य हो सकता है| दुनिया आप से ऐसे काम की आशा नहीं करेगी जो आप से न हो सके| आप जो भी कर सकते हैं और बदले में बिना किसी अपेक्षा के जो आप करते हैं वही सेवा है| कोई भी कार्य दो तरह से हो सकता है| पहला, हम इसलिए करें कि हमें काम पूर्ण होने के बाद खुशी की अपेक्षा है| दूसरा, हम आनंद के साथ कार्य पूर्ण करते है| नौकरी और सेवा में यही फ़र्क है|

प्र : मेरे दिल और दिमाग़ हमेशा संघर्ष करते रहते हैं| मुझे किसका कहना मानना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
दोनो का अलग-अलग समय पर इस्तेमाल करो| व्यापार दिल से नहीं बल्कि दिमाग़ से करो| सेवा दिमाग़ से नहीं बल्कि दिल से करो|

प्र : कैसे मालूम हो कि किसी को कब माफ़ करना है?

श्री श्री रवि शंकर :
जब कोई चीज़ तुम्हें बहुत परेशान करने लगे|

प्र : आप में जो इतनी शक्ति है, इतना बड़ा दिल है और इतनी करुणा है- इसका राज़ क्या है?

श्री श्री रवि शंकर :
सादगी| जब आप अपने स्वभाव से हटकर कुछ और बनने का प्रयत्न करते हैं तब ये आपको थका देता है| जब आप किसी को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं या किसी से कुछ उम्मीद रखते हैं तो भी आप बोझ महसूस करने लगेंगे|

प्र : मुझे हवाई जहाज़ की उड़ान से बहुत डर लगता है| मुझे डर ने पकड़ रखा है| इस डर को अंकुश में रखने के लिए मैं क्या करूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
जब ऐसा हो, शरीर में उठ रही संवेदनाओं को महसूस करें| डर प्रेम का विपरीत है, फिर भी डर को प्रेम में बदला जा सकता है| आप 'अड्वान्स मेडिटेशन कोर्स' के ज़रिए भी इन सब चक्रों से गुज़र कर उनसे परे जा सकते हैं|

प्र : इतने लोगों पर हो रहे अन्याय को देख कर मुझे जो गुस्सा आता है, उसके लिए मैं क्या करूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
सिर्फ़ गुस्सा महसूस करके बैठे मत रहो| उसके लिए कुछ करो| अपना मानसिक संतुलन खोने की कोई ज़रूरत नहीं है| तुम्हें उसे स्वीकार करते हुए धैर्य से जवाब देना चाहिए| ये एक कौशल है| मन से शांत रहो और योग से जुड़े रहो| यही गीता का संदेश है|

प्र : एक व्यक्ति के लिए एक जीवन काल में मोक्ष प्राप्त करना कितना वास्तविक है?

श्री श्री रवि शंकर :
इसके लिए तुम्हें विशिष्ट होने की ज़रूरत नहीं है| तुम उसे इसी पल इस जगह भी पा सकते हो|

प्र : मैं विश्व शांति के लिए कैसे सहयोग दे सकता हूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
यह प्रश्न मैं आप पर ही छोड़ना चाहूँगा क्योंकि आप ऐसा बहुत से तरीकों से कर सकते हो| सेवा के लिए तैयार रहो| ऐसे प्रश्नों का एक जवाब नहीं हो सकता|

प्र : क्या आप कामुकता के स्वाभाव के बारे में कुछ बता सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
जिसके बारे में जानते न हों और जिस बात में विश्वास न करते हों उसके बारे में उपदेश देना सही नहीं है| जिन लोगों ने गहरी समझ पा ली है वे किसी बात की एक राय नहीं बनाते| आध्यात्मिकता के साथ आप अनुभव के एक अन्य स्तर पर जा सकते हैं| सेक्स का आदर करो पर उससे उँचे स्तर पर पहुंचो|

प्र : रिश्ते को सफल बनाने का क्या तरीका है?

श्री श्री रवि शंकर :
मैं रिश्तों के मामले में विशेषज्ञ नहीं हूँ ! पर मैं पुरुषों और स्त्रियों के लिए एक-एक सलाह दे सकता हूं | स्त्रियों को पुरुष के अहंकार पर कभी चोट नहीं पहुंचानी चाहिए | सारी दुनिया चाहे उसे बेवकूफ कहे पर तुम्हें उससे कहना है कि वह सबसे अधिक बुद्धिमान है| तुम्हें उसकी काबिलियत पर शक नहीं करना है| उससे कहो, "तुम सबसे ज़्यादा बुद्धिशाली हो| अगर तुम उसका उपयोग नहीं करते तो इसका मतलब ये नहीं कि तुममें समझ नहीं है|" अगर तुम उसे बेवकूफ कहती रहोगी तो वह सचमुच बेवकूफ ही बन जाएगा| अपने पति से प्रेम का प्रमाण माँगते रहना ठीक नहीं है| बस समझ लो कि वह तुमसे प्यार करते हैं| अगर किसी को रोज़ ये साबित करना पड़े कि वो तुम से प्रेम करते हैं तो वो उन्हें थका देगा| प्रेम को बहुत ज़्यादा व्यक्त नहीं करना चाहिए| बहुत बार समस्या ये हो जाती है कि हम अपना प्रेम कुछ ज़्यादा ही व्यक्त करते रहते हैं| अगर तुम बीज को सतह पर ही लटकाए रखो तो तुम उसकी जड़ें कभी नहीं देख पाओगे| लेकिन अगर उसे गहरे में गाड़ दोगे तब भी उससे अंकुर नहीं फूटेगा ! बीज को सही ढंग से बोओ| इस तरह से तुम्हें अपना प्यार जताना चाहिए| अपने प्रेम का गौरव बनाए रखो|

अब पुरुषों के लिए एक सुझाव है कि स्त्री की भावनाओं पर कभी पैर मत रखना | अगर वो अपनी माँ, बहन, अपने परिवार वग़ैरह की शिकायत करे तो उसमें शामिल मत हो जाना| थोड़ी देर के बाद वो पक्ष बदलेगी और हो सकता है तुम्ही निशाना बन जाओ! अगर वो कुछ ध्यान करना चाहे, किसी मंदिर में जाना चाहे या कोई आध्यात्मिक साधना करना चाहे तो उसे रोकना मत| अगर वो खरीदारी के लिए जाना चाहे तो उसे अपना क्रेडिट कार्ड दे दो| इससे घर में शांति रहेगी|

प्र : क्या ज्ञान की तलाश में गुरु या आध्यात्मिक नेता की ज़रूरत है?

श्री श्री रवि शंकर :
आप प्रश्न पूछ रहे हो और आप को जवाब चाहिए| आप को दवा चाहिए और जो भी आप को वो दे दे वो आप के लिए डॉक्टर बन जाता है| साधक को उत्तर चाहिए, उसे चाहिए कि कोई उसे सही मार्ग दिखाए| अगर कोई कहे मैं मरीज नहीं हूँ पर मुझे दवा चाहिए और कोई कहे मैं डॉक्टर नहीं हूँ पर मैं तुम्हें दवा दूँगा तो इन दोनों को आप क्या कहेंगे?
आप जो सुनना चाहते हो वो तो कोई भी आप से कह सकता है पर आपको सही मार्ग दर्शन की ज़रूरत है| कोई होना चाहिए जो आप का होंसला बँधा सके| जब आप तैरना सीखते हैं, ट्रेनर कहता है, " कूदो, आगे बढ़ो" और आप में आत्म-विश्वास जगता है| जिसमें ऐसा आत्म-विश्वास हो, वही आप का मार्ग दर्शक बन सकता है|

प्र : आप सारे विश्व के लोगों का भार उठाने का काम कैसे संभालते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
जब आप अपने को ये कहते हैं कि आप सिर्फ़ एक साधन यां मध्यम हैं| आप इस ब्रह्मांड के एक अंश हो| जब आप किसी भी परिस्थिति से प्रभावित नहीं होते तो यह सहजता से ही हो जाता है | ये बिल्कुल मुमकिन है, तुममे भी वह क्षमता है|

Ishwar kya hai

ईश्वर के विष्य में शिष्य और अध्यापक की वार्ता"


शिष्य : ईश्वर क्या है? दिव्यता क्या है?

अध्यापक :
भोजन ईश्वर है।
उत्तर लेकर शिष्य वापिस जाता है, भोजन उगाता है, और वो भोजन के महत्व को समझकर, शरीर और मन पर भोजन के प्रभाव का अध्ययन करता है। इसकी जानकारी के बाद उसे लगता है कि भोजन से अधिक भी कुछ है जीवन में। वह पुन: अपने अध्यापक के पास जाता है।

शिष्य : ईश्वर क्या है। वो क्या दिव्य शक्ति है जिसके कारण सबकुछ है?

अध्यापक :
प्राण ईश्वर है। श्वास ईश्वर है।
शिष्य वापिस जाकर प्राण को समझने में अपना समय व्यतीत करता है - ’श्वास किस तरह शरीर के भीतर और बाहर जा रही है’। इस बारे में समझ कर, यह सीढ़ी चड़कर उसे लगता है कि इसके आगे भी कुछ है। वो आदरपूर्वक अपने अध्यापक के पास जाता है और वही प्रश्न पूछता है।

शिष्य : मैने प्राणों के बारे में जाना पर मैं पूर्ण संतुष्ट नहीं हूँ। कृप्या मुझे बताइए ईश्वर क्या है?

अध्यापक :
मन ईश्वर है?
फिर शिष्य अपना समय मन के निरीक्षण में लगाता है और जानता है - ’मन में कुछ अच्छे विचार आते हैं और कुछ बुरे विचार। कभी मन होता है और कभी मन विलीन हो जाता है।’ इसपर कुछ समय बिताने के बाद उसे लगता है कि मन से अधिक भी कुछ है। मन सबकुछ नहीं है। वह पुन: अध्यापक के पास जाकर वही पूछ्ता है।

अध्यापक :
ज्ञान ईश्वर है। फिर वो ज्ञान सुनता है, गुनता है। मन में उसे समझता है। पर वो फिर भी संतुष्ट नहीं होता। ज्ञान बहुत आवश्यक है आगे बढ़ने के लिए पर फिर भी उसे कुछ कमी का आभास होता है। वह फिर से अपने अध्यापक के पास जाता है और आख़िरी बार पूर्ण आदर से वही पूछ्ता है।

अध्यापक :
परमानंद ईश्वर है।
शिष्य वापिस जाता है और परमानंद अनुभव करता है।
एक एक कदम से अध्यापक शिष्य को आगे लेकर जाता है। इसीलिए ज्ञानी के सानिध्य में ज्ञान पाने का इतना महत्व है। जब ज्ञानी बोलते हैं तो पीछे पीछे अर्थ भागता है। गुरु मुख से सुनने पर ज्ञान जीवन के अनुभव में आता है क्योंकि वो जीवन के अनुभव को ही बोल रहें है। अनुभव से अनुभव जग जाता है। पर शिष्य ने कभी यह शिकायत नहीं की कि उसे हर कदम पर पूर्ण सत्य नहीं बताया गया। वह समझता था कि जिसे भोजन का पूर्ण ज्ञान नहीं उसे ’ईश्वर परमानंद है’, यह अनुभव में नहीं आएगा, और बाकी के कदमों पर भी ऐसा ही है। जिस के पास खाने के लिए कुछ नहीं उसे पर्मानंद की अनुभूति कैसे होगी?

Guru ke Uttar

Monday, June 28, 2010

"पूर्व और पश्चिम के सर्वश्रेष्ठ गुण अपना कर एक उत्तम समाज की संरचना कर सकते हैं"

बैंगलोर आश्रम, भारत

१९८० में हमने पहली बार दिल्ली में आयुर्वेद पर एक सम्मेलन का आयोजन किया था। आयुर्वेद के वरिष्ठ वैद्य और गुणीजन, और AIIMS के सर्वश्रेष्ठ एलोपैथिक डौक्टरों ने इसमे हिस्सा लिया। वहां एक मज़ेदार घटना हुई। मैंने सभी डौक्टरों से पूछा कि भोजन में हल्दी का क्या महत्व है? एक ऐलोपैथिक डौक्टर नें कहा कि हल्दी केवल रंग के किए है, और इसके अतिरिक्त इसका भोजन में कोई महत्व नहीं है। पर एक आयुर्वेदिक डौक्टर ने कहा कि हल्दी antioxidant होने के कारण, बढ़ती उम्र के दुष्प्रभावों की रोकथाम करता है।

दस सालों के बाद, १९९० में ऐलोपैथिक डौक्टर भी शोध से इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हल्दी antioxidant है, और ये कोशिकाओं को बढ़ती उम्र के दुष्प्रभावों से बचाती है, और आपके शरीर में युवापन बना रहता है। आयुर्वेद, एक संपूर्ण चिकित्सा प्रणाली है। जो आयुर्वेद का ज्ञान हम लोगों के पास हज़ारों सालो से था, उस ज्ञान को स्वीकार करने में इतना समय लग गया!

नीम, आमला और नींबू जैसी कई दिव्य जड़ी बूटियां बहुत महत्वपूर्ण हैं – ये सभी antioxidants हैं। कड़ी पत्ता, जिसे हम चिवड़ें और कई तले व्यंजनों में डालते हैं, तुम्हें इसका महत्व पता है? ये खराब cholesterol को कम करता है। किसी का cholesterol बढ़ गया हो तो उसे कड़ी पत्ते की चटनी बना कर तांबे के बर्तन में परोसे, वह ठीक हो जायेगा। cholesterol घटाने के लिए ली गई कुछ एलोपैथिक दवायें जिगर और गुर्दों पर दुष्प्रभाव डालती हैं। तो, ये कुछ अद्भुत चीज़ें हैं जो हमारे देश में पहले से ही मौजूद हैं।

१९८० से हमने पंचकर्मा को प्रोत्साहित किया। कई प्रतिष्ठित आयुर्वेदिक डौक्टर हमारे साथ जुड़ गये और उन्होनें हमारे साथ जगह जगह की यात्रा की। वे नाड़ी परीक्षण से ये जान लेते हैं कि किस को क्या तकलीफ़ है, और ये भी बता देते हैं कि निकट भविष्य में क्या बीमारी हो सकती है। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां उनके इलाज से बड़ी बड़ी बीमारियां ठीक हो गई।

मुझे एक घटना याद है, जब नाड़ी परीक्षण के बाद आयुर्वैदिक डौक्टर से अपने स्वास्थ्य का इतिहास सुन कर एक व्यक्ति अचंभित हो गया कि बिना बताये वे ये कैसे जान गये। ऐसे एक-दो नहीं, हज़ारों दृष्टांत हैं। हमारी कमी है कि हम आंकड़ों का संकलन कर उस पर शोध प्रकाशित नहीं करते हैं। हमें वैज्ञानिक और शोध की दृष्टि से इसे देखना चाहिये। हमें पश्चिम से ये सीखना चाहिये। हम उनकी अच्छी बाते वहीं छोड़ आते हैं पर बुरी बाते सीख आते हैं।

प्रश्न : मैं एक विद्यार्थी हूं, और यहां की शिक्षा प्रणाली से बहुत प्रभावित हूं। मुझे कुछ ऐसी बात सिखाइये जो मैं अपने साथ वापिस ले जा सकूं।

श्री श्री रवि शंकर : अपने शिक्षकों का सम्मान करो। भारतीय शिक्षा प्रणाली में गुरु का बहुत सम्मान है। इस सम्मान की पश्चिम के विद्यालयों और महाविद्यालयों में कमी है। अपने से बड़ों का भी सम्मान करो।
 तो, हम एक नई लहर बनायें जहां पूरब और पश्चिम की संस्कृतियों से सर्वश्रेष्ठ गुण अपना कर एक उत्तम वैश्विक परिवार बनाये। दोनों से सर्वश्रेष्ठ ले कर एक सुंदर समाज का निर्माण करें।

प्रश्न : गुरुजी मैं ऐसी नौकरी में हूं जहां सरकारी अफ़सरों को रिश्वत दिये बिना कोई काम नहीं हो पाता है। मेरा मार्गदर्शन कीजिये कि मैं बिना रिश्वत दिये अपना काम कैसे कराऊं?

श्री श्री रवि शंकर : तुम कर सकते हो। तुम उनकी आंखों में देख कर कहो, ‘मैं आध्यात्म के पथ पर चलता हूं, मैं रिश्वत नहीं दूंगा। अगर आप चाहो तो मैं पचास बार तुम्हारे पास आउंगा, पर रिश्वत नहीं दूंगा।’ तुम्हारी आवाज़ दृढ़ पर नम्र हो, मिठास और दृढ़ता। कई बार हम सच कहते हैं पर गुस्से में कह जाते हैं।मन में गुस्सा या नफ़रत हो, तो सच बोलने पर भी सफलता नहीं मिल पाती। दृढ़ता और मिठास से अपनी बात कहो। ऐसा एक-दो बार करो, फिर देखो क्या होता है।

प्रश्न : गुरुजी, आध्यात्म में धर्म परिवर्तन के बारे मैं कभी मेरा मन कहता है कि, कम से कम धर्म परिवर्तन के कारण लोगों को भोजन, शिक्षा और स्वास्थ-सेवायें तो मिल रहीं है। आप का क्या विचार है?

श्री श्री रवि शंकर : नहीं। धर्म परिवर्तन के बिना भी तुम्हें स्वास्थ-सेवा, शिक्षा, भोजन और सभी कुछ मिल सकता है। जिस धर्म में तुम हो, वह तुम्हारे ऊपर है। तुम्हें पता है, अगर कोई अपनी पूर्ण रुचि के कारण दूसरा धर्म अपनाता है तो वह दूसरी बात है, पर उन्हें भोजन, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा का लालच देकर ऐसा नहीं करना चाहिये।

प्रश्न : मैंने कोर्स करने के बाद शराब और सिगरेट की आदत छोड़ दी है, पर मेरे माता पिता अब भी इन आदतों से ग्रस्त हैं। मैं क्या करूं?

श्री श्री रवि शंकर : अगर तुम्हारे माता यां पिता, किसी एक ने भी, ये कोर्स नहीं किया है और शराब की आदत से ग्रस्त हैं, तो निश्चित ही तुम्हे बुरा लगता होगा। उन्हें किसी भी तरह, कोर्स के लिये ले कर आओ, और तुम पाओगे कि उनकी भी नशे की आदत छूट जायेगी। आज समस्या ये है कि कई परिवार नशे के गु़लाम हैं। ये बहुत दुख की बात है।

बहुत से बच्चे ये पूछते हैं कि उनके माता पिता कैसे ये आदतें छोड़ सकते हैं? तुम्हें इसके लिये काम करना होगा। तुम्हें कोई तरकीब लगानी होगी। कभी कभी बच्चे भी माता पिता को सुधार देते हैं। यहां कितने बच्चे हैं, जिनके माता पिता सुधर गये हैं? (कई बच्चे हाथ उठाते हैं।) बहुत अच्छा।

Sunday, June 27, 2010

"भारतीयता जिसपर हमे गर्व होना चाहिए"

बैंगलोर आश्रम, भारत

प्रश्न : गुरुजी, क्या ये आवश्यक है कि जीवन में कोई ध्येय हो, कोई मंज़िल हो, यां हम बस बहाव के साथ बहते रहें?

श्री श्री रवि शंकर : इन दोनों में चुनाव नहीं कर सकते हो। तुम्हें दोनों को ही अपनाना है। तुम्हारे पास ध्येय होना चाहिये। उस ध्येय की तरफ़ बढ़ो, और रास्ते में जो कुछ भी आये उसे स्वीकार करो।

प्रश्न : आप भारतीय संस्कृति के पश्चिमीकरण पर क्या कहना चाहेंगे?

श्री श्री रवि शंकर : पश्चिम की संस्कृति से उस में जो अच्छी बातों हों, उन्हें स्वीकार लो, जैसे कि सफ़ाई, नियमों का पालन करना..। इस मामले में भारत में गंदगी है। हमें इसे सुधारना है।

मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं। ये सन १९७८ की बात है, जब तुम में से कईयों का जन्म भी नहीं हुआ था। मैं पहली बार स्विट्ज़रलैंड गया था। मैं एक एकाकी स्थान पर घूम रहा था। मैंने एक चौकलेट ली और उसका आवरण सड़क पर फेंक दिया जैसा कि भारत में हम करते हैं। वहां बहुत कम लोग थे। बहुत दूर एक बुज़ुर्ग महिला जो कि छड़ी का सहारा लेकर चल रहीं थी, मेरे पास आकर कहती हैं, ‘तुम्हें इसे उठा कर कूड़ेदान में डालना होगा।’ उन्होंने थोड़ा आगे बढ़ कर मुझे वो स्थान दिखाया जहां कूड़ेदान रखा था।

एक बुज़ुर्ग महिला, छड़ी का सहारा लेकर मेरे पास चल कर आई, मुझे ये बताने के लिये कि मुझे चौकलेट का आवरण कूड़ेदान में डालना चाहिये! मैं इस बात से बहुत प्रभावित हुआ कि लोग अपने शहर को साफ़ रखने की ज़िम्मेदारी लेते हैं। हमें पश्चिम के देशों से ये सीखना चाहिये कि किस तरह से अपने शहर और पर्यावरण को साफ़ रखने की ज़िम्मेदारी और जागरूकता हम में हो।

पश्चिमी देशों में अगर लोग किसी बात का विरोध भी करते हैं तो शांतिपूर्ण ढंग से करते हैं। हमें पश्चिमी संस्कृति से ये बातें सीखनी हैं।

फिर प्रश्न आता है कि पश्चिम की संस्कृति से क्या नहीं सीखना है। रिश्तों में सहजता की जगह औपचारिकता। एक मां को अपनी बेटी से मिलने के लिये उससे समय लेना पड़ता है। एक बेटी को अपनी मां से बात करने के लिये समय मांगना पड़ता है। ये हमारे शहरों में भी कुछ हद तक आ रहा है। सहजता और अपनत्व का भाव समाज में कम हो गया है। हमारी संस्कृति में बुज़ुर्गों का सम्मान होता है, हमें इसे नहीं भूलना चाहिये। ये हमारी संस्कृति का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है।

पश्चिम में प्रेम को बहुत अधिक जताने की प्रथा है। लोग घड़ी घड़ी एक दूसरे को honey, honey कहते हैं। पूर्व की संस्कृति इसके ठीक विपरीत है। तो, प्रेम की अभिव्यक्ति में हमें बीच का मार्ग अपनाना चाहिये। प्रेम की अभिव्यक्ति बिलकुल ना करना, जैसा कि कुछ मां बाप अपने बच्चों के साथ करते हैं, यां भाई बहन आपस में करते हैं, ग़लत है। पर, बार बार प्रेम की अभिव्यक्ति करते रहना भी ग़लत है।
प्रेम की अभिव्यक्ति बीजारोपण जैसा है। अगर बीज को मिट्टी की सतह पर रख दोगे, तो बीज अंकुरित नहीं होगा। पर उसे बहुत गहरे मिट्टी के भीतर दबा दोगे, तब भी वह अंकुरित नहीं होगा।
पूर्व की संस्कृति में ऐसी कई चीज़ें हैं जिसे पश्चिम में लोग चाहते हैं, जैसे कि अपनेपन की भावना, संयुक्त परिवार।

प्रश्न : संयुक्त परिवार की धारणा मेरे लिए नई है। मैं इसके लिए पूरे स्मर्थ में हूँ, पर क्या इसका कोई बुरा प्रभाव भी है?

श्री श्री रवि शंकर : संयुक्त परिवार में कुछ नुक्सान भी होता है, पर जब परिवार के टुकड़े एक nuclear family के रूप में हो जाते हैं तब बस पति, पत्नि और बच्चे रह जाते हैं -- लड़ने के लिये और कोई बचा ही नहीं! तो, वे आपस में ही लड़ते रहते हैं, और फिर मां-बाप और बच्चे, सब अलग हो जाते हैं। संयुक्त परिवार में ये फ़ायदा है कि लड़ाई के बावजूद भी सब साथ रहते हैं। पश्चिम समाज अब संयुक्त परिवार की संस्कृति अपना रहा है। लोग परिवार को महत्व दे रहे हैं और संयुक्त परिवार की ओर वापस जा रहे हैं। उत्सव और त्यौहार पूरे परिवार को मिलकर मनाने से एक उत्त्म वातावरण बना रहता है।

भारतीय संस्कृति जिस पर हमे गर्व होना चाहिए।

हमे भारतीयता को नहीं खोना है। सात चीज़े हैं जिनपर हिन्दूस्तान गर्व कर सकता है। एक तो यहाँ का ध्यान, विज्ञान और योगा। दूसरे हमारे तरह तरह के कपड़े जो हम यहाँ पहनते हैं। आप देखोगे कि विदेशों में लोग ज़्यादा काला और भूरा पहनते हैं। कोई इतनी विविधता नहीं है। वहाँ के लोग यहाँ आकर तरह तरह के रंगीन कपड़े देखकर चकित होते हैं, और हम उनकी ही नकल करने लग जाते हैं। अरे यहाँ के इतने रंगीन और अलग अलग वेषभूषा है, कोई अपना नया स्टाईल तो बनाओ। हमारे रंग-बिरंगे कपड़े हैं, और इतना रंगीन समाज है। उन रंगों को हमे खोना नहीं है। पश्चिम में शरद ऋतु में वनस्पति अपना रंग बदलती है। वहाँ पर कुदरत बहुत रंगीन है। पर लोगों की वेषभूषाओं के रंग केवल काले, नीले यां भूरे होते हैं। हमारे यहाँ कुदरत इतनी रंगीन नहीं होती पर इतनी रंगीन वेषभूषाएं हैं। हमे पश्चिम की नकल करके इनको नहीं छोड़ना है। तो हमे अपने रीति-रिवाज़, खान-पान, कपड़े, और हमारी रंगीन संस्कृति बनाए रखनी है।

उसके बाद हमारा खान-पान। जितनी विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट खान-पान भारत में हैं उनका कोई हिसाब ही नहीं है- । पर हमे लगता है कि मैदे का पिज़्ज़ा खाने से हम अधिक सभ्य हैं। मैं पिज़्ज़ा के खिलाफ़ नहीं हूँ पर इसे हर हफ़ते की आदत बनाना..हमारे पाचन क्रिया पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हम बचपन से ही आटे की चपाती और परांठे खाते आए हैं। यह अधिक सेहतमंद भी है। हमे इसे नहीं बदलना है। अपने खान-पान पर गर्व करो। हमे तो भारत के विभिन्न प्रातों के स्वादिष्ट भोजन पद्दार्थों का भी नहीं पता है। केवल त्रिपुरा में ही १०८ तरह के विभिन्न भोज्य पद्धार्थ हैं।
इसके अतिरिक्त भारतीय संगीत, नृत्य और IT.

इंग्लैंड में एक अध्ययन के अनुसार संस्कृत भाषा पढ़ने वालों के दिमाग की neuro lingual क्रिया बहुत अच्छी होती है। इसका मतलब है जो बच्चा संस्कृत पढ़ता है, वो कोई भी भाषा अच्छे से और जल्दी से सीख सकता है, और उसका दिमाग कंप्यूटर के लिए भी अधिक तीक्ष्ण हो जाता है। इंग्लैंड में इस विषय पर १५ साल की खोज हुई। भारत की IT के क्षेत्र में उन्नति का एक महत्वपूर्ण कारण पृष्ठभूमि में संस्कृत भाषा की नींव है। इस खोज के बाद लंदन के ३ महत्वपूर्ण स्कूलों में संस्कृत भाषा ज़रुरी कर दी गई है। और हमारे यहाँ संस्कृत भूले जा रहे हैं। आप रशियन, इटैलियन, जर्मन और अंग्रेज़ी भाषा को ही लेते हैं तो इसमें ५० प्रतिशत शब्द संस्कृत भाषा से हैं। तमिल भाषा के इलावा बाकी सब भारतीय भाषाओं में संस्कृत भाषा के अधिकतम अंश हैं। ’संस्कृत भाषा भारत की राष्ट्रीय भाषा होनी चाहिए’ - एक वोट की कमी के कारण यह बिल पार्लियामेंट में पास नहीं हो सका। हाल ही में TV में आया था कि सबसे पहला हवाई जाहज भारत ने विश्व को दिया। यह इंग्लैंड के अखबार में भी आया था। पर उस व्यक्ति को जेल में बंद कर दिया गया। उसके १० साल बाद राईट ब्रदर्स ने अपना उड़ान लिया। डी के हरि जी ने भारत की विश्व को देन पर पूरी खोज की है।


Saturday, June 26, 2010

"आध्यात्मिकता से अंतर्ज्ञान विकसित होता है"


प्रश्न : आज के समय में पैसा और शक्ति बहुत जरुरी है| इन सब को पाने के लिए आध्यात्मिकता कैसे मदद करेगी?

श्री श्री रवि शंकर : आपको अमीर बनने के लिए कुछ गलत करने की जरूरत नहीं है| वास्तव में गलत तरीके से पाया हुआ धन बहुत थोड़े समय के लिए रहता है| आध्यात्मिकता से आप में अंतर्ज्ञान विकसित होता है और सकारात्मक विचार आतें हैं। इन सबसे आपमें सही निर्णय लेने की क्षमता आती है|

आपने कभी महसूस किया है कि कुछ लोगों से आप बचने की कोशिश करते हो और कुछ लोगों से आप बात करना चाहते हो? हम में से हर किसी से कुछ खास तरंगे आती हैं| हमारे शब्दों की बजाय इन तरंगों के द्वारा हम अधिक व्यक्त करतें हैं| यदि यह तरंगे सकारात्मक हो जाएँ तो सब कुछ बदल जाता है| इस तरह हमारी पारस्परिक निपुणता बढ़ती है|

प्रश्न : मैं जानता हूँ कोई शादी करके खुश नहीं रह सकता| परन्तु क्या कोई शादी करके प्रबुद्ध हो सकता है?

श्री श्री रवि शंकर : आप ऐसा क्यों सोचते हो कि कोई शादी करके खुश नहीं रह सकता? आप शादी शुदा हो कर खुश भी हो सकते हो| बहुत से कुंवारे लोग हैं जो खुश नहीं है| खुश रहना तो एक स्वभाव है जो आप चुन लेते हो| ये केवल आप पर निर्भर करता है| बहुत से लोग ऐसे हैं जिनके पास नौकरी नहीं है पर खुश हैं| समझदार बनो ओर खुश रहो| चाहे जो भी करो - शादी,बिना शादी के,नौकरी,बिना नौकरी के..परन्तु जो भी कर रहे हो, आपको खुश रहने की जरूरत है|

प्रश्न : दुनिया में बहुत सारी संस्कृतियाँ हैं| क्या कुछ ऐसा है जो सब में समान है?

श्री श्री रविशंकर : कुछ विशेष बातें हैं जो सब जगह मिलती हैं| सुदर्शन क्रिया सब जगह है| आज आप यदि अर्जेंटीना जाते हो,आपको वहां ’आर्ट ऑफ़ लिविंग’ मिलेगा| आप उत्तरी ध्रुव में जाइये वहां आपको ’आर्ट ऑफ़ लिविंग’ मिलेगा| आप मंगोलिया जाओ,वहां ’आर्ट ऑफ़ लिविंग’ मिलेगा| आप फिजी जाओ,न्यूज़ीलैंड जाओ आपको कोई न कोई व्यक्ति सुदर्शन क्रिया करते मिल जाएगा| इसी लिए ’आर्ट ऑफ़ लिविंग’ में सारी बातें सार्वभौमिक रखी हैं|

किसी एक समय में दुनिया जुड़ी हुई थी| अर्जेंटीना में पेरू के लोग अरुणाचल प्रदेश के मूल निवासियों की तरह बहुत सी चीजें करते हैं| अरुणाचल प्रदेश के जन जाति और ब्रिटिश के वेनकोवर के लोगों की बहुत सी बातें एक जैसी हैं| दोनों जगह के लोग दिशायों की पूजा करते थे| दुनिया के विभिन क्षेत्रों के मूल निवासियों में बहुत सी सामानताएं हैं| लिथुयानिया के लोग आपका अभिवादन ब्रेड और नमक से करेंगे। नमक वहां बहुत कीमती चीज है क्योंकि वहां समुद्र नहीं है | इसी तरह से केरल के लोग एक गमले में धान दरवाजे के बाहर लगा रखते हैं जो यह दर्शाता है कि घर में भंडार है और आपका स्वागत है|

कुछ विशेष समानताएं हैं,और कुछ चीजें दूसरे देशों और संस्कृति से बिल्कुल अनोखी और अलग हैं| ये भिन्नताएं रहनी चाहिए| प्रत्येक देश और संस्कृति को यह अद्वितीयता बना कर रखनी चाहिए|रुसी लोगों के लोक नृत्य बहुत सुंदर हैं| डेनमार्क के लोगों के अपने सुंदर तरीके हैं|
प्रेम,करुणा,ध्यान,योग - ये सब सार्वभौमिक हैं|

प्रश्न: मेरे मित्र मुझसे पूछते हैं कि उनके लिए कौन सा ध्यान अच्छा है। मुझे क्या कहना चाहिए उन्हे?

श्री श्री रवि शंकर: यहाँ पर बहुत सी सी डी हैं। कोई भी ध्यान उनके लिए अच्छा होगा।

प्रश्न : क्या मृत्यु के बाद जीवन है?

श्री श्री रवि शंकर : हाँ।

प्रश्न : २१ दिसंबर २०१० को विश्व खत्म हो जाएगा। इस पर आप क्या कहेंगे?

श्री श्री रवि शंकर : मिथ्या कल्पना है।

प्रश्न : मन में विचार कैसे उठते हैं?

श्री श्री रवि शंकर : मैं यह आश्चय करने के लिए तुम पर छोड़ता हूँ। यह एक रहस्य है। रहस्य को मैं माइक पर नहीं बता सकता।

प्रश्न : ब्रह्मचर्या क्या है?

श्री श्री रवि शंकर : मैने इस विष्य पर योगासूत्र में बोला है। तुम्हे उसे सुनना चाहिए। ब्रह्मा का अर्थ है असीम चेतना। ब्रह्मचर्या का अर्थ है उस असीम चेतना में स्थिर हो जाना।

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, मैं बहुत बुद्धिमान हूँ। मुझे किसी ने कहा था कि बुद्धिमान व्यक्ति ध्यान नहीं कर सकता। मैं मूर्ख कैसे बनु?

श्री श्री रवि शंकर : फिर तो मूर्ख वुक्ति भी ध्यान नहीं कर सकता! तुम्हे किसने कह दिया तुम बुद्धिमान हो। तुमने स्वयं को ही लेबल कर लिया कि तुम बुद्धिमान हो। जो व्यक्ति अपने पर किसी तरह का लेबल लगाता है वो मूर्ख ही होता है। यह प्रश्न पूछने से ही तुमने जो चाहा वो तुम्हे मिल गया। यह प्रश्न पूछने की ज़रुरत पड़ी तो तुम बुद्धू हो ही गए।

प्रश्न : क्या हमे भीखारी को कुछ देना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर : अगर कोई हट्टा कट्टा हो, बलवान हो तो नहीं देना चाहिए। देख लेना कहीं वो तुमसे ही ज़ोर ज़बरदस्ती से पैसे नहीं निकलवाए। बच्चों को भी इसमें प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए। अगर तुम्हे कोई वृद्ध महिला मिले और वो कुछ ना कर सकती हो तो उस समय अपने मन की बात सुन लेना। अपने अंतर्मन की आवाज़ सुनो। पर अच्छा है पैसे की बजाए अगर खाने के लिए कुछ दे दिया जाए।

प्रश्न : हमारे माँ-बाप हमसे इतनी अपेक्षा क्यों करते हैं?

श्री श्री रवि शंकर : कुछ सालों में तुम्हे भी मालूम हो जाएगा। मगर तब यह भूलना नहीं कि कभी तुमने भी यह प्रश्न पूछा था।

प्रश्न : आपने मेरे लिए बहुत कुछ किया है। हम आपके लिए क्या कर सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर : तुमसे देश का बहुत कुछ होना है। जैसी खुशी तुम्हे मिली है, अगर तुम ऐसे ही १०, २०..५० लोगों के जीवन में खुशी लाओ। जब तुम खुश होगे और औरों को खुश करोगे तो मुझे इससे खुशी ही मिलेगी।

प्रश्न : पैसे कमाने इतना मुश्किल है। पैसे कमाने का कोई आसान तरीका है क्या?

श्री श्री रवि शंकर : तुम इतने बूढ़े हो गए हो तो मैं तुम्हे कोई आसान रास्ता बताता। तुम में उत्साह है, तुम बुद्धिमान हो..

प्रश्न : ’आर्ट ओफ़ लिविंग’ से इतने लोग जुड़े हैं। हम राजनीति में क्यों नहीं जा रहे?

श्री श्री रवि शंकर : अगर तुम्हारा मन उस दिशा में इतनी रूचि ले रहा है तो तुम्हे ज़रूर जाना चाहिए। मेरा सहयोग तुम्हारे साथ है।

प्रश्न : Basic course और Advance course करने के बाद मेरा गुस्सा ८० प्रतिशत कम हो गया है। मेरा बाकी का गुस्सा कब खत्म होगा?

श्री श्री रवि शंकर : वो भी कम हो जाएगा। थोड़ा गुस्सा रख भी सकते हो। दूसरों के मनोरंजन का साधन तो बन जाता है!

प्रश्न : हमारे शरीर में उर्जा चक्र कौन से होते हैं?

श्री श्री रवि शंकर : अभी तुम्हारा Advance course बाकी है ना? थोड़ा इंतज़ार करो। उत्तर अभी ब्रेक के बाद!

 

Sunday, 6 June 2010

श्री श्री की बाते

डार कोंसीटीच्युशन हॉल
वाशिंगटन डी सी,
अप्रैल २५,२०१०
'आर्ट ऑफ़ लिविंग' में हम एक योजना को लागु करने के लिए इन्तजार नहीं करते हम काम करना शुरू कर देतें हैं और जो भी आवश्यक होता है अपने आप आने लगता है इसे सिद्धि या पूर्णता कहतें हैं - जब जो कुछ भी आवश्यक होगा, मिल जाएगा प्राणायाम और ध्यान की फिर यहाँ भूमिका है इस से आप ऐसे बन जाते हो कि कोई कमी ही महसूस नहीं होती हमें वापिस इस अवस्था में आने की आवश्यकता है वातानुकूलित कमरे और सब तरह के ठाट का क्या फायदा यदि इससे साथ अनिद्रा और मुधुमेह जैसे रोग हों? इसलिए हमें अपने आसपास सकरात्मक उर्जा पैदा करने की जरूरत है ये चिंतित रहने यां सोचते रहने से नहीं हो सकता मैं आपको कार्य करने के दो तरीके बताना चाहूँगा एक तो यह कि आप कुछ करते हो क्योंकि आप को कुछ चाहिए होता है, आप उस कार्य की पूर्णता से खुशी की उम्मीद करते हो दूसरा, आनंद की अभिव्यक्ति के साथ कुछ करना ,आप एक कार्य करते हो क्योंकि आपके पास कुछ है आनंद की अभिव्यक्ति के साथ कुछ करना और आनंद पाने के लिए कुछ करना , दोनों में बहुत अंतर है आज दुनिया में बहुत से लोग अवसाद से पीड़ित हैं आंकड़े बतातें हैं कि आने वाले दशक में यह संख्या बढ़ कर ५० प्रतिशत हो जायेगी दुनिया की आधी जनसंख्या - यह बहुत दुःख की बात है हमें इसे बदलना होगा psychiatric दवाएं लेना समाधान नहीं है ध्यान और प्राणायाम से ही यह बदला जा सकता है
प्रेम सभी नकरात्मक भावनायों का जन्मदाता है जिनको उत्तमता से प्रेम होता है वे शीघ्र क्रोधित हो जाते हैं वे सब कुछ उत्तम चाहते हैं उनमें पित्त अधिक होता है( प्राचीन विज्ञान आयुर्वेद के अनुसार शरीर की एक विशेषता) वे हर चीज में पूर्णता ढूंढते हैं ईर्ष्या प्रेम के कारण होती है आप किसी से प्रेम करते हो तो ईर्ष्या भी आती है लालच आता है जब आप लोगों की बजाय वस्तुयों को अधिक चाहते हो जब आप अपने आप को बहुत ज्यादा प्रेम करते हो तो अभिमान बन जाता है अभिमान अपने आप को विकृत रूप से प्रेम करना है इस ग्रह पर कोई एक भी ऐसा नहीं है जो प्रेम नहीं चाहता और प्रेम से अलग रहना चाहता हो फिर भी हम प्रेम के साथ आने वाले दुःख को नहीं लेना चाहते ऐसी अवस्था कैसे प्राप्त की जा सकती है? अपने अस्तित्व और आत्मा को शुद्ध करके जो कि आध्यात्म द्वारा ही संभव है हम पदार्थ और आत्मा दोनों से बने हैं हमारे शरीर को विटामिन की आवश्यकता होती है यदि शरीर में कोई पोषक तत्व नहीं हो तो शरीर में इसकी कमी हो जाती है इसी तरह हम आत्मा भी है आत्मा सुंदर,सत्य,आनंद,सुख,प्रेम और शांति है मेरे अनुसार आध्यात्म वह है जिससे ये सारे गुण बढ़ते हैं और सीमाएं खत्म हो जाती है हम अपने बच्चों और युवायों की इस अध्यात्मिक तरीके से परवरिश कर सकते हैं
आजकल कॉलेज कैम्पस में हिंसा आम बात हो गई है यह बड़े दुर्भाग्य की बात है यदि वहां हिंसा है तो वहां मूलरूप में कुछ गलत है जब मैं बड़ा हुआ उस समय अहिंसा और समभाव को बहुत गर्व से देखा जाता था स्कूल और कॉलेजों में शांति,ख़ुशी,उत्सव और आनंद लाना होगा पर अगर हम स्वयं दु:ख में है तो यह संभव नहीं होगा पहले हमें अपने दुःख
की ओर ध्यान देना होगा यह कैच २२ की तरह है यदि आप खुश नहीं हो तो आप दूसरों को खुश करने के लिए कुछ नहीं कर सकते तो आप कैसे खुश हो सकते हो? खुश रहने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण महत्त्वपूर्ण है दुखी होने के लिए एक तरीका है यदि आप हर समय केवल अपने बारे में सोचते रहोगे - "मेरा क्या होगा?", तो आप उदास हो जाओगे हमें अपने आप को किसी सेवा परियोजना में व्यस्त रखने और अध्यात्मिक अभ्यास की आवश्यकता है, जिससे नकारात्मक भाव खत्म होते हैं इससे हमारा अस्तित्व शुद्ध होता है, भाव में खुशी आती है और सहज ज्ञान (Intuitive knowledge) प्राप्त होता है अंतर्ज्ञान (Intuition) आवश्यक है यदि आप कोई व्यापारी हो तो आपको किस शेयर में पैसे लगायें जाए, यह जानने के लिए अंतर्ज्ञान की आवश्यकता होगी यदि आप कोई कवि हो या साहित्य से संबंध रखते हो तो भी आपको अंतर्ज्ञान की जरूरत होगी यदि आप डॉक्टर हो तो आप को अंतर्ज्ञान की जरूरत होगी डॉक्टर दवाई का सुझाव केवल अवलोकन के आधार पर ही नहीं देते उसमें किसी और कारण का योगदान भी होता है - अंतर्ज्ञान यहाँ पर उपस्थित सारे डॉक्टर मेरे साथ सहमत होंगे अंतर्ज्ञान तब आ सकता है जब हम अपने भीतर जाते हैं बिना अंतर्ज्ञान और आध्यात्म के जीवन बिना सिम के मोबिल इस्तेमाल करने जैसा है हम प्रार्थना करतें हैं परन्तु उस स्रोत से सम्पर्क में नहीं होते तब हम हैरान होते हैं कि हमारी प्रार्थना सुनी क्यों नहीं जा रही क्योंकि हम में आध्यात्मिकता और मानवीय मूल्य नहीं होते इस तरह से बहुत से लोग नास्तिक बन जाते हैं उनके जीवन में एक घटना होती है, उनकी प्रार्थना सफल नहीं होती और वे भ्रम में आ जातें हैं हम में से हर एक में विशाल क्षमता है आपके विचार बहुत शक्तिशाली हैं आप जो चाहें बना सकते हो इसका मतलब यह नहीं कि कल ही तुम चाँद पर जा सकते हो परन्तु ऐसा होने के लिए पहले दृष्टि रखना आवश्यक है पहले अंतर्ज्ञान की शक्ति आनी चाहिए पहले यह विश्वास करो कि आपके लिए असीमित प्रेम और शांति में रहना संभव है एक बच्चे के रूप में आप इस अवस्था का अनुभव कर चुके हो तब हम जोश से भरे हुए थे ऐसा अभ भी संभव है
्न : कोई हर रोज कैसे खुश रह सकता है?
श्री श्री रवि शंकर : उदास होने के लिए कोई कारण होना चाहिए खुश होने के लिए किसी कारण की जरूरत नहीं होती
प्रश्न : जब कोई आपसे घृणा करे और उनकी उपस्थिति में आपको अच्छा न लगे, उस स्थिति में क्या करना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर : उन्हें आशीर्वाद दो शांत और निर्मल मन लेज़र की किरन की तरह हो जाता है तब आपके पास आशीर्वाद की शक्ति आ जाती है भारत और चीन में एक प्रथा है जब भी घर में कोई शादी या समारोह हो तो आपको घर में सबसे बड़े व्यक्ति के पास जाकर उनका आशीर्वाद लेते है इसके पीछे वैज्ञानिक कारण है जैसे जैसे आप बड़े होते हो तो आप और अधिक निर्मल और संतुष्ट हो जाते हो एक संतुष्ट मन के पास आशीर्वाद की शक्ति होती है यदि आप संतुष्ट नहीं हो तो आपके पास आशीर्वाद की शक्ति नहीं होगी,तब आप किसी और को आशीर्वाद कैसे दे सकते हो? यदि आप अपने जीवन में पाने वाली वस्तुओं से कृतज्ञ हो तो आपमें लोगों को आशीर्वाद देने की योग्यता आती है पहले आप केन्द्रित हो यदि वे आपसे घृणा करते हैं तो क्या? आप खुश रहो और उनको आशीर्वाद दो कि उनका घृणा से पीछा छूट जाए प्राय हम लोगों को सुधारने की कोशिश करते हैं क्योंकि उनके रवैये से हम परेशान हो जाते हैं परन्तु यदि आपक इरादा उनमे बदलाव लाना है क्योंकि उनका बरताव उनको कष्ट दे रहा है तो, धीरे धीरे उनमे बदलाव अवश्य आएगा क्या आप समझ रहे हो मैं क्या कह रहा हूँ?
प्र : सेवा का ऐसा कौनसा कार्य है जो हर कोई कर सकता है?
श्री श्री रवि शंकर : कोई भी कार्य सेवा का कार्य हो सकता है दुनिया आप से ऐसे काम की आशा नहीं करेगी जो आप से न हो सके आप जो भी कर सकते हैं और बदले में बिना किसी अपेक्षा के जो आप करते हैं वही सेवा है कोई भी कार्य दो तरह से हो सकता है पहला, हम इसलिए करें कि हमें काम पूर्ण होने के बाद खुशी की अपेक्षा है दूसरा, हम आनंद के साथ कार्य पूर्ण करते है नौकरी और सेवा में यही फ़र्क है
प्रश्न : मैं जन्म से मांसाहारी हूँ और मुझे यह समझ में नहीं आता कि माँस क्यों नहीं खाना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर : थोड़ी देर के लिए आध्यात्म के बारे में भूल जाओ। एक खोज के अनुसार एक किलो माँस पैदा करने में जितनी खपत होती है उससे ४०० व्यक्ति भोजन कर सकते हैं। एक और खोज के अनुसर अगर केवल १० प्रतिशत लोग मांसाहार छोड़ दें तो ग्लोबल वार्मिंग की समस्या खत्म हो जाएगी। इस आधार पर इस ग्रह के लिए और तांकि सब लोगों को भोजन मिल सके, इस के लिए मांसाहारी भोजन की खपत कम करना ज़रुरी है। भगवान ने हमें धरती की और धरती पर रहने वालों की देखभाल करने की होश तो दी है।
हम जितना भोजन उगाते हैं उससे ४० - ५० प्रतिशत अधिक इस्तेमाल करते हैं। ध्यान के साथ साथ पेड़ उगाना, जानवरों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी और शाकाहारी होना भी आध्यात्म का हिस्सा है।
हम अपने जीवन में प्राय धन्यवाद बोलते हैं और क्षमा मांगते हैं पर महसूस नहीं करते यह लगभग वैसे ही है जैसे विमान परिचारिकाएं विमान से उतरते समय आपको बोलती हैं, 'आपका दिन शुभ हो' विमान प्रचारिका आपका अभिवादन करती है परन्तु बिना किसी भाव के यही शब्द यदि किसी प्रिय व्यक्ति की ओर से आये तो इनका भाव ओर असर अलग रहता है हमारा अस्तित्व हमारे शब्दों से अधिक महतव्पूर्ण है एक बच्चा बिना बोले जो प्रेम का भाव व्यक्त करता है कोई दूसरा बोल कर भी वैसे नहीं कर सकता हम सब इस भाव के साथ सम्पन्न है परन्तु यह भाव कहीं परेशानी और भागदौड़ में गुम हो गया है यह तनाव के कारण है ना तो घर पर और ना ही स्कूल में किसी ने हमें अपने भाव को शुद्ध रखना सिखाया है यदि हम घर पर गुस्सा हो तो यही गुस्सा लेकर दफ़तर पहुंच जाते हैंजब हम दफ़तर में परेशान रहते हैं तो यह तनाव हमारे शरीर की कार्य प्रणाली में आ जाता है और हम घर पर भी तनाव में रहते हैं हम इसे छोड़ नहीं पाते इसके लिए हमे अपने भीतरी स्रोत में जाना होगा अब प्रश्न यह है - हम अपने स्रोत के पास कैसे जाएँ? हम अपने भाव को कैसे शुद्ध करें? इसी के लिए ध्यान किया जाता है ये शोर से मौन की ओर जाना है
बहुत से लोग सोचते हैं कि ध्यान यानि एकाग्रता ऐसा नहीं है बल्कि ध्यान एकाग्रता के विपरीत है यदि आपको किसी वाहन को चलाना हो तो एकाग्रता की आवश्यकता होती है यदि आपको विश्राम करना हो तो किसी प्रयास की जरूरत नहीं होती ध्यान गहरा विश्राम है नाकि एकाग्रता इसलिए यदि ध्यान में कोई विचार आते हैं तो हम उनके पीछे नहीं भागते जितना हम उनके पीछे भागते हैं उतने ही और विचार आते हैं यदि आप किसी विचार से पीछा छुड़ाने का प्रयत्न करते हो तो यह आसानी से नहीं जायेगा यह और सशक्त हो कर वापिस आ जाएगा हम एक और रणनीति अपनाते हैं यदि कोई बुरे विचार आते हैं तो हम उन्हें आने देते हैं हम उन्हें मित्र बना लेते हैं तब वे गायब हो जाते हैं यदि अच्छे विचार आते हैं तो हम उन्हें आने देते हैं तब वे शांत हो जाते हैं जो कोई भी विचार आये हम उन्हें रोकने की कोशिश नहीं करते यह एक प्रयास रहित प्रक्रिया है
ध्यान में उतरने के लिए तीन महत्वपूर्ण नियम हैं सबसे पहला है - "मुझे इस समय कुछ नहीं चाहिए" जब आपको कुछ नहीं चाहिए तो आप को कुछ करना भी नहीं होता यदि आप कहो "मुझे पानी पीना है यां मुझे अपनी अवस्था बदलनी है" तो ध्यान नहीं हो सकता दूसरा महत्वपूर्ण नियम है - "मैं कुछ नहीं करता" आप केवल साँस लेते हो और फिर - "मैं कुछ नहीं हूँ" ध्यान के समय आप अपने बारे में सभी धारणायों का त्याग कर देते हो उस समय ना आप बुद्धिमान हो, ना आप मूर्ख हो, ना अमीर हो, ना गरीब होतो आप हो क्या? कुछ भी नहीं "मैं कुछ नहीं हूँ मैं कुछ नहीं चाहता हूँ मैं कुछ नहीं करता" ध्यान के बाद आप दोबारा कुछ हो सकते हो यह आपकी इच्छा है,परन्तु यदि ध्यान के समय आप स्वयं को महान यां बेकार समझते हो तो आप अपने भीतर विश्राम नहीं कर सकते उस चेतना में स्थित होने के लिए जिससे हम सब बने हैं यह सबसे पहला कदम है यह ध्वनी से मौन की यात्रा है
इस तरह से हम तीन बार ॐ का उच्चारण करके अपने चारों ओर प्रेम और शांति की लहर फैलायेंगे यह आन्तरिक शांति है जब हम में यह आन्तरिक शांति होती है,हम में धैर्य होता है और हमारा सोचने का तरीका बेहतर होता है हमारी निरिक्षण करने की योग्यता और अभिव्यक्ति बेहतर होती है प्राय हम यह कहते हैं, "कोई भी मुझे नहीं समझता" हम कभी नहीं कहते, "मैं अपने को अच्छे से व्यक्त नहीं कर पाया" हमारी अभिव्यक्ति ध्यान से सुधरती है यह ध्यान का जादू है
कुछ लोग पूछ्ते हैं ध्यान से क्या होता है? इससे समाज हिंसा रहित हो सकता है आज कोल्म्बिन हाई स्कूल की ग्यारहवी बर्षगांठ है अपराधी और अपराध के शिकार हुए दोनों के लिए ही जानने की जरुरत है कि मन को कैसे शांत करना है ना तो स्कूल में और ना ही घर पर कोई सिखाता है कि नकरात्मक भावनायों से कैसे पीछा छुड़ाना है ये भावनाएं आती हैं और आप इनमें फस के रह जाते हो वर्ल्ड हेल्थ संगठन (WHO) की भविष्यवाणी है अगले दस बर्षों में अवसाद (Depression) सबसे बड़ा घातक रोग होगा अवसाद के बाद कैंसर दूसरा बड़ा घातक रोग होगा ध्यान इससे निपटने के लिए आवश्यक है प्राणायाम,योग,सुदर्शन क्रिया और ध्यान से इस तरह के बदलाव लाये जा सकतें हैं
वे कुछ आदतें क्या हैं जिनसे सफलता मिलेगी?
श्री श्री रविशंकर : पहले आप को सफलता को परिभाषित करना होगा बहुत बड़े बैंक खाते हो पर नींद न आए तो यह सफलता नहीं है आपके पास बहुत से पैसे हो सकते हैं परन्तु उसके साथ यदि आपको बहुत सी स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियां हैं, डर और चिंता से भरे हो,आपके पास मित्र नहीं है तो यह सफलता नहीं है मेरे लिए सफलता आपकी मुस्कान से मापी जा सकती है आपका जीवन कितना मुसकान से भरा है और अन्य लोगों की मुस्कान के लिए आपका क्या योगदान है? आपको अपनी योग्यता में कितना साहस और विश्वास है? आप केवल अपने भविष्य को लेकर चिंतित नहीं हैं- मेरे लिए यह सफलता का निशान है पैसा जीवन के लिए आवश्यक है परन्तु जीवन केवल पैसे के लिए ही नहीं है
प्रश्न : आप सफलता को कैसे परिभाषित करोगे?
श्री श्री रवि शंकर : सफलता को आपकी दिल से आने वाली मुस्कुराहटों से तोला जा सकता है यह आपका आत्मविश्वास है जिनसे आप चुनौतिओं का सामना करते हो जब सब ठीक चल रहा हो तो आप आसानी से मुस्कुरा सकते हो जब आप पूरी तरह असफल रहते हो और फिर भी मुस्कुरा सकते हो ,वह सफलता है एक व्यक्ति जो जीवन की सारी चुनौतियों को स्वीकार करता है ,सफल है!
प्रश्न : हम अपने को बुरे विचारों से कैसे बचा सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : हम जैसा सोचते हैं वैसा ही बन जाते हैं। विशेषकर एक भक्त जो सोचता है वो सच हो जाता है। जब तुम एक भक्त होते हो तो बुरे विचार नहीं आते। भक्ति से सब विकल्प दूर हो जाते हैं।
प्रश्न : गुरु तत्व क्या है?
श्री श्री रवि शंकर : तुमने यह सवाल पूछा क्योंकि तुम कुछ जानना चाहते हैं। कुछ जानने के लिए प्यास शिष्यत्व है। जो तुम्हे उत्तर देता है वो गुरु है। और वो स्रोत जिसमे जीवन का हर उत्तर निहित है, गुरु तत्व है। हमें उत्तर क्यों चाहिए? ताकिं हम पूर्ण महसूस करें। ज्ञान हमें पूर्ण करता है। जिस तत्व की उपस्थिति में जीवन में कोइ कमी नहीं रहती, वो गुरु तत्व है।