Wednesday 30 June 2010

"अपनी क्षमता के अनुसार और बिना किसी अपेक्षा के किए जाने वाला कर्म सेवा है"

संगीत हमे जोड़ता है और ध्यान हमे अपनी भीतर गहराई में ले कर जाता है| इससे हम में संपूर्णता आती है| यदि आप भारत में ज्ञान की देवी सरस्वती को देखें तो पाएँगे कि वे एक चट्टान पर बैठतीं हैं| चट्टान स्थिर और अचल है| यह इस बात का प्रतीक है कि सीखा हुआ ज्ञान आप का हिस्सा बन जाता है| जब कि धन की देवी लक्ष्मी कमल के फूल पर विराजमान हैं| बरसात आती है और पानी के बहाव के साथ कमल का फूल भी हिलता है| देवी सरस्वती के हाथों में वीणा, पुस्तक और माला है| पुस्तक ज्ञान का, वीणा संगीत का और माला ध्यान के प्रतीक हैं| ध्यान, ज्ञान और संगीत - ये तीन पहलू हमें जीवन में उतारने चाहिए|

प्र : 'आर्ट ऑफ लिविंग' व्यक्ति की धार्मिक मान्यताओं और पद्धतियों से कैसे संबधित है?

श्री श्री रवि शंकर :
आप अपनी मान्यताएँ और पद्धतियाँ बनाए रख सकते हैं क्योकिं 'आर्ट ऑफ लिविंग' में हम विविधता में विश्वास रखते हैं| अपना धर्म निभाते हुए अध्यात्म में आगे बढ़ा जा सकता है|

प्र : मुश्किल के समय में देखा गया है कि शासन, व्यापार और धर्म के क्षेत्र में लोग हमारी आशाओं पर पानी फेर देते हैं| आपके हिसाब से ऐसे में परिस्थिती कैसे संभाल सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
महात्मा गाँधी ने ऐसे नेताओं की एक नस्ल बनाई जो दुनिया के चारों ओर सम्मानित हुए|
राजनीति में अध्यात्म , ज्ञान का विश्विकर्ण और धर्म में धर्मनिरपेक्षता आव्श्यक है| हर किसी को हरेक धर्म के बारे में थोड़ा बहुत मालूम होना चाहिए| यदि सभी बौध धर्म, हिंदू धर्म, सिख धर्म, जैन धर्म और ईसाई धर्म के बारे में थोड़ा-थोड़ा सीख लें तो हमारे पास धर्म का एक पूरा सम्मिश्रण तैयार मिलेगा| यही एक तरीका है जिससे हम एक दूसरे को समझ सकते हैं और आध्यात्म की तरफ आगे बढ़ सकते हैं| अगर हर बच्चा हरेक धर्म के बारे में थोड़ा-बहुत जानता हो, तो वे सभी धर्मों को स्वीकार करते हुए आगे बड़ेगा |

प्र : सेवा का ऐसा कौनसा कार्य है जो हर कोई कर सकता है?

श्री श्री रवि शंकर :
कोई भी कार्य सेवा का कार्य हो सकता है| दुनिया आप से ऐसे काम की आशा नहीं करेगी जो आप से न हो सके| आप जो भी कर सकते हैं और बदले में बिना किसी अपेक्षा के जो आप करते हैं वही सेवा है| कोई भी कार्य दो तरह से हो सकता है| पहला, हम इसलिए करें कि हमें काम पूर्ण होने के बाद खुशी की अपेक्षा है| दूसरा, हम आनंद के साथ कार्य पूर्ण करते है| नौकरी और सेवा में यही फ़र्क है|

प्र : मेरे दिल और दिमाग़ हमेशा संघर्ष करते रहते हैं| मुझे किसका कहना मानना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
दोनो का अलग-अलग समय पर इस्तेमाल करो| व्यापार दिल से नहीं बल्कि दिमाग़ से करो| सेवा दिमाग़ से नहीं बल्कि दिल से करो|

प्र : कैसे मालूम हो कि किसी को कब माफ़ करना है?

श्री श्री रवि शंकर :
जब कोई चीज़ तुम्हें बहुत परेशान करने लगे|

प्र : आप में जो इतनी शक्ति है, इतना बड़ा दिल है और इतनी करुणा है- इसका राज़ क्या है?

श्री श्री रवि शंकर :
सादगी| जब आप अपने स्वभाव से हटकर कुछ और बनने का प्रयत्न करते हैं तब ये आपको थका देता है| जब आप किसी को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं या किसी से कुछ उम्मीद रखते हैं तो भी आप बोझ महसूस करने लगेंगे|

प्र : मुझे हवाई जहाज़ की उड़ान से बहुत डर लगता है| मुझे डर ने पकड़ रखा है| इस डर को अंकुश में रखने के लिए मैं क्या करूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
जब ऐसा हो, शरीर में उठ रही संवेदनाओं को महसूस करें| डर प्रेम का विपरीत है, फिर भी डर को प्रेम में बदला जा सकता है| आप 'अड्वान्स मेडिटेशन कोर्स' के ज़रिए भी इन सब चक्रों से गुज़र कर उनसे परे जा सकते हैं|

प्र : इतने लोगों पर हो रहे अन्याय को देख कर मुझे जो गुस्सा आता है, उसके लिए मैं क्या करूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
सिर्फ़ गुस्सा महसूस करके बैठे मत रहो| उसके लिए कुछ करो| अपना मानसिक संतुलन खोने की कोई ज़रूरत नहीं है| तुम्हें उसे स्वीकार करते हुए धैर्य से जवाब देना चाहिए| ये एक कौशल है| मन से शांत रहो और योग से जुड़े रहो| यही गीता का संदेश है|

प्र : एक व्यक्ति के लिए एक जीवन काल में मोक्ष प्राप्त करना कितना वास्तविक है?

श्री श्री रवि शंकर :
इसके लिए तुम्हें विशिष्ट होने की ज़रूरत नहीं है| तुम उसे इसी पल इस जगह भी पा सकते हो|

प्र : मैं विश्व शांति के लिए कैसे सहयोग दे सकता हूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
यह प्रश्न मैं आप पर ही छोड़ना चाहूँगा क्योंकि आप ऐसा बहुत से तरीकों से कर सकते हो| सेवा के लिए तैयार रहो| ऐसे प्रश्नों का एक जवाब नहीं हो सकता|

प्र : क्या आप कामुकता के स्वाभाव के बारे में कुछ बता सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
जिसके बारे में जानते न हों और जिस बात में विश्वास न करते हों उसके बारे में उपदेश देना सही नहीं है| जिन लोगों ने गहरी समझ पा ली है वे किसी बात की एक राय नहीं बनाते| आध्यात्मिकता के साथ आप अनुभव के एक अन्य स्तर पर जा सकते हैं| सेक्स का आदर करो पर उससे उँचे स्तर पर पहुंचो|

प्र : रिश्ते को सफल बनाने का क्या तरीका है?

श्री श्री रवि शंकर :
मैं रिश्तों के मामले में विशेषज्ञ नहीं हूँ ! पर मैं पुरुषों और स्त्रियों के लिए एक-एक सलाह दे सकता हूं | स्त्रियों को पुरुष के अहंकार पर कभी चोट नहीं पहुंचानी चाहिए | सारी दुनिया चाहे उसे बेवकूफ कहे पर तुम्हें उससे कहना है कि वह सबसे अधिक बुद्धिमान है| तुम्हें उसकी काबिलियत पर शक नहीं करना है| उससे कहो, "तुम सबसे ज़्यादा बुद्धिशाली हो| अगर तुम उसका उपयोग नहीं करते तो इसका मतलब ये नहीं कि तुममें समझ नहीं है|" अगर तुम उसे बेवकूफ कहती रहोगी तो वह सचमुच बेवकूफ ही बन जाएगा| अपने पति से प्रेम का प्रमाण माँगते रहना ठीक नहीं है| बस समझ लो कि वह तुमसे प्यार करते हैं| अगर किसी को रोज़ ये साबित करना पड़े कि वो तुम से प्रेम करते हैं तो वो उन्हें थका देगा| प्रेम को बहुत ज़्यादा व्यक्त नहीं करना चाहिए| बहुत बार समस्या ये हो जाती है कि हम अपना प्रेम कुछ ज़्यादा ही व्यक्त करते रहते हैं| अगर तुम बीज को सतह पर ही लटकाए रखो तो तुम उसकी जड़ें कभी नहीं देख पाओगे| लेकिन अगर उसे गहरे में गाड़ दोगे तब भी उससे अंकुर नहीं फूटेगा ! बीज को सही ढंग से बोओ| इस तरह से तुम्हें अपना प्यार जताना चाहिए| अपने प्रेम का गौरव बनाए रखो|

अब पुरुषों के लिए एक सुझाव है कि स्त्री की भावनाओं पर कभी पैर मत रखना | अगर वो अपनी माँ, बहन, अपने परिवार वग़ैरह की शिकायत करे तो उसमें शामिल मत हो जाना| थोड़ी देर के बाद वो पक्ष बदलेगी और हो सकता है तुम्ही निशाना बन जाओ! अगर वो कुछ ध्यान करना चाहे, किसी मंदिर में जाना चाहे या कोई आध्यात्मिक साधना करना चाहे तो उसे रोकना मत| अगर वो खरीदारी के लिए जाना चाहे तो उसे अपना क्रेडिट कार्ड दे दो| इससे घर में शांति रहेगी|

प्र : क्या ज्ञान की तलाश में गुरु या आध्यात्मिक नेता की ज़रूरत है?

श्री श्री रवि शंकर :
आप प्रश्न पूछ रहे हो और आप को जवाब चाहिए| आप को दवा चाहिए और जो भी आप को वो दे दे वो आप के लिए डॉक्टर बन जाता है| साधक को उत्तर चाहिए, उसे चाहिए कि कोई उसे सही मार्ग दिखाए| अगर कोई कहे मैं मरीज नहीं हूँ पर मुझे दवा चाहिए और कोई कहे मैं डॉक्टर नहीं हूँ पर मैं तुम्हें दवा दूँगा तो इन दोनों को आप क्या कहेंगे?
आप जो सुनना चाहते हो वो तो कोई भी आप से कह सकता है पर आपको सही मार्ग दर्शन की ज़रूरत है| कोई होना चाहिए जो आप का होंसला बँधा सके| जब आप तैरना सीखते हैं, ट्रेनर कहता है, " कूदो, आगे बढ़ो" और आप में आत्म-विश्वास जगता है| जिसमें ऐसा आत्म-विश्वास हो, वही आप का मार्ग दर्शक बन सकता है|

प्र : आप सारे विश्व के लोगों का भार उठाने का काम कैसे संभालते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
जब आप अपने को ये कहते हैं कि आप सिर्फ़ एक साधन यां मध्यम हैं| आप इस ब्रह्मांड के एक अंश हो| जब आप किसी भी परिस्थिति से प्रभावित नहीं होते तो यह सहजता से ही हो जाता है | ये बिल्कुल मुमकिन है, तुममे भी वह क्षमता है|

1 comment:

  1. अच्छा लगा साक्षात्कार के माध्यम से श्री श्री रवि शंकर जी के विचार जानना!

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