Saturday 4 June 2011

ज्ञान के मोती

ज्ञान के मोती


जब आप दूसरों की सहायता या उनकी देखरेख विवेक और ज्ञान के साथ करते है, तो आप उनके लिए गुरु की भूमिका निभा रहे हैं

Posted: 30 Apr 2011 09:50 PM PDT
मॉन्ट्रियल केंद्र कनाडा, २१ अप्रैल २०११.
( पिछले लेख का शेष भाग)

प्रश्न: आपको कैसे मालूम हुआ कि आप गुरु है?क्या आपके भी कोई गुरु थे? कभी कभी मैं विचार करता हूँ कि क्या मैं अपना स्वयं का गुरु हूँ | इस संदर्भ मे आप क्या कहेंगे?
श्री श्री रवि शंकर: आप अपने आप के लिए सर्जन (चिकित्सक) नहीं हो सकते | आप सर्जन (चिकित्सक)हो सकते है परन्तु आप अपने आप के लिए सर्जन (चिकित्सक) नहीं हो सकते, ठीक है ? आपकी माँ आपकी पहली गुरु होती है|आपकी माँ आपको शिक्षा देती है| गुरु वह है जिसका आपके प्रति रुख और दृष्टिकोण बिना किसी शर्त के होता है| आपको गुरु की भूमिका बिना किसी शर्त के निभानी होती है |“जब आप दूसरों की सहायता या उनकी देखरेख विवेक और ज्ञान के साथ करते है, तो आप उनके लिए गुरु की भूमिका निभा रहे हैं”|
जब आप किसी की सहायता इस मनोभाव के साथ करते है कि “ मुझे कुछ नहीं चाहिये, मुझे सिर्फ आपकी प्रगति चाहिये” तो फिर आप उनके लिये गुरु है | और आपको उनसे आपको गुरु मानने के लिये भी मांग नहीं करनी होगी | और एक आदर्श गुरु कोई भी मांग नहीं करता,यहां तक किसी व्यक्ति से कृतज्ञता की भी उम्मीद नहीं रखता |

प्रश्न : मैने सुना है कि आर्ट ऑफ लिविंग भारत मे भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ रहा है?उत्तर अमरीका मे हम समाज से भ्रष्टाचार से लड़ने के लिये क्या कर सकता है ?
श्री श्री रवि शंकर: इस स्थिति से निपटने के लिये आपको विचार करना चाहिये | भ्रष्टाचार तीन स्तर पर होता है| पहला लोगो के मध्य मे | लोग भ्रष्टाचार को अक्सर जीवन जीने की शैली के रूप मे स्वीकार कर लेते है| दूसरा और तीसरा स्तर है, नौकरशाही और राजनीतिज्ञ | जीवन के हर वर्ग मे अच्छे लोग होते है | और ऐसे लोग भी है जो इतने अच्छे नहीं है| आपको उन्हें आर्ट ऑफ लिविंग कोर्से मे लाकर श्वास तकनीके सिखाना चाहिये | फिर वे भी अच्छे हो जायेंगे |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी, क्या आप वर्ष २०१२ मे क्या होने वाला है, उसे और विस्तृत से बतायेंगे ?
श्री श्री रवि शंकर: हमेशा की तरह व्यापार | सिर्फ लोग और अधिक आध्यात्मिक हो जायेंगे |

प्रश्न: हम अपनी आध्यात्मिक प्रगति मे शीघ्रता लाने के लिये इस समय का उपयोग कैसे कर सकते है?
श्री श्री रवि शंकर: बिलकुल वैसे ही जैसे आप अभी कर रहे है|

प्रश्न: विश्व मे कई युद्ध और क्षेत्रीय हिंसा हो रही है | विश्व मे हिंसा कम करने के लिये हम क्या कर सकते है?
श्री श्री रवि शंकर : तनाव और क्रोध हिंसा होने का मूल कारण है| और मेरे मत मे ध्यान, प्राणायाम और सुदर्शन क्रिया तनाव और क्रोध को कम करने का उपाय है | इसका यही उपाय है |
आप कुछ आयुर्वेद सहायता ले सकते है, अपने आहार को परिवर्तित कर सकते है, आप यह कर सकते है, परन्तु यह सब इतना महत्वपूर्ण नहीं है |

प्रश्न:गुरूजी कोर्से मे गायन इतना महत्वपूर्ण क्यों है? गायन का आध्यात्मिक महत्त्व क्या है?

श्री श्री रवि शंकर: ज्ञान, तर्क, और संगीत आपके मस्तिष्क के दो अलग भाग मे उत्पन्न होते है इसलिए दोनों आवश्यक है| इससे तंत्र मे संतुलन आता है | संगीत आवश्यक है |


प्रेम के साथ प्रतिबद्धता भक्ति होती है !!!

Posted: 27 Apr 2011 01:28 AM PDT
मॉन्ट्रियल केंद्र कनाडा, २१ अप्रैल २०११.


प्रश्न : जब प्रियजनों की मृत्यु होती है तो क्या उनका पुनर्जन्म होता है? क्या हम उनको फिर से पहचान सकते है? पालकों के मामले मैं क्या हम उनसे फिर से सम्बंधित हो सकते है ?
श्री श्री रवि शंकर: सब कुछ संभव है ! यदि उनका पुनर्जनम अभी होता है तो आप उन्हें जान सकते है और आप इसे महसूस कर सकते है ! क्या आप ने कभी यह महसूस किया कि जब आप कभी कही पर जाते है और कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से अचानक घनिष्ट हो जाता है ? आपकी अंतरात्मा आप को इसका अनुभव कराती है | सब कुछ संभव है | किसी समय मे हम सब एक दूसरे से सम्बंधित होते है | अतीत मे हम सब आपस मैं सम्बंधित होते हैं; अभी भी हम आपस मे सम्बंधित है | चाहे हम इसे समझे या ना समझे फिर भी हम आपस मे सम्बंधित है |


प्रश्न : खुशी क्या है ?
श्री श्री रवि शंकर : जब आप कहते है, मुझे कुछ नहीं चाहिये; वह खुशी है | जब आप खुश होते है और आप से यह प्रश्न किया जाये ‘क्या आप को कुछ चाहिये?’ फिर आप का उत्तर होता है नहीं “मुझे कुछ नहीं चाहिये”|


प्रश्न :प्रिय गुरूजी मैं अपने आप पर बहुत संशय करता हूँ , मैं अपने कौशल, योग्यता और निर्णयों पर संशय करता हूँ | अपने आप पर संशय करने से कैसे निपटा जाये ?
श्री श्री रवि शंकर : कोई व्यक्ति अपने आप पर संशय करता है तो उससे कैसे निपटा जाये? सबसे पहले संशय को समझे; संशय हर समय किसी अच्छी बात के लिये होता है | जब आप से कोई कहता है, “मैं तुम से प्रेम करता हूँ”, तो आप उनसे तुरंत प्रश्न करते है “सचमुच?” | और जब आप से कोई कहता है की “मैं तुम से घृणा करता हूँ” तब आप यह प्रश्न कभी नहीं करेंगे “सचमुच?” | इसीलिये संशय हर समय किसी अच्छी बात के लिये ही होता है | आप अपनी योग्यता पर संशय करते हैं; परन्तु आप अपनी कमजोरी पर कभी संशय नहीं करते | आप खुशी पर संशय करते हैं परन्तु दुःख पर कभी संशय नहीं करते | ठीक है ?| कोई भी अपनी उदासी या निराशा पर संशय नहीं करता, परन्तु यह कहता है कि मुझे पूरी तरह से यकीन नहीं है कि मैं खुश हूँ या नहीं| जब आप यह समझ जाते है की संशय हर समय किसी सकारात्मक बात के लिये होता है तो फिर आप का मन एक विशेष स्थर पर चला जाता है |
संशय का सरल अर्थ है; प्राण उर्जा की कमी इसीलिये अधिक प्राणायाम करें और फिर आप पायेंगे कि आप उस स्थिति से निकल गए हैं |


प्रश्न : प्रिय गुरुजी भक्त कौन होता है? भक्त को क्या करना होता है? कोई कैसे भक्त बन सकता है?
श्री श्री रवि शंकर: भक्त बनने के लिए कोई गहन प्रयास न करें; प्रेम के साथ प्रतिबद्धता भक्ति होती है | प्रेम के साथ विवेक भी भक्ति है |
विवेक के बिना प्रेम नकारात्मकता मे परिवर्तित हो सकता है | आज प्रेम करे; कल घृणा करें | आज प्रेम करे; कल ईर्ष्या करें; आज प्रेम करें संबंधो के प्रति तृष्णा को कल रखें |
प्रेम के साथ विवेक परमानन्द होता है; और वही भक्ति है | भक्ति एक बहुत मजबूत बंधन है, यह एक अपनेपन का एहसास है | हर व्यक्ति इस गुण के साथ जन्म लेता है | यह फिर से शिशु बन जाने के सामान है |


प्रश्न : प्रिय गुरु जी मैं धन्य हूँ कि मैं आपके साथ हूँ और मेरे स्तन का कर्क रोग भी आरोग्य हो रहा है जिसका निदान पिछले वर्ष हुआ था| क्या आप मुझे और हम सबको बता सकते हैं कि क्या रोग से कुछ सीखा जा सकता है ?
श्री श्री रवि शंकर:आपको बीमारी से कुछ भी सिखने की आवश्यकता नहीं है|आगे बढते रहे | यह जीवन का हिस्सा है | शरीर कभी कभी बीमार हो जाता है | यह कई कारणों से हो सकता है | यह कर्मो, पूर्व के संस्कार और पारिवारिक जीन के कारण हो सकता है|यह प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करने से,जब आवश्यक न हो तो भी अधिक भोजन ग्रहण करने से, और यह वर्तमान की प्रौद्योगिकी के कारण भी हो सकता है जो इतनी अधिक विकिरण उत्पन्न करती है | इसलिये इस पर ध्यान देने की आवश्यता नहीं है कि इससे हमें क्या सीखना है |
सिर्फ एक विश्वाश, एक ज्ञान और एक कृतज्ञता के साथ आगे बढते रहे |आपको खुश रहना चाहिये कि आप इस गृह पर है, और जब तक आप सब यहां पर है, आप सब को अच्छा ही करना है क्योंकि निश्चित ही आप सब को एक दिन यहां से जाना है |


प्रश्न : मुझे दो सिद्धांतों का परिचय करवाया गया है जो मुझे भ्रमित करता है; अ:मैं कर्ता नहीं हूँ, या ब: मुझे हर छोटी छोटी बात की जिम्मेदारी लेनी चाहिये जबकि उस पर मेरा नियंत्रण बहुत ही कम है, कृपया इसे समझाये?
श्री श्री रवि शंकर : जीवन इन दोनों बातों का संतुलन है| जिम्मेदारी लेना और फिर उसे समर्पित कर देना | और यह एक उत्तम संतुलन है | वर्तमान और भविष्य के लिए जिम्मेदारी लीजिये और अतीत के लिये जान लीजिये कि ऐसा ही होना था और आगे बढ़ते चले | परन्तु आप अक्सर इसका विपरीत करते है|आप सोचते है कि अतीत आपकी स्वतंत्र इच्छा थी और उसका पछतावा करते है और भविष्य को भाग्य समझकर उसके लिये कुछ भी नहीं करते है | क्या आपको मालूम है कि ज्ञानी लोग क्या करते है? वे भविष्य को स्वतंत्र इच्छा, और अतीत को भाग्य मानते है और वर्तमान मे खुश रहते है| इसलिये आप अतीत का पछतावा न करे और आपको पता है कि आपको भविष्य मे क्या करना है और उसके लिये सक्रीय हो जाये |


सेवा के द्वारा कृत्य शुद्ध हो जाते है!

Posted: 26 Apr 2011 01:57 AM PDT
आर्ट ऑफ लिविंग केंद्र ,टेक्सास, अमरीका
१२, अप्रैल,२०११


प्रश्न: न्याय के लिये लड़ने के दौरान मैं शान्ति को कैसे संतुलित कर सकता हूँ ?
श्री श्री रवि शंकर: यही सम्पूर्ण भगवत गीता का सार है |भीतर से शांत रहकर जब आवश्यक हो तब कृत्य को करे | जब आवश्यक हो तो लड़े; परन्तु उस लड़ाई को अपने मन के भीतर ही न रखे | अक्सर हम भीतर ही लड़ते रहते है और बहार शांत रहते है| हमें इसका विपरीत करना चाहिये | ध्यान के द्वारा इस परिवर्तन को लाना आसान है | सत्व और ध्यान की शक्ति इसे आसान बना देती है |
आज रामनवमी है | रा का अर्थ है प्रकाश, और म का अर्थ है मैं | राम का अर्थ है “ मेरे भीतर का प्रकाश” राम का जन्म दशरत और कौशल्या के यहां हुआ था | दशरथ का अर्थ है “दस रथ” | दस रथ पांच इन्द्रियों और पांच ज्ञान और कृत्य को दर्शाता है |(उदाहरण के लिये; प्रजनन,पैर,हाथ इत्यादि) कौशल्या का अर्थ है ‘कौशल’ | अयोध्या का अर्थ है, “ऐसा समाज जहां कोई हिंसा नहीं है” जब आप कुशलतापूर्वक इसका अवलोकन करते है, कि आपके शरीर के भीतर क्या प्रवेश कर रहा है,आपके भीतर प्रकाश का भोर हो रहा है |यही ध्यान है| आपको तनाव को मुक्त करने के लिए कुछ कौशल की आवश्यता होती है | फिर आपका फैलाव होने लगता है |
आपको पता है आप अभी यहां पर है फिर भी आप यहां पर नहीं है |इस एहसास से, कि कुछ प्रकाश तुरंत आता है | जब भीतर के प्रकाश मे चमक आ जाती है तो वह राम है | सीता जो मन/बुद्धि है, उसे अहंकार(रावण) ने चुरा लिया था | रावण के दस मुख थे | रावण (अहंकार) वह था, जो किसी की बात नहीं सुनता था | वह अपने सिर(अहंकार) मे ही उलझा रहता था | हनुमान का अर्थ श्वास है | हनुमान (श्वास) के सहायता से सीता(मन) अपने राम (स्त्रोत्र) के पास जा सकी |
रामायण ७,५०० वर्ष पूर्व घटित हुई |उसका जर्मनी और यूरोप और पूर्व के कई देशो पर प्रभाव पड़ा | हजारों से अधिक नगरों का नामकरण राम से हुआ |जर्मनी मे रामबौघ,इटली मे रोम का मूल राम शब्द मे ही है | इंडोनेशिया, बाली और जापान सभी रामायण से प्रभावित हुये |वैसे तो रामायण इतिहास है परन्तु यह एक ऐसी अनंत घटना है,जो हर समय घटित होती रहती है |


प्रश्न: गुरु आदर्श भक्त मे कौन से गुण देखना चाहते है?
श्री श्री रवि शंकर: कोई भी नहीं | यदि मैं कोई एक गुण बताऊंगा, तो आप उस गुण का अनुसरण करने लगेंगे | इसलिए स्वयं के साथ स्वाभाविक और ईमानदार रहे | यदि एक दिन भी आपका ध्यान करना रह जाता है तो उसके लिये परेशान न हो | समय आपको लेकर चल रहा है| जो भी अच्छे गुणों की तलाश आपको है, वह वैसे भी आप मे मौजूद है | आप यहां पर है और सब अच्छा ही कर रहे है|
उचित आहार से आप अपने शरीर को शुद्ध रख सकते है | साल मे दो तीन दिन व्रत रखना अच्छा होता है| रस लेकर व्रत करे |परन्तु यदि आपका शरीर इसकी अनुमति नहीं देता तो उसे न करे | आपको अपने शरीर की बात सुननी चाहिये |
मन प्राणायाम और सुदर्शन क्रिया के द्वारा शुद्ध होता है |
बुद्धि ज्ञान के द्वारा शुद्ध होती है |
भावनाये भजन के द्वारा शुद्ध होती है |
सेवा के द्वारा कृत्य शुद्ध हो जाते है |
दान के द्वारा धन शुद्ध हो जाता है |
आपने अपने आय का २ से ३ % दान करना चाहिये |


प्रश्न: आने वाले वर्षों के लिये आपका आर्ट ऑफ लिविंग के लिये क्या दृष्टिकोण है?
श्री श्री रवि शंकर :मैने उसकी शुरुवात कर दी है | मैने अपना कृत्य कर दिया | अब यह आप पर है | आपके पास दृष्टिकोण है, इसलिये आप उसे जहां ले जाना चाहे ले जाये | हम जर्मनी मे आर्ट ऑफ लिविंग के ३० वर्ष पूर्ण होने का उत्सव मना रहे है | हिटलर ने ७५ वर्ष पूर्व जिस ओलंपिक स्टेडियम का निर्माण करवाया था हम उसी मे होंगे | उसने युद्ध की शुरुवात वही से करी | जिस जगह से युद्ध की शुरुवात हुई, हम वही से शान्ति के सन्देश का प्रचार करेंगे |


प्रश्न: कई युद्धों का कारण धर्म क्यों होता है?
श्री श्री रवि शंकर:मुझे भी आश्चर्य होता है | विश्व मे १० प्रमुख धर्म है | चार मध्य पूर्वी देशो से और ६ पूर्व देशो से | पूर्व के ६ धर्मो मे कोई द्वंद नहीं है | इन ६ धर्मो मे कभी भी कोई द्वंद नहीं हुआ| हिंदू,बुद्ध,सिख, जैन,शिंटो और ताओ धर्म एक ही समय आस्तित्व मे थे | जब राष्ट्रपति निक्सन जापान गये , तो उनके एक तरफ शिंटो संत थे और दूसरी तरफ बौद्ध संत थे | उन्होंने शिंटो संत से प्रश्न किया कि जापान मे शिंटो कितने प्रतिशत है? संत ने कहा-८०% |फिर उन्होंने बौद्ध संत से प्रश्न किया , कि जापान मे बुद्ध कितने प्रतिशत है? संत ने कहा-८०%| निक्सन को आश्चर्य हुआ कि यह कैसे संभव है| शिंटो बुद्ध मंदिरों मे जाते है और बुद्ध शिंटो मंदिरों मे जाते है |उसी तरह हिंदू सिख गुरूद्वारो मे जाते है,और सिख हिंदू मंदिरों मे जाते है | भारत मे यही बात हिंदू और बुद्ध लोगों के लिये कही जा सकती है |उसी तरह चीन मे बुद्ध और ताओ धर्म मे कोई द्वंद नहीं है
मध्य पूर्व के चार धर्मो मे हर समय युद्ध रहा |इन्होने अन्य ६ धर्मो से सीखना चाहिये कि कैसे एक साथ आस्तित्व मे रहना चाहिये | ईसाई और यहूदी धर्म मे मित्रता है | यहूदी और इस्लाम धर्म मे कोई आपसी मुद्दा है |


प्रश्न: कर्म और भाग्य मे क्या अंतर है?
श्री श्री रवि शंकर: भाग्य का अर्थ है विधि अर्थात यह ऐसा ही है | कर्म के अनेक अर्थ है | इसका अर्थ कृत्य या अप्रत्यक्ष कृत्य भी हो सकता है | किसी कृत्य के संस्कार के कारण कोई अन्य कृत्य भी उत्पन्न हो सकता है और उसे भी कर्म कह सकते है |


सेवा के द्वारा कृत्य शुद्ध हो जाते है!

Posted: 26 Apr 2011 01:57 AM PDT
आर्ट ऑफ लिविंग केंद्र ,टेक्सास, अमरीका
१२, अप्रैल,२०११


प्रश्न: न्याय के लिये लड़ने के दौरान मैं शान्ति को कैसे संतुलित कर सकता हूँ ?
श्री श्री रवि शंकर: यही सम्पूर्ण भगवत गीता का सार है |भीतर से शांत रहकर जब आवश्यक हो तब कृत्य को करे | जब आवश्यक हो तो लड़े; परन्तु उस लड़ाई को अपने मन के भीतर ही न रखे | अक्सर हम भीतर ही लड़ते रहते है और बहार शांत रहते है| हमें इसका विपरीत करना चाहिये | ध्यान के द्वारा इस परिवर्तन को लाना आसान है | सत्व और ध्यान की शक्ति इसे आसान बना देती है |
आज रामनवमी है | रा का अर्थ है प्रकाश, और म का अर्थ है मैं | राम का अर्थ है “ मेरे भीतर का प्रकाश” राम का जन्म दशरत और कौशल्या के यहां हुआ था | दशरथ का अर्थ है “दस रथ” | दस रथ पांच इन्द्रियों और पांच ज्ञान और कृत्य को दर्शाता है |(उदाहरण के लिये; प्रजनन,पैर,हाथ इत्यादि) कौशल्या का अर्थ है ‘कौशल’ | अयोध्या का अर्थ है, “ऐसा समाज जहां कोई हिंसा नहीं है” जब आप कुशलतापूर्वक इसका अवलोकन करते है, कि आपके शरीर के भीतर क्या प्रवेश कर रहा है,आपके भीतर प्रकाश का भोर हो रहा है |यही ध्यान है| आपको तनाव को मुक्त करने के लिए कुछ कौशल की आवश्यता होती है | फिर आपका फैलाव होने लगता है |
आपको पता है आप अभी यहां पर है फिर भी आप यहां पर नहीं है |इस एहसास से, कि कुछ प्रकाश तुरंत आता है | जब भीतर के प्रकाश मे चमक आ जाती है तो वह राम है | सीता जो मन/बुद्धि है, उसे अहंकार(रावण) ने चुरा लिया था | रावण के दस मुख थे | रावण (अहंकार) वह था, जो किसी की बात नहीं सुनता था | वह अपने सिर(अहंकार) मे ही उलझा रहता था | हनुमान का अर्थ श्वास है | हनुमान (श्वास) के सहायता से सीता(मन) अपने राम (स्त्रोत्र) के पास जा सकी |
रामायण ७,५०० वर्ष पूर्व घटित हुई |उसका जर्मनी और यूरोप और पूर्व के कई देशो पर प्रभाव पड़ा | हजारों से अधिक नगरों का नामकरण राम से हुआ |जर्मनी मे रामबौघ,इटली मे रोम का मूल राम शब्द मे ही है | इंडोनेशिया, बाली और जापान सभी रामायण से प्रभावित हुये |वैसे तो रामायण इतिहास है परन्तु यह एक ऐसी अनंत घटना है,जो हर समय घटित होती रहती है |


प्रश्न: गुरु आदर्श भक्त मे कौन से गुण देखना चाहते है?
श्री श्री रवि शंकर: कोई भी नहीं | यदि मैं कोई एक गुण बताऊंगा, तो आप उस गुण का अनुसरण करने लगेंगे | इसलिए स्वयं के साथ स्वाभाविक और ईमानदार रहे | यदि एक दिन भी आपका ध्यान करना रह जाता है तो उसके लिये परेशान न हो | समय आपको लेकर चल रहा है| जो भी अच्छे गुणों की तलाश आपको है, वह वैसे भी आप मे मौजूद है | आप यहां पर है और सब अच्छा ही कर रहे है|
उचित आहार से आप अपने शरीर को शुद्ध रख सकते है | साल मे दो तीन दिन व्रत रखना अच्छा होता है| रस लेकर व्रत करे |परन्तु यदि आपका शरीर इसकी अनुमति नहीं देता तो उसे न करे | आपको अपने शरीर की बात सुननी चाहिये |
मन प्राणायाम और सुदर्शन क्रिया के द्वारा शुद्ध होता है |
बुद्धि ज्ञान के द्वारा शुद्ध होती है |
भावनाये भजन के द्वारा शुद्ध होती है |
सेवा के द्वारा कृत्य शुद्ध हो जाते है |
दान के द्वारा धन शुद्ध हो जाता है |
आपने अपने आय का २ से ३ % दान करना चाहिये |


प्रश्न: आने वाले वर्षों के लिये आपका आर्ट ऑफ लिविंग के लिये क्या दृष्टिकोण है?
श्री श्री रवि शंकर :मैने उसकी शुरुवात कर दी है | मैने अपना कृत्य कर दिया | अब यह आप पर है | आपके पास दृष्टिकोण है, इसलिये आप उसे जहां ले जाना चाहे ले जाये | हम जर्मनी मे आर्ट ऑफ लिविंग के ३० वर्ष पूर्ण होने का उत्सव मना रहे है | हिटलर ने ७५ वर्ष पूर्व जिस ओलंपिक स्टेडियम का निर्माण करवाया था हम उसी मे होंगे | उसने युद्ध की शुरुवात वही से करी | जिस जगह से युद्ध की शुरुवात हुई, हम वही से शान्ति के सन्देश का प्रचार करेंगे |


प्रश्न: कई युद्धों का कारण धर्म क्यों होता है?
श्री श्री रवि शंकर:मुझे भी आश्चर्य होता है | विश्व मे १० प्रमुख धर्म है | चार मध्य पूर्वी देशो से और ६ पूर्व देशो से | पूर्व के ६ धर्मो मे कोई द्वंद नहीं है | इन ६ धर्मो मे कभी भी कोई द्वंद नहीं हुआ| हिंदू,बुद्ध,सिख, जैन,शिंटो और ताओ धर्म एक ही समय आस्तित्व मे थे | जब राष्ट्रपति निक्सन जापान गये , तो उनके एक तरफ शिंटो संत थे और दूसरी तरफ बौद्ध संत थे | उन्होंने शिंटो संत से प्रश्न किया कि जापान मे शिंटो कितने प्रतिशत है? संत ने कहा-८०% |फिर उन्होंने बौद्ध संत से प्रश्न किया , कि जापान मे बुद्ध कितने प्रतिशत है? संत ने कहा-८०%| निक्सन को आश्चर्य हुआ कि यह कैसे संभव है| शिंटो बुद्ध मंदिरों मे जाते है और बुद्ध शिंटो मंदिरों मे जाते है |उसी तरह हिंदू सिख गुरूद्वारो मे जाते है,और सिख हिंदू मंदिरों मे जाते है | भारत मे यही बात हिंदू और बुद्ध लोगों के लिये कही जा सकती है |उसी तरह चीन मे बुद्ध और ताओ धर्म मे कोई द्वंद नहीं है
मध्य पूर्व के चार धर्मो मे हर समय युद्ध रहा |इन्होने अन्य ६ धर्मो से सीखना चाहिये कि कैसे एक साथ आस्तित्व मे रहना चाहिये | ईसाई और यहूदी धर्म मे मित्रता है | यहूदी और इस्लाम धर्म मे कोई आपसी मुद्दा है |


प्रश्न: कर्म और भाग्य मे क्या अंतर है?
श्री श्री रवि शंकर: भाग्य का अर्थ है विधि अर्थात यह ऐसा ही है | कर्म के अनेक अर्थ है | इसका अर्थ कृत्य या अप्रत्यक्ष कृत्य भी हो सकता है | किसी कृत्य के संस्कार के कारण कोई अन्य कृत्य भी उत्पन्न हो सकता है और उसे भी कर्म कह सकते है |


सेवा के द्वारा कृत्य शुद्ध हो जाते है!

Posted: 26 Apr 2011 01:57 AM PDT
आर्ट ऑफ लिविंग केंद्र ,टेक्सास, अमरीका
१२, अप्रैल,२०११


प्रश्न: न्याय के लिये लड़ने के दौरान मैं शान्ति को कैसे संतुलित कर सकता हूँ ?
श्री श्री रवि शंकर: यही सम्पूर्ण भगवत गीता का सार है |भीतर से शांत रहकर जब आवश्यक हो तब कृत्य को करे | जब आवश्यक हो तो लड़े; परन्तु उस लड़ाई को अपने मन के भीतर ही न रखे | अक्सर हम भीतर ही लड़ते रहते है और बहार शांत रहते है| हमें इसका विपरीत करना चाहिये | ध्यान के द्वारा इस परिवर्तन को लाना आसान है | सत्व और ध्यान की शक्ति इसे आसान बना देती है |
आज रामनवमी है | रा का अर्थ है प्रकाश, और म का अर्थ है मैं | राम का अर्थ है “ मेरे भीतर का प्रकाश” राम का जन्म दशरत और कौशल्या के यहां हुआ था | दशरथ का अर्थ है “दस रथ” | दस रथ पांच इन्द्रियों और पांच ज्ञान और कृत्य को दर्शाता है |(उदाहरण के लिये; प्रजनन,पैर,हाथ इत्यादि) कौशल्या का अर्थ है ‘कौशल’ | अयोध्या का अर्थ है, “ऐसा समाज जहां कोई हिंसा नहीं है” जब आप कुशलतापूर्वक इसका अवलोकन करते है, कि आपके शरीर के भीतर क्या प्रवेश कर रहा है,आपके भीतर प्रकाश का भोर हो रहा है |यही ध्यान है| आपको तनाव को मुक्त करने के लिए कुछ कौशल की आवश्यता होती है | फिर आपका फैलाव होने लगता है |
आपको पता है आप अभी यहां पर है फिर भी आप यहां पर नहीं है |इस एहसास से, कि कुछ प्रकाश तुरंत आता है | जब भीतर के प्रकाश मे चमक आ जाती है तो वह राम है | सीता जो मन/बुद्धि है, उसे अहंकार(रावण) ने चुरा लिया था | रावण के दस मुख थे | रावण (अहंकार) वह था, जो किसी की बात नहीं सुनता था | वह अपने सिर(अहंकार) मे ही उलझा रहता था | हनुमान का अर्थ श्वास है | हनुमान (श्वास) के सहायता से सीता(मन) अपने राम (स्त्रोत्र) के पास जा सकी |
रामायण ७,५०० वर्ष पूर्व घटित हुई |उसका जर्मनी और यूरोप और पूर्व के कई देशो पर प्रभाव पड़ा | हजारों से अधिक नगरों का नामकरण राम से हुआ |जर्मनी मे रामबौघ,इटली मे रोम का मूल राम शब्द मे ही है | इंडोनेशिया, बाली और जापान सभी रामायण से प्रभावित हुये |वैसे तो रामायण इतिहास है परन्तु यह एक ऐसी अनंत घटना है,जो हर समय घटित होती रहती है |


प्रश्न: गुरु आदर्श भक्त मे कौन से गुण देखना चाहते है?
श्री श्री रवि शंकर: कोई भी नहीं | यदि मैं कोई एक गुण बताऊंगा, तो आप उस गुण का अनुसरण करने लगेंगे | इसलिए स्वयं के साथ स्वाभाविक और ईमानदार रहे | यदि एक दिन भी आपका ध्यान करना रह जाता है तो उसके लिये परेशान न हो | समय आपको लेकर चल रहा है| जो भी अच्छे गुणों की तलाश आपको है, वह वैसे भी आप मे मौजूद है | आप यहां पर है और सब अच्छा ही कर रहे है|
उचित आहार से आप अपने शरीर को शुद्ध रख सकते है | साल मे दो तीन दिन व्रत रखना अच्छा होता है| रस लेकर व्रत करे |परन्तु यदि आपका शरीर इसकी अनुमति नहीं देता तो उसे न करे | आपको अपने शरीर की बात सुननी चाहिये |
मन प्राणायाम और सुदर्शन क्रिया के द्वारा शुद्ध होता है |
बुद्धि ज्ञान के द्वारा शुद्ध होती है |
भावनाये भजन के द्वारा शुद्ध होती है |
सेवा के द्वारा कृत्य शुद्ध हो जाते है |
दान के द्वारा धन शुद्ध हो जाता है |
आपने अपने आय का २ से ३ % दान करना चाहिये |


प्रश्न: आने वाले वर्षों के लिये आपका आर्ट ऑफ लिविंग के लिये क्या दृष्टिकोण है?
श्री श्री रवि शंकर :मैने उसकी शुरुवात कर दी है | मैने अपना कृत्य कर दिया | अब यह आप पर है | आपके पास दृष्टिकोण है, इसलिये आप उसे जहां ले जाना चाहे ले जाये | हम जर्मनी मे आर्ट ऑफ लिविंग के ३० वर्ष पूर्ण होने का उत्सव मना रहे है | हिटलर ने ७५ वर्ष पूर्व जिस ओलंपिक स्टेडियम का निर्माण करवाया था हम उसी मे होंगे | उसने युद्ध की शुरुवात वही से करी | जिस जगह से युद्ध की शुरुवात हुई, हम वही से शान्ति के सन्देश का प्रचार करेंगे |


प्रश्न: कई युद्धों का कारण धर्म क्यों होता है?
श्री श्री रवि शंकर:मुझे भी आश्चर्य होता है | विश्व मे १० प्रमुख धर्म है | चार मध्य पूर्वी देशो से और ६ पूर्व देशो से | पूर्व के ६ धर्मो मे कोई द्वंद नहीं है | इन ६ धर्मो मे कभी भी कोई द्वंद नहीं हुआ| हिंदू,बुद्ध,सिख, जैन,शिंटो और ताओ धर्म एक ही समय आस्तित्व मे थे | जब राष्ट्रपति निक्सन जापान गये , तो उनके एक तरफ शिंटो संत थे और दूसरी तरफ बौद्ध संत थे | उन्होंने शिंटो संत से प्रश्न किया कि जापान मे शिंटो कितने प्रतिशत है? संत ने कहा-८०% |फिर उन्होंने बौद्ध संत से प्रश्न किया , कि जापान मे बुद्ध कितने प्रतिशत है? संत ने कहा-८०%| निक्सन को आश्चर्य हुआ कि यह कैसे संभव है| शिंटो बुद्ध मंदिरों मे जाते है और बुद्ध शिंटो मंदिरों मे जाते है |उसी तरह हिंदू सिख गुरूद्वारो मे जाते है,और सिख हिंदू मंदिरों मे जाते है | भारत मे यही बात हिंदू और बुद्ध लोगों के लिये कही जा सकती है |उसी तरह चीन मे बुद्ध और ताओ धर्म मे कोई द्वंद नहीं है
मध्य पूर्व के चार धर्मो मे हर समय युद्ध रहा |इन्होने अन्य ६ धर्मो से सीखना चाहिये कि कैसे एक साथ आस्तित्व मे रहना चाहिये | ईसाई और यहूदी धर्म मे मित्रता है | यहूदी और इस्लाम धर्म मे कोई आपसी मुद्दा है |


प्रश्न: कर्म और भाग्य मे क्या अंतर है?
श्री श्री रवि शंकर: भाग्य का अर्थ है विधि अर्थात यह ऐसा ही है | कर्म के अनेक अर्थ है | इसका अर्थ कृत्य या अप्रत्यक्ष कृत्य भी हो सकता है | किसी कृत्य के संस्कार के कारण कोई अन्य कृत्य भी उत्पन्न हो सकता है और उसे भी कर्म कह सकते है |



अपने पर्यावरण के प्रति संवेदनशील रहे !

Posted: 24 Apr 2011 11:33 PM PDT
२३, अप्रैल, २०११
आज विश्व पृथ्वी दिवस पर पर्यावरण का पोषण और उसका ध्यान रखने का संकल्प लीजिये !!!
विकास अनिवार्य है, परन्तु अल्प कालिक द्रष्टिकोण होने से वे अक्सर बड़े नुकसान का कारण बन जाते है | स्थिर विकास वे होते है जो किसी भी कार्यक्रम मे दीर्घकालिक प्रभाव एवं लाभ का ध्यान रखते है |

अल्प कालिक विकास सिर्फ आपदा होते हैं | प्राकृतिक साधनों का नाश बिना किसी दीर्धकालिक दृष्टिकोण होने से पारिस्थितिकी नष्ट हो जाती है, जो कि जीवन का स्रोत्र होती है | विकास का उद्देश्य जीवन को स्थिर बनाने के लिए सहायक होना चाहिये| एक बड़ा द्रष्टिकोण रखते हुये सारी विकास योजनाएं पारिस्थितिकी, समाजशास्त्र और मनोविज्ञान पर प्रभाव करती है| फिर किसी भी विकास की प्रक्रिया सजगतापूर्ण प्रयासों के द्वारा इस प्रथ्वी और उसके साधनों का संरक्षण करने के लिए हो जाते हैं | हमारे गृह का स्वस्थ्य सबसे महत्पूर्ण है !

मानव तंत्र मे पर्यावरण के प्रति समझ मौजूद होती है | सम्पूर्ण इतिहास मे भारत मे प्रकृति को पूजा जाता है जैसे ; पर्वत, नदी, सूर्य , चंद्र, वृक्ष को श्रद्धा के भाव से देखा जाता रहा है | विश्व के सारे प्राचीन संस्कृतियों ने प्रकृति के प्रति गहन श्रद्धा प्रकट की है | उनके लिए भगवान मंदिरों या गिरजाघरों मे नहीं होते थे परन्तु वह इस प्रकृति मे ही अंतर्निहित होता था | और जब हम प्रकृति से दूर जाने लगे तो हम इसे प्रदूषित करने लगे |प्रकृति का सम्मान और उसका संरक्षण करने की प्राचीन प्रथा को पुनर्जीवित करना आज के समय की गहन आवश्यकता है| कई लोगो का मत है कि पारिस्थितिकी की हानि तकनीकी प्रगति का अपरिहार्य उपोत्पाद है | परन्तु यह सही नहीं है,स्थिर विकास तभी संभव है, जब पारिस्थितिकी की सुरक्षा की जाये | विज्ञान और प्रौद्योगिकी को पर्यावरण विरोधी नहीं मानना चाहिये, और ऐसे साधनों की खोज करनी चाहिये जिससे विज्ञान और प्रौद्योगिकी मे विकास करते हुये पर्यावरण के साथ सामंजस्य स्थापित हो सके | यह आज के युग की सबसे बड़ी चुनौती है |

प्रकृति का अवलोकन करे, इसके पांचो तत्व एक दुसरे के विरोधाभासी होते है | जल अग्नि को नष्ट करता है,अग्नि वायु को नष्ट करती है| प्रकृति मे कई प्रजातिया होती है, जैसे पक्षी,सरीसृप, स्तनधारी; और यह सारी विभिन्न प्रजातिया एक दुसरे के विरोधाभासी होती परन्तु फिर भी प्रकृति इन सब मे संतुलन बनाकर रखती है | हमें प्रकृति से सीखना चाहिये कि कैसे वह अपशिष्ट पदार्थ का पाचन करके उसी से कुछ और भी सुन्दर पदार्थ का उत्पादन करती है | विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संकट पैदा नहीं होता है परन्तु विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रक्रियाओं से जो अपशिष्ट पदार्थ उत्पन्न होते है, वह संकट का कारण है |

अपशिष्ट पदार्थो को नष्ट करने के साधनो को हमें ढूँढना होगा और गैर प्रदूषणकारी प्रक्रियाओ को विकसित करना होगा;जैसे सौर उर्जा को उपयोग मे लाना होगा | परंपरागत पद्दति की ओर वापसी करते हुये हमें जैविक ओर रसायन रहित खेती को अपनाना होगा जिससे स्वस्थ्य विकास की पृष्ठभूमि तैयार हो सके | संस्कृति,प्रौद्योगिकी, व्यापार और सत्य वे चार सूत्र है,जिसे समय समय पर पुनर्जीवित करना होगा | जब तक वे पुनर्जीवित नहीं होंगे, तो जिस उद्देश्य से उनकी शुरुवात हुई थी वह अर्थहीन हो जायेगा | प्राचीन और आधुनिक पद्दतियो मे आपसी तालमेल लाना होगा | रसायन और उर्वरक के क्षेत्र मे प्रगति होने के बावजूद, प्राचीन भारतीय प्रौद्योगिकी मे गौमूत्र और गाय के गोबर का उपयोग अब भी फसल की खेती के लिए उत्तम उपाय है | कई शोध से यह पता चलता है, कि प्राकृतिक खेती से अधिक उपज प्राप्त होती है |

यह आवश्यक नहीं है कि सबसे आधुनिक तकनीक भी आर्थिक रूप से व्यवहार्य हो या सबसे योग्य तकनीक हो | हमें गुणवक्ता पर ध्यान देना होगा, कोई चीज नवीन है इसलिये यह आवश्यक नहीं है कि वही अच्छी है, और कोई चीज पुरानी है इसलिये यह भी आवश्यक नहीं है, कि उसे बदलना होगा |
तनाव और हिंसा युक्त समाज मे स्थिर विकास संभव नहीं है|रोग रहित शरीर,तनाव रहित मन,हिंसा रहित समाज और विष रहित पर्यावरण स्थिर विकास के प्रमुख तत्व होते है | जैसे समाज का विकास होता है; और यदि हमें अधिक से अधिक अस्पताल और कारागार बनाने पड़े तो यह भी भविष्य के लिए कोई अच्छी बात नहीं है |अधिक अस्पतालों और कारागार का उपलब्ध होना विकास के लक्षण नहीं है |

स्थिर विकास का अर्थ है, सभी किस्म के अपराधों से मुक्ति | पर्यावरण का विनाश, पेडों की कटाई, विषम अपशिष्ट पदार्थो के ढेर, फिर से प्रयोग मे न आने वाले पदार्थो का उपयोग करना भी अपराध है | पर्यावरण हमारा पहला शरीर होता है, फिर भौतिक शरीर और मन, या मानसिक परत | आपको इन तीनो स्थरो का भी ध्यान रखना होगा |
वास्तव मे मनुष्य का लालच सबसे बड़ा प्रदूषक है |लालच मनुष्य को दूसरों के साथ बाँटने से रोकता है | लालच परिस्थिति के संरक्षण मे बाधा है ; मनुष्य इतना लालची होता है की उसे तुरंत लाभ और परिणाम चाहिये होते हैं; ऐसा नहीं है कि लालच सिर्फ ठोस भौतिक पर्यावरण को प्रदूषित करता हैं परन्तु वह सूक्ष्म पर्यावरण को भी प्रदूषित करता हैं ; यह सूक्ष्म मन मे नकारात्मक भावनाओं को उत्तेजित करता है | जब यह नकारात्मक स्पंदन बढ़ जाते तो समाज मे अशांति निर्मित हो जाती है | नकारत्मक भावनाये जैसे घृणा,क्रोध, ईर्ष्या विश्व की सभी आपदाओ और दुःख का मूल कारण होती हैं, चाहे उनका स्वरुप आर्थिक , राजनैतिक या सामाजित हो |

लोगो को इस गृह,पेड़ों, नदियों और स्वयं लोगो को भी पबित्र मानने के लिए और प्रकृति और लोगों मे भगवान को देखने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ! इससे संवेदनशीलता को प्रोत्साहन मिलता है और एक संवेदनशील व्यक्ति प्रकृति का ध्यान और उसकी देखरेख करता है | मूल रूप से यह असंवेदनशीलता ही होती है जो व्यक्ति को पर्यावरण के प्रति कठोर बनाती है | यदि व्यक्ति संवेदनशील है तो वह निश्चित ही पर्यावरण का पोषण करेगा, जिससे प्रदूषण समाप्त हो सकेगा |


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