Wednesday 30 June 2010

Guru ke Uttar

Monday, June 28, 2010

"पूर्व और पश्चिम के सर्वश्रेष्ठ गुण अपना कर एक उत्तम समाज की संरचना कर सकते हैं"

बैंगलोर आश्रम, भारत

१९८० में हमने पहली बार दिल्ली में आयुर्वेद पर एक सम्मेलन का आयोजन किया था। आयुर्वेद के वरिष्ठ वैद्य और गुणीजन, और AIIMS के सर्वश्रेष्ठ एलोपैथिक डौक्टरों ने इसमे हिस्सा लिया। वहां एक मज़ेदार घटना हुई। मैंने सभी डौक्टरों से पूछा कि भोजन में हल्दी का क्या महत्व है? एक ऐलोपैथिक डौक्टर नें कहा कि हल्दी केवल रंग के किए है, और इसके अतिरिक्त इसका भोजन में कोई महत्व नहीं है। पर एक आयुर्वेदिक डौक्टर ने कहा कि हल्दी antioxidant होने के कारण, बढ़ती उम्र के दुष्प्रभावों की रोकथाम करता है।

दस सालों के बाद, १९९० में ऐलोपैथिक डौक्टर भी शोध से इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हल्दी antioxidant है, और ये कोशिकाओं को बढ़ती उम्र के दुष्प्रभावों से बचाती है, और आपके शरीर में युवापन बना रहता है। आयुर्वेद, एक संपूर्ण चिकित्सा प्रणाली है। जो आयुर्वेद का ज्ञान हम लोगों के पास हज़ारों सालो से था, उस ज्ञान को स्वीकार करने में इतना समय लग गया!

नीम, आमला और नींबू जैसी कई दिव्य जड़ी बूटियां बहुत महत्वपूर्ण हैं – ये सभी antioxidants हैं। कड़ी पत्ता, जिसे हम चिवड़ें और कई तले व्यंजनों में डालते हैं, तुम्हें इसका महत्व पता है? ये खराब cholesterol को कम करता है। किसी का cholesterol बढ़ गया हो तो उसे कड़ी पत्ते की चटनी बना कर तांबे के बर्तन में परोसे, वह ठीक हो जायेगा। cholesterol घटाने के लिए ली गई कुछ एलोपैथिक दवायें जिगर और गुर्दों पर दुष्प्रभाव डालती हैं। तो, ये कुछ अद्भुत चीज़ें हैं जो हमारे देश में पहले से ही मौजूद हैं।

१९८० से हमने पंचकर्मा को प्रोत्साहित किया। कई प्रतिष्ठित आयुर्वेदिक डौक्टर हमारे साथ जुड़ गये और उन्होनें हमारे साथ जगह जगह की यात्रा की। वे नाड़ी परीक्षण से ये जान लेते हैं कि किस को क्या तकलीफ़ है, और ये भी बता देते हैं कि निकट भविष्य में क्या बीमारी हो सकती है। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां उनके इलाज से बड़ी बड़ी बीमारियां ठीक हो गई।

मुझे एक घटना याद है, जब नाड़ी परीक्षण के बाद आयुर्वैदिक डौक्टर से अपने स्वास्थ्य का इतिहास सुन कर एक व्यक्ति अचंभित हो गया कि बिना बताये वे ये कैसे जान गये। ऐसे एक-दो नहीं, हज़ारों दृष्टांत हैं। हमारी कमी है कि हम आंकड़ों का संकलन कर उस पर शोध प्रकाशित नहीं करते हैं। हमें वैज्ञानिक और शोध की दृष्टि से इसे देखना चाहिये। हमें पश्चिम से ये सीखना चाहिये। हम उनकी अच्छी बाते वहीं छोड़ आते हैं पर बुरी बाते सीख आते हैं।

प्रश्न : मैं एक विद्यार्थी हूं, और यहां की शिक्षा प्रणाली से बहुत प्रभावित हूं। मुझे कुछ ऐसी बात सिखाइये जो मैं अपने साथ वापिस ले जा सकूं।

श्री श्री रवि शंकर : अपने शिक्षकों का सम्मान करो। भारतीय शिक्षा प्रणाली में गुरु का बहुत सम्मान है। इस सम्मान की पश्चिम के विद्यालयों और महाविद्यालयों में कमी है। अपने से बड़ों का भी सम्मान करो।
 तो, हम एक नई लहर बनायें जहां पूरब और पश्चिम की संस्कृतियों से सर्वश्रेष्ठ गुण अपना कर एक उत्तम वैश्विक परिवार बनाये। दोनों से सर्वश्रेष्ठ ले कर एक सुंदर समाज का निर्माण करें।

प्रश्न : गुरुजी मैं ऐसी नौकरी में हूं जहां सरकारी अफ़सरों को रिश्वत दिये बिना कोई काम नहीं हो पाता है। मेरा मार्गदर्शन कीजिये कि मैं बिना रिश्वत दिये अपना काम कैसे कराऊं?

श्री श्री रवि शंकर : तुम कर सकते हो। तुम उनकी आंखों में देख कर कहो, ‘मैं आध्यात्म के पथ पर चलता हूं, मैं रिश्वत नहीं दूंगा। अगर आप चाहो तो मैं पचास बार तुम्हारे पास आउंगा, पर रिश्वत नहीं दूंगा।’ तुम्हारी आवाज़ दृढ़ पर नम्र हो, मिठास और दृढ़ता। कई बार हम सच कहते हैं पर गुस्से में कह जाते हैं।मन में गुस्सा या नफ़रत हो, तो सच बोलने पर भी सफलता नहीं मिल पाती। दृढ़ता और मिठास से अपनी बात कहो। ऐसा एक-दो बार करो, फिर देखो क्या होता है।

प्रश्न : गुरुजी, आध्यात्म में धर्म परिवर्तन के बारे मैं कभी मेरा मन कहता है कि, कम से कम धर्म परिवर्तन के कारण लोगों को भोजन, शिक्षा और स्वास्थ-सेवायें तो मिल रहीं है। आप का क्या विचार है?

श्री श्री रवि शंकर : नहीं। धर्म परिवर्तन के बिना भी तुम्हें स्वास्थ-सेवा, शिक्षा, भोजन और सभी कुछ मिल सकता है। जिस धर्म में तुम हो, वह तुम्हारे ऊपर है। तुम्हें पता है, अगर कोई अपनी पूर्ण रुचि के कारण दूसरा धर्म अपनाता है तो वह दूसरी बात है, पर उन्हें भोजन, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा का लालच देकर ऐसा नहीं करना चाहिये।

प्रश्न : मैंने कोर्स करने के बाद शराब और सिगरेट की आदत छोड़ दी है, पर मेरे माता पिता अब भी इन आदतों से ग्रस्त हैं। मैं क्या करूं?

श्री श्री रवि शंकर : अगर तुम्हारे माता यां पिता, किसी एक ने भी, ये कोर्स नहीं किया है और शराब की आदत से ग्रस्त हैं, तो निश्चित ही तुम्हे बुरा लगता होगा। उन्हें किसी भी तरह, कोर्स के लिये ले कर आओ, और तुम पाओगे कि उनकी भी नशे की आदत छूट जायेगी। आज समस्या ये है कि कई परिवार नशे के गु़लाम हैं। ये बहुत दुख की बात है।

बहुत से बच्चे ये पूछते हैं कि उनके माता पिता कैसे ये आदतें छोड़ सकते हैं? तुम्हें इसके लिये काम करना होगा। तुम्हें कोई तरकीब लगानी होगी। कभी कभी बच्चे भी माता पिता को सुधार देते हैं। यहां कितने बच्चे हैं, जिनके माता पिता सुधर गये हैं? (कई बच्चे हाथ उठाते हैं।) बहुत अच्छा।

Sunday, June 27, 2010

"भारतीयता जिसपर हमे गर्व होना चाहिए"

बैंगलोर आश्रम, भारत

प्रश्न : गुरुजी, क्या ये आवश्यक है कि जीवन में कोई ध्येय हो, कोई मंज़िल हो, यां हम बस बहाव के साथ बहते रहें?

श्री श्री रवि शंकर : इन दोनों में चुनाव नहीं कर सकते हो। तुम्हें दोनों को ही अपनाना है। तुम्हारे पास ध्येय होना चाहिये। उस ध्येय की तरफ़ बढ़ो, और रास्ते में जो कुछ भी आये उसे स्वीकार करो।

प्रश्न : आप भारतीय संस्कृति के पश्चिमीकरण पर क्या कहना चाहेंगे?

श्री श्री रवि शंकर : पश्चिम की संस्कृति से उस में जो अच्छी बातों हों, उन्हें स्वीकार लो, जैसे कि सफ़ाई, नियमों का पालन करना..। इस मामले में भारत में गंदगी है। हमें इसे सुधारना है।

मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं। ये सन १९७८ की बात है, जब तुम में से कईयों का जन्म भी नहीं हुआ था। मैं पहली बार स्विट्ज़रलैंड गया था। मैं एक एकाकी स्थान पर घूम रहा था। मैंने एक चौकलेट ली और उसका आवरण सड़क पर फेंक दिया जैसा कि भारत में हम करते हैं। वहां बहुत कम लोग थे। बहुत दूर एक बुज़ुर्ग महिला जो कि छड़ी का सहारा लेकर चल रहीं थी, मेरे पास आकर कहती हैं, ‘तुम्हें इसे उठा कर कूड़ेदान में डालना होगा।’ उन्होंने थोड़ा आगे बढ़ कर मुझे वो स्थान दिखाया जहां कूड़ेदान रखा था।

एक बुज़ुर्ग महिला, छड़ी का सहारा लेकर मेरे पास चल कर आई, मुझे ये बताने के लिये कि मुझे चौकलेट का आवरण कूड़ेदान में डालना चाहिये! मैं इस बात से बहुत प्रभावित हुआ कि लोग अपने शहर को साफ़ रखने की ज़िम्मेदारी लेते हैं। हमें पश्चिम के देशों से ये सीखना चाहिये कि किस तरह से अपने शहर और पर्यावरण को साफ़ रखने की ज़िम्मेदारी और जागरूकता हम में हो।

पश्चिमी देशों में अगर लोग किसी बात का विरोध भी करते हैं तो शांतिपूर्ण ढंग से करते हैं। हमें पश्चिमी संस्कृति से ये बातें सीखनी हैं।

फिर प्रश्न आता है कि पश्चिम की संस्कृति से क्या नहीं सीखना है। रिश्तों में सहजता की जगह औपचारिकता। एक मां को अपनी बेटी से मिलने के लिये उससे समय लेना पड़ता है। एक बेटी को अपनी मां से बात करने के लिये समय मांगना पड़ता है। ये हमारे शहरों में भी कुछ हद तक आ रहा है। सहजता और अपनत्व का भाव समाज में कम हो गया है। हमारी संस्कृति में बुज़ुर्गों का सम्मान होता है, हमें इसे नहीं भूलना चाहिये। ये हमारी संस्कृति का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है।

पश्चिम में प्रेम को बहुत अधिक जताने की प्रथा है। लोग घड़ी घड़ी एक दूसरे को honey, honey कहते हैं। पूर्व की संस्कृति इसके ठीक विपरीत है। तो, प्रेम की अभिव्यक्ति में हमें बीच का मार्ग अपनाना चाहिये। प्रेम की अभिव्यक्ति बिलकुल ना करना, जैसा कि कुछ मां बाप अपने बच्चों के साथ करते हैं, यां भाई बहन आपस में करते हैं, ग़लत है। पर, बार बार प्रेम की अभिव्यक्ति करते रहना भी ग़लत है।
प्रेम की अभिव्यक्ति बीजारोपण जैसा है। अगर बीज को मिट्टी की सतह पर रख दोगे, तो बीज अंकुरित नहीं होगा। पर उसे बहुत गहरे मिट्टी के भीतर दबा दोगे, तब भी वह अंकुरित नहीं होगा।
पूर्व की संस्कृति में ऐसी कई चीज़ें हैं जिसे पश्चिम में लोग चाहते हैं, जैसे कि अपनेपन की भावना, संयुक्त परिवार।

प्रश्न : संयुक्त परिवार की धारणा मेरे लिए नई है। मैं इसके लिए पूरे स्मर्थ में हूँ, पर क्या इसका कोई बुरा प्रभाव भी है?

श्री श्री रवि शंकर : संयुक्त परिवार में कुछ नुक्सान भी होता है, पर जब परिवार के टुकड़े एक nuclear family के रूप में हो जाते हैं तब बस पति, पत्नि और बच्चे रह जाते हैं -- लड़ने के लिये और कोई बचा ही नहीं! तो, वे आपस में ही लड़ते रहते हैं, और फिर मां-बाप और बच्चे, सब अलग हो जाते हैं। संयुक्त परिवार में ये फ़ायदा है कि लड़ाई के बावजूद भी सब साथ रहते हैं। पश्चिम समाज अब संयुक्त परिवार की संस्कृति अपना रहा है। लोग परिवार को महत्व दे रहे हैं और संयुक्त परिवार की ओर वापस जा रहे हैं। उत्सव और त्यौहार पूरे परिवार को मिलकर मनाने से एक उत्त्म वातावरण बना रहता है।

भारतीय संस्कृति जिस पर हमे गर्व होना चाहिए।

हमे भारतीयता को नहीं खोना है। सात चीज़े हैं जिनपर हिन्दूस्तान गर्व कर सकता है। एक तो यहाँ का ध्यान, विज्ञान और योगा। दूसरे हमारे तरह तरह के कपड़े जो हम यहाँ पहनते हैं। आप देखोगे कि विदेशों में लोग ज़्यादा काला और भूरा पहनते हैं। कोई इतनी विविधता नहीं है। वहाँ के लोग यहाँ आकर तरह तरह के रंगीन कपड़े देखकर चकित होते हैं, और हम उनकी ही नकल करने लग जाते हैं। अरे यहाँ के इतने रंगीन और अलग अलग वेषभूषा है, कोई अपना नया स्टाईल तो बनाओ। हमारे रंग-बिरंगे कपड़े हैं, और इतना रंगीन समाज है। उन रंगों को हमे खोना नहीं है। पश्चिम में शरद ऋतु में वनस्पति अपना रंग बदलती है। वहाँ पर कुदरत बहुत रंगीन है। पर लोगों की वेषभूषाओं के रंग केवल काले, नीले यां भूरे होते हैं। हमारे यहाँ कुदरत इतनी रंगीन नहीं होती पर इतनी रंगीन वेषभूषाएं हैं। हमे पश्चिम की नकल करके इनको नहीं छोड़ना है। तो हमे अपने रीति-रिवाज़, खान-पान, कपड़े, और हमारी रंगीन संस्कृति बनाए रखनी है।

उसके बाद हमारा खान-पान। जितनी विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट खान-पान भारत में हैं उनका कोई हिसाब ही नहीं है- । पर हमे लगता है कि मैदे का पिज़्ज़ा खाने से हम अधिक सभ्य हैं। मैं पिज़्ज़ा के खिलाफ़ नहीं हूँ पर इसे हर हफ़ते की आदत बनाना..हमारे पाचन क्रिया पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हम बचपन से ही आटे की चपाती और परांठे खाते आए हैं। यह अधिक सेहतमंद भी है। हमे इसे नहीं बदलना है। अपने खान-पान पर गर्व करो। हमे तो भारत के विभिन्न प्रातों के स्वादिष्ट भोजन पद्दार्थों का भी नहीं पता है। केवल त्रिपुरा में ही १०८ तरह के विभिन्न भोज्य पद्धार्थ हैं।
इसके अतिरिक्त भारतीय संगीत, नृत्य और IT.

इंग्लैंड में एक अध्ययन के अनुसार संस्कृत भाषा पढ़ने वालों के दिमाग की neuro lingual क्रिया बहुत अच्छी होती है। इसका मतलब है जो बच्चा संस्कृत पढ़ता है, वो कोई भी भाषा अच्छे से और जल्दी से सीख सकता है, और उसका दिमाग कंप्यूटर के लिए भी अधिक तीक्ष्ण हो जाता है। इंग्लैंड में इस विषय पर १५ साल की खोज हुई। भारत की IT के क्षेत्र में उन्नति का एक महत्वपूर्ण कारण पृष्ठभूमि में संस्कृत भाषा की नींव है। इस खोज के बाद लंदन के ३ महत्वपूर्ण स्कूलों में संस्कृत भाषा ज़रुरी कर दी गई है। और हमारे यहाँ संस्कृत भूले जा रहे हैं। आप रशियन, इटैलियन, जर्मन और अंग्रेज़ी भाषा को ही लेते हैं तो इसमें ५० प्रतिशत शब्द संस्कृत भाषा से हैं। तमिल भाषा के इलावा बाकी सब भारतीय भाषाओं में संस्कृत भाषा के अधिकतम अंश हैं। ’संस्कृत भाषा भारत की राष्ट्रीय भाषा होनी चाहिए’ - एक वोट की कमी के कारण यह बिल पार्लियामेंट में पास नहीं हो सका। हाल ही में TV में आया था कि सबसे पहला हवाई जाहज भारत ने विश्व को दिया। यह इंग्लैंड के अखबार में भी आया था। पर उस व्यक्ति को जेल में बंद कर दिया गया। उसके १० साल बाद राईट ब्रदर्स ने अपना उड़ान लिया। डी के हरि जी ने भारत की विश्व को देन पर पूरी खोज की है।


Saturday, June 26, 2010

"आध्यात्मिकता से अंतर्ज्ञान विकसित होता है"


प्रश्न : आज के समय में पैसा और शक्ति बहुत जरुरी है| इन सब को पाने के लिए आध्यात्मिकता कैसे मदद करेगी?

श्री श्री रवि शंकर : आपको अमीर बनने के लिए कुछ गलत करने की जरूरत नहीं है| वास्तव में गलत तरीके से पाया हुआ धन बहुत थोड़े समय के लिए रहता है| आध्यात्मिकता से आप में अंतर्ज्ञान विकसित होता है और सकारात्मक विचार आतें हैं। इन सबसे आपमें सही निर्णय लेने की क्षमता आती है|

आपने कभी महसूस किया है कि कुछ लोगों से आप बचने की कोशिश करते हो और कुछ लोगों से आप बात करना चाहते हो? हम में से हर किसी से कुछ खास तरंगे आती हैं| हमारे शब्दों की बजाय इन तरंगों के द्वारा हम अधिक व्यक्त करतें हैं| यदि यह तरंगे सकारात्मक हो जाएँ तो सब कुछ बदल जाता है| इस तरह हमारी पारस्परिक निपुणता बढ़ती है|

प्रश्न : मैं जानता हूँ कोई शादी करके खुश नहीं रह सकता| परन्तु क्या कोई शादी करके प्रबुद्ध हो सकता है?

श्री श्री रवि शंकर : आप ऐसा क्यों सोचते हो कि कोई शादी करके खुश नहीं रह सकता? आप शादी शुदा हो कर खुश भी हो सकते हो| बहुत से कुंवारे लोग हैं जो खुश नहीं है| खुश रहना तो एक स्वभाव है जो आप चुन लेते हो| ये केवल आप पर निर्भर करता है| बहुत से लोग ऐसे हैं जिनके पास नौकरी नहीं है पर खुश हैं| समझदार बनो ओर खुश रहो| चाहे जो भी करो - शादी,बिना शादी के,नौकरी,बिना नौकरी के..परन्तु जो भी कर रहे हो, आपको खुश रहने की जरूरत है|

प्रश्न : दुनिया में बहुत सारी संस्कृतियाँ हैं| क्या कुछ ऐसा है जो सब में समान है?

श्री श्री रविशंकर : कुछ विशेष बातें हैं जो सब जगह मिलती हैं| सुदर्शन क्रिया सब जगह है| आज आप यदि अर्जेंटीना जाते हो,आपको वहां ’आर्ट ऑफ़ लिविंग’ मिलेगा| आप उत्तरी ध्रुव में जाइये वहां आपको ’आर्ट ऑफ़ लिविंग’ मिलेगा| आप मंगोलिया जाओ,वहां ’आर्ट ऑफ़ लिविंग’ मिलेगा| आप फिजी जाओ,न्यूज़ीलैंड जाओ आपको कोई न कोई व्यक्ति सुदर्शन क्रिया करते मिल जाएगा| इसी लिए ’आर्ट ऑफ़ लिविंग’ में सारी बातें सार्वभौमिक रखी हैं|

किसी एक समय में दुनिया जुड़ी हुई थी| अर्जेंटीना में पेरू के लोग अरुणाचल प्रदेश के मूल निवासियों की तरह बहुत सी चीजें करते हैं| अरुणाचल प्रदेश के जन जाति और ब्रिटिश के वेनकोवर के लोगों की बहुत सी बातें एक जैसी हैं| दोनों जगह के लोग दिशायों की पूजा करते थे| दुनिया के विभिन क्षेत्रों के मूल निवासियों में बहुत सी सामानताएं हैं| लिथुयानिया के लोग आपका अभिवादन ब्रेड और नमक से करेंगे। नमक वहां बहुत कीमती चीज है क्योंकि वहां समुद्र नहीं है | इसी तरह से केरल के लोग एक गमले में धान दरवाजे के बाहर लगा रखते हैं जो यह दर्शाता है कि घर में भंडार है और आपका स्वागत है|

कुछ विशेष समानताएं हैं,और कुछ चीजें दूसरे देशों और संस्कृति से बिल्कुल अनोखी और अलग हैं| ये भिन्नताएं रहनी चाहिए| प्रत्येक देश और संस्कृति को यह अद्वितीयता बना कर रखनी चाहिए|रुसी लोगों के लोक नृत्य बहुत सुंदर हैं| डेनमार्क के लोगों के अपने सुंदर तरीके हैं|
प्रेम,करुणा,ध्यान,योग - ये सब सार्वभौमिक हैं|

प्रश्न: मेरे मित्र मुझसे पूछते हैं कि उनके लिए कौन सा ध्यान अच्छा है। मुझे क्या कहना चाहिए उन्हे?

श्री श्री रवि शंकर: यहाँ पर बहुत सी सी डी हैं। कोई भी ध्यान उनके लिए अच्छा होगा।

प्रश्न : क्या मृत्यु के बाद जीवन है?

श्री श्री रवि शंकर : हाँ।

प्रश्न : २१ दिसंबर २०१० को विश्व खत्म हो जाएगा। इस पर आप क्या कहेंगे?

श्री श्री रवि शंकर : मिथ्या कल्पना है।

प्रश्न : मन में विचार कैसे उठते हैं?

श्री श्री रवि शंकर : मैं यह आश्चय करने के लिए तुम पर छोड़ता हूँ। यह एक रहस्य है। रहस्य को मैं माइक पर नहीं बता सकता।

प्रश्न : ब्रह्मचर्या क्या है?

श्री श्री रवि शंकर : मैने इस विष्य पर योगासूत्र में बोला है। तुम्हे उसे सुनना चाहिए। ब्रह्मा का अर्थ है असीम चेतना। ब्रह्मचर्या का अर्थ है उस असीम चेतना में स्थिर हो जाना।

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, मैं बहुत बुद्धिमान हूँ। मुझे किसी ने कहा था कि बुद्धिमान व्यक्ति ध्यान नहीं कर सकता। मैं मूर्ख कैसे बनु?

श्री श्री रवि शंकर : फिर तो मूर्ख वुक्ति भी ध्यान नहीं कर सकता! तुम्हे किसने कह दिया तुम बुद्धिमान हो। तुमने स्वयं को ही लेबल कर लिया कि तुम बुद्धिमान हो। जो व्यक्ति अपने पर किसी तरह का लेबल लगाता है वो मूर्ख ही होता है। यह प्रश्न पूछने से ही तुमने जो चाहा वो तुम्हे मिल गया। यह प्रश्न पूछने की ज़रुरत पड़ी तो तुम बुद्धू हो ही गए।

प्रश्न : क्या हमे भीखारी को कुछ देना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर : अगर कोई हट्टा कट्टा हो, बलवान हो तो नहीं देना चाहिए। देख लेना कहीं वो तुमसे ही ज़ोर ज़बरदस्ती से पैसे नहीं निकलवाए। बच्चों को भी इसमें प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए। अगर तुम्हे कोई वृद्ध महिला मिले और वो कुछ ना कर सकती हो तो उस समय अपने मन की बात सुन लेना। अपने अंतर्मन की आवाज़ सुनो। पर अच्छा है पैसे की बजाए अगर खाने के लिए कुछ दे दिया जाए।

प्रश्न : हमारे माँ-बाप हमसे इतनी अपेक्षा क्यों करते हैं?

श्री श्री रवि शंकर : कुछ सालों में तुम्हे भी मालूम हो जाएगा। मगर तब यह भूलना नहीं कि कभी तुमने भी यह प्रश्न पूछा था।

प्रश्न : आपने मेरे लिए बहुत कुछ किया है। हम आपके लिए क्या कर सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर : तुमसे देश का बहुत कुछ होना है। जैसी खुशी तुम्हे मिली है, अगर तुम ऐसे ही १०, २०..५० लोगों के जीवन में खुशी लाओ। जब तुम खुश होगे और औरों को खुश करोगे तो मुझे इससे खुशी ही मिलेगी।

प्रश्न : पैसे कमाने इतना मुश्किल है। पैसे कमाने का कोई आसान तरीका है क्या?

श्री श्री रवि शंकर : तुम इतने बूढ़े हो गए हो तो मैं तुम्हे कोई आसान रास्ता बताता। तुम में उत्साह है, तुम बुद्धिमान हो..

प्रश्न : ’आर्ट ओफ़ लिविंग’ से इतने लोग जुड़े हैं। हम राजनीति में क्यों नहीं जा रहे?

श्री श्री रवि शंकर : अगर तुम्हारा मन उस दिशा में इतनी रूचि ले रहा है तो तुम्हे ज़रूर जाना चाहिए। मेरा सहयोग तुम्हारे साथ है।

प्रश्न : Basic course और Advance course करने के बाद मेरा गुस्सा ८० प्रतिशत कम हो गया है। मेरा बाकी का गुस्सा कब खत्म होगा?

श्री श्री रवि शंकर : वो भी कम हो जाएगा। थोड़ा गुस्सा रख भी सकते हो। दूसरों के मनोरंजन का साधन तो बन जाता है!

प्रश्न : हमारे शरीर में उर्जा चक्र कौन से होते हैं?

श्री श्री रवि शंकर : अभी तुम्हारा Advance course बाकी है ना? थोड़ा इंतज़ार करो। उत्तर अभी ब्रेक के बाद!

 

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