Monday 22 October 2012

भक्ति के रंग

भक्ति के रंग ०५अक्टूबर २०१२,बैंगलुरु आश्रम, सत्यनिष्ठा व्यक्ति के स्वभाव का गुण है| यदि कोई व्यक्ति सत्यनिष्ठ है, तो वह घर पर सत्यनिष्ठ होगा, वह व्यवसाय में भी सत्यनिष्ठ होगा| चाहे वो पति हो या पत्नी वो अपने जीवनसाथी के लिए सत्यनिष्ठ होगा| सत्यनिष्ठ जहाँ भी होता है सत्यनिष्ठा उसके चरित्र से साफ़ झलकती है| यही बात भक्ति के लिए भी सच है| भगवान का भक्त देश का भी भक्त होता है और साथ ही सारी सृष्टि का भक्त होता है| उनकी प्रेम और भक्ति जीवन के हर क्षेत्र में दिखाई देती है| अक्सर लोग प्रश्न करते है कि भगवान का भक्त देश का भक्त कैसे हो सकता है या देशभक्त कैसे हो सकता है, मै कहता हूँ, बिलकुल हो सकता है| अगर कोई अपने देश के लिए निष्ठावान है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वो किसी और देश या और बाकी सारे देशों का शत्रु है| हमारा दृष्टिकोण देशभक्ति के लिए बहुत ही संकीर्ण है| सामान्यतः हम किस प्रकार से अपनी देशभक्ति प्रदर्शित करते है? अन्य देशों का विरोध करके या उनसे शत्रुता रखकर| जब अंग्रेजों का हिंदुस्तान पर राज था तब उस समय अगर हम अंग्रेजों के विरुध खड़े होते थे तो हम देशभक्त कहलाते थे| आजकल अगर हम पाकिस्तान के विरुध खड़े होते है तो हम देशभक्त कहलाते हैं, यह सही नहीं है| आपके देशभक्ति की भावना किसी देश का विरोध करने या उसे नीचा दिखाने में नहीं होनी चाहिए| अगर आप अमेरिका में देखे तो पाएंगे की जो अपने आप को देशभक्त कहते है वे केवल अपने देश के प्रति अपनी भक्ति दिखाते हैं| वो किसी देश के विरुध नहीं हैं| इसलिए वे जो देशभक्त है या अपने देश के लिए समर्पित है वह सारे विश्व और सारी सृष्टि के लिए समर्पित है| जिनकी निष्ठा विश्वात्मा में है वो उनको भगवान और देश की निष्ठा में कोई अंतर नहीं दिखाई देता| अच्छा देखो, अगर आप अपने परिवार का ध्यान रखते है, उसका पालन पोषण करते है, इसका मतलब यह तो नहीं की आप और लोंगो के दुश्मन हो जाते हैं| आप अपने आसपास के लोगों का भी ध्यान रखते है और और उनको भी अपने परिवार जैसे ही प्यार करते है, है कि नहीं ? अगर कोई माँ अपने बच्चों को बहुत प्यार करती है तो उसके अन्दर अपने पडोसी बच्चों के लिए भी प्यार हो सकता है| ऐसा नहीं है कि अगर उसके मन में अपने बच्चों के लिए स्नेह है तो और बच्चों के लिए नहीं होगा, और अगर ऐसा है तो वो प्यार नहीं है, वो श्रध्दा नहीं है| एक फूल की तरह, जो चाहे कहीं भी हो, श्रध्दा की सुगंध हर तरफ फैलती है| देखो जैसे यह फूल है, इसे चाहे कहीं भी रख दो यह अपनी सुगंध हर तरफ फैलाता है| अगर आप चमेली के फूल को रसोईघर में रखे या स्नानघर में, ये फिर भी अपनी सुगंध फैलाएगा| फूल कोई अन्तर नहीं रखता की मै यहाँ पर सुगंध फैलाऊँगा और वहां नहीं| उसकी प्रकार से तुम जहाँ भी अपनी श्रध्दा रखोगे वह वहीं पर फलदायी और समृद्ध होगी| तुम अपने काम के प्रति भी श्रध्दा और निष्ठा रख सकते हो| एक प्रसिद्द कन्नड़ संत ने कहा था "कयाकावे कैलाशा", जिसका मतलब यह है की जो अपने कर्म को अच्छी तरह करता है उसे ही परमानन्द की प्राप्ति होती है| यह बात संस्कृत की अनेकों धर्मग्रंथों में भी कही गयी है| इसलिए समाज की सेवा ही सच्ची पूजा है| पूजा और सेवा में कोई अंतर नहीं है, क्योंकि दोनों का मूल आधार श्रध्दा है और परिणाम भी श्रध्दा ही है| यही बात अहंकार के लिए भी सच है, आप जिस पर भी अपना अहंकार केन्द्रित करते है वह उससे ही जुड़ जाता है| वह उसका ही आकर ले लेता है| अगर आप अपना अहंकार ब्रह्मं में लगते है तो आप "अहम् ब्रह्मास्मि" की स्थिति तो प्राप्त कर लेंगे (अहम् ब्रह्मास्मि - अहम् का मतलब है "मै" और ब्रह्मास्मि का मतलब है की "ब्रह्म हूँ ", इस बात का अनुभव होना की मै भी वो ब्रह्म हूँ जो सारी सृष्टि में व्याप्त है सभी अहंकारों को नष्ट कर देता है)| अगर तुम अपने अहंकार को छोटी छोटी वस्तुओं से जोड़ कर रखोगे तो वो अपने आप को उन के साथ जोड़ लेगा और उस जैसा ही संकीर्ण और सीमित हो जायेगा| इससे तुमको यह अनुभव होता है की "मैं कुछ हूँ", मैं एक मंत्री हूँ, मै एक पापी हूँ, मैं एक पवित्र आत्मा हूँ, मैं बहुत बुध्धिमान हूँ, मै मूर्ख हूँ .. आदि आप जहाँ पर भी अपने अहंकार को केन्द्रित करेंगे वो ही जीवन में प्रचुर मात्रा में बढ़ेगा और फलदायी होगा| जिस प्रकार से अहंकार के अन्दर प्रचुर मात्रा में बढ़ने की शक्ति है उसी प्रकार से श्रध्दा में भी प्रचुर मात्रा में बढ़ने की शक्ति है| योग विद्या में भी ऐसा कहा गया है "तस्य भूमिषु योगः" (विभूति पद # ६, पतंजलि योग सूत्र) कि योग के सतत अभ्यास से जो "योग सिद्धि" (योग से प्राप्त की गई असाधारण और चमत्कारी योग्यता) और बढ़ी हुई जागरूकता प्राप्त होती है उसको समाज और धरती के लिए लाभकारी कार्यों की तरफ लगाना चाहिए| प्रश्न : प्रिय गुरूजी, वेदिक धर्मग्रंथों के अनुसार पूरा संसार एक मिथ्या है, यह विश्व, और पूरी सृष्टि भी| मैं यह समझ नहीं पा रहा| क्या आप इसे विस्तार से समझा सकते हैं? श्री श्री रविशंकर : हाँ, यह स्पष्ट है| यदि आप प्रमात्रा भौतिक विज्ञान पढ़ें, वह यही कहता है| वस्तुओं के नाम और आकार सत्य नहीं हैं; सत्य यह है कि ये सब एक ही तरंगरूप के हिस्से हैं| सब कुछ एक ही ऊर्जा से बना है| वेदांत में हमेशा यह कहा गया है| मिथ्या का अर्थ क्या है? यह नहीं कि उसका अस्तित्व नहीं है, बल्कि यह कि वह बदलता रहता है| यहाँ हर वस्तु बदलती है और जो बदलता रहता है, वह माया कहलाती है| जिसको भी नापा जा सके, वह माया है| माया को मिथ्या नहीं समझना चाहिए| हमारे समय के उच्च प्राध्यापकों में से एक, डा. हान्स पीटर दर्र, कुछ वर्ष पहले आश्रम में थे| जानते हैं उन्होंने क्या कहा था? उन्होंने कहा, “गुरूजी, मैंने तत्व का ३५ वर्षों तक अध्ययन किया है, केवल यह समझने के लिए कि उसका अस्तित्व नहीं है! जो है वो केवल ऊर्जा है|” उन्होंने ये भी कहा, “जब मैं यह कह रहा हूँ, तो ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे मैं कोई पूर्वी सिद्धांत कह रहा हूँ|” पूर्वी दर्शन शास्त्रों में यह हज़ारों वर्ष पूर्व कहा गया था जो वैज्ञानिक आज कह रहे हैं| इस लिए जो प्रतीत होता है, वह वास्तव में होता नहीं है| यह पानी का फ्लास्क एक ठोस वस्तु प्रतीत होता पर एक वैज्ञानिक कहेगा, “नहीं, यह मात्र परमाणु हैं|” और इस के आगे कहेगा, “यह सब केवल ऊर्जा है”| हर वस्तु के भीतर एक विशाल जगह है और जैसे हम समझते हैं, वह यथार्थ नहीं है| हमारी अवधारणा इन्द्रियों के माध्यम से है और वैज्ञानिक इस अवधारणा के पार जा कर सत्य का निष्कर्ष निकालते हैं| देखिये, एक परमाणु हमें आँखों से नहीं दिखता| आप एक परमाणु नहीं देख सकते और आप ऊर्जा नहीं देख सकते पर आप जानते हैं कि वह यहाँ है| इस लिए, इस पूरे संसार का कोई अस्तित्व नहीं है का अर्थ है, जागो और देखो, सारा अतीत, क्या वह अभी भी जिंदा है?नहीं! वह केवल एक स्मृति की तरह है| समय के बहाव में, घटनाएं घुल रही हैं, इस लिए, किसी घटना का कोई अस्तित्व नहीं है| जो अभी है, अगले क्षण में, वह पहले ही बीत गया है| जैसे एक नदी में हर क्षण ताज़ा पानी होता है| उसी प्रकार, प्रकृति हर क्षण बदल रही है| और जो बदलता है, वह माया है| जिसे नापा जा सकता है, वह माया है| इस लिए, एक बहाव में देखें, तो सब विद्यमान है, पर एक सत्य की तरह नहीं| सारा संसार नाम और आकार है| ना नाम और ना ही आकार स्थायी है – यही सन्देश है| नाम भिन्न हो सकते हैं| आप किसी वस्तु को यहाँ एक नाम से पुकारते हैं, और दूसरे देश में किसी और नाम से| और किसी और देश में, यही वस्तु किसी तीसरे नाम से पुकारी जाती है| तो नाम स्थायी नहीं है, केवल हमारी सुविधा के लिए है|ऐसा ही आकार के साथ भी है| प्रश्न : प्रिय गुरूजी, सत्य बहु-आयामी है, इसका क्या अर्थ है? श्री श्री रविशंकर : हाँ, ऐसा कहा गया है| देखिये, इस जगह पर आने के लिए कोई व्यक्ति कहेगा, “यहाँ से सीधा जाओ और बाईं ओर मुड़ जाओ”| मैं कहूँगा यह सही है| एक और व्यक्ति ऐसे दिशा बताएगा, “यहाँ से सीधा जाओ, और दायीं ओर मुड़ जाओ| मैं कहूँगा यह भी सही है| तीसरा व्यक्ति कहेगा, “केवल सीधा जाओ, दायें या बाएं नहीं मुड़ना|” मैं कहूँगा यह भी सही है| अब यदि आप मुझे कहें, “केवल एक सही रास्ता ही हो सकता है| तीन सही रास्ते नहीं हो सकते”| मैं कहूँगा, “सत्य बहु-आयामी है”| यह जगह बहु-आयामी है| यहाँ आने के लिए बहुत से रास्ते हो सकते हैं, बहुत से निदेश हो सकते हैं, और ये सब सही हैं| प्रश्न : इस सृष्टि का क्या उद्देश्य है? श्री श्री रविशंकर : किसी खेल का क्या उद्देश्य होता है? (उत्तर: जीत या मनोरंजन) हाँ, केवल मनोरंजन, या मज़ा, है ना? उसी तरह| ब्रह्म पहले केवल एक थे और वो थोड़े ऊब गए थे इस लिए उन्होंने कहा, “मैं एक से बहु बन जाता हूँ”| जैसे ही यह विचार उस एक चेतना में आया वे एक से अनेक हो गए| आपने वो शीशा देखा है जिसमे हज़ारों छोटे शीशे होते है? व्यक्ति ऐसे एक शीशे के सामने खड़ा होता है और उसे अपनी हज़ारों छवियाँ दिखाई देती हैं| वह यह नहीं कहता, “जब एक शीशे ने आपकी छवि को पूर्ण रूप से दिखा दिया है, तो वह दूसरे शीशे में कैसे जा सकती है?”नहीं| यह तर्क काम नहीं करता, सही है ना? यही है वह, कि एक परमात्मा ने स्वयं को लाखों करोड़ों छवियों में ढाल लिया है, पर सत्य एक ही है| प्रश्न : प्रिय गुरूजी, साधना के अतिरिक्त हम कैसे निश्चित कर सकते हैं कि हम बार बार जीवन में वापिस ना आयें और मोक्ष प्राप्त करें? श्री श्री रविशंकर : संतोष! तृप्ति| जो भी कार्य करें, खुश हो कर और संतोष के साथ करिये| आपने आज का काम कर लिया है और आप संतुष्ट हैं| और कल भी जो कार्य करें, संतोष के साथ करें| जीवन के हर क्षण को संतोष के साथ जेएं; इस से आपको जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है| प्रश्न : गुरूजी, मैं आपके द्वारा लिखित पुस्तक, अष्टवक्र गीता, पढ़ रहा हूँ| उसका हर शब्द मुझे बहुत अच्छा महसूस करता है| परन्तु, जो आपने कहा है कि धर्म (इंसान का सामाजिक और नैतिक नीतिपरायणता के प्रति कर्तव्य), अर्थ (आर्थिक और नैतिक समृद्धि) और काम (कामिक सुख) बंधन के मुख्य कारण हैं, यह सही है| पर मैं अपने आप को इस बंधन से मुक्त नहीं कर पा रहा हूँ| मैंने अपना पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) किया है पर मुझे लगता है अब यह आपके आशीर्वाद से ही संभव है| श्री श्री रविशंकर : देखिये, अष्टवक्र गीता में कहा है, “न ग्राह्यं न त्याज्यं”| ना ही आपको उसे जकड कर रखना है, ना ही उसे त्यागने का असीम प्रयत्न करना है| बस खोखले और खाली हो जाइये और चीज़ों को जैसी वे हैं वैसे देखिये| कहा गया है, “ये दृष्ट लाभ संतुष्टम”| इसका अर्थ है, जो भी आपको मिले, जितना भी मिले, उस से संतुष्ट रहिये| यह बहुत महत्वपूर्ण है, संतुष्टि| एक साधक के पास दोनों होने चाहियें – संतुष्टि और काम में जोश| मैं हमेशा संतुष्टि के हक में हूँ| पर जब मैं संतुष्टि कहता हूँ, तो लोग उसे हालात से समझौता समझ लेते हैं| इस लिए, मैं ऐसे दर्शाता हूँ कि जो हो रहा है मैं उस से संतुष्ट नहीं हूँ, और उन्हें किसी न किसी काम में लगाये रखता हूँ, कुछ न कुछ ठीक करने में| यह इस लिए कि आप सुस्त या निष्क्रिय न बन जाएँ| इस लिए, कर्मठ भी रहिये और साथ ही आत्मसंतुष्टि का भाव भी रखिये| यह बहुत आवश्यक है| कुछ लोग हैं जो हर समय काम करते रहते हैं, पर संतुष्ट नहीं हैं| और कई व्यक्ति हैं जो इतने संतुष्ट हैं कि वे सुस्त बन जाते हैं| उनकी काम के प्रति निष्ठां नहीं होती| यह सही नहीं है| हमें बीच का रास्ता लेना है| हमें दोनों एक साथ पाने हैं| काम में जोश और साथ ही मन में संतोष का भाव| यह हमारा गुण होना चाहिए| कभी कभी लोग सोचते हैं, गुरुदेव ऐसे क्यों बर्ताव कर रहे हैं? वे क्यों कह रहे हैं, यह करो, वह करो? वे संतुष्ट रहने और कुछ प्रयत्न ना करने के बारे में बात क्यों नहीं कर रहे? पर मैं हर चीज़ पर नज़र रखता हूँ| और जिसे भी कुछ करने की आवश्यकता है, उनका मैं उस दिशा में मार्ग दर्शन करता हूँ| वे लोग जो बहुत उत्तेजित रहते हैं, उन्हें मैं शांत और विश्राम में रहने को कहता हूँ| और जो बहुत शांत हैं, उन्हें मैं कहता हूँ, “चलो, उठो! कुछ करो| यह करो, वह करो! देखो, उस आदमी ने कितना अच्छा काम किया है| तुम यहाँ बैठे हो और कुछ नहीं कर रहे!” इस तरह मैं सबको कुछ करने के लिए प्रेरित करता हूँ| भगवद गीता में भगवान कृष्ण ने भी इसी प्रकार ज्ञान दिया है| भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, “तुम युद्ध नहीं लड़ोगे? क्या कह रहे हो? लोग तुम्हारी हंसी उड़ायेंगे| इतने लोगो का उपहास सहने से अच्छा है मृत्यु को प्राप्त होना|” भगवान कृष्ण इस हद तक जाते हैं अर्जुन को युद्ध लड़ने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए| वे उसे कहते हैं, “एक कायर की तरह जीना व्यर्थ है| इस तरह जीने से अच्छा तुम जीवन त्याग दो”| बाद में वे अर्जुन से कहते हैं, “सर्व-धर्मं परित्यज्य मम एकं सरणम व्रज| अहं तवं सर्व-पपेभ्यो मोक्षयिस्यामी मा सुकाह” (भगवद गीता, पाठ १८)| सब धर्म त्याग दो और मेरे आगे समर्पण कर दो| मैं तुम्हें मुक्ति दूंगा और तुम्हारे सारे पापों से आज़ाद कर दूंगा| तुम स्वयं अपने पापों से मुक्त नहीं हो सकते| मैं तुम्हें पापों से मुक्ति प्रदान करूँगा| इसलिए अपने पापों की चिंता मत करो, उन्हें मैं संभाल लूँगा| तुम प्रसन्न रहो और उदास मत हो| इसलिए, ज्ञान के विभिन्न स्तर हैं, और हर स्तर का अपना उद्देश्य है|

Saturday 4 June 2011

ज्ञान के मोती

ज्ञान के मोती


जब आप दूसरों की सहायता या उनकी देखरेख विवेक और ज्ञान के साथ करते है, तो आप उनके लिए गुरु की भूमिका निभा रहे हैं

Posted: 30 Apr 2011 09:50 PM PDT
मॉन्ट्रियल केंद्र कनाडा, २१ अप्रैल २०११.
( पिछले लेख का शेष भाग)

प्रश्न: आपको कैसे मालूम हुआ कि आप गुरु है?क्या आपके भी कोई गुरु थे? कभी कभी मैं विचार करता हूँ कि क्या मैं अपना स्वयं का गुरु हूँ | इस संदर्भ मे आप क्या कहेंगे?
श्री श्री रवि शंकर: आप अपने आप के लिए सर्जन (चिकित्सक) नहीं हो सकते | आप सर्जन (चिकित्सक)हो सकते है परन्तु आप अपने आप के लिए सर्जन (चिकित्सक) नहीं हो सकते, ठीक है ? आपकी माँ आपकी पहली गुरु होती है|आपकी माँ आपको शिक्षा देती है| गुरु वह है जिसका आपके प्रति रुख और दृष्टिकोण बिना किसी शर्त के होता है| आपको गुरु की भूमिका बिना किसी शर्त के निभानी होती है |“जब आप दूसरों की सहायता या उनकी देखरेख विवेक और ज्ञान के साथ करते है, तो आप उनके लिए गुरु की भूमिका निभा रहे हैं”|
जब आप किसी की सहायता इस मनोभाव के साथ करते है कि “ मुझे कुछ नहीं चाहिये, मुझे सिर्फ आपकी प्रगति चाहिये” तो फिर आप उनके लिये गुरु है | और आपको उनसे आपको गुरु मानने के लिये भी मांग नहीं करनी होगी | और एक आदर्श गुरु कोई भी मांग नहीं करता,यहां तक किसी व्यक्ति से कृतज्ञता की भी उम्मीद नहीं रखता |

प्रश्न : मैने सुना है कि आर्ट ऑफ लिविंग भारत मे भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ रहा है?उत्तर अमरीका मे हम समाज से भ्रष्टाचार से लड़ने के लिये क्या कर सकता है ?
श्री श्री रवि शंकर: इस स्थिति से निपटने के लिये आपको विचार करना चाहिये | भ्रष्टाचार तीन स्तर पर होता है| पहला लोगो के मध्य मे | लोग भ्रष्टाचार को अक्सर जीवन जीने की शैली के रूप मे स्वीकार कर लेते है| दूसरा और तीसरा स्तर है, नौकरशाही और राजनीतिज्ञ | जीवन के हर वर्ग मे अच्छे लोग होते है | और ऐसे लोग भी है जो इतने अच्छे नहीं है| आपको उन्हें आर्ट ऑफ लिविंग कोर्से मे लाकर श्वास तकनीके सिखाना चाहिये | फिर वे भी अच्छे हो जायेंगे |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी, क्या आप वर्ष २०१२ मे क्या होने वाला है, उसे और विस्तृत से बतायेंगे ?
श्री श्री रवि शंकर: हमेशा की तरह व्यापार | सिर्फ लोग और अधिक आध्यात्मिक हो जायेंगे |

प्रश्न: हम अपनी आध्यात्मिक प्रगति मे शीघ्रता लाने के लिये इस समय का उपयोग कैसे कर सकते है?
श्री श्री रवि शंकर: बिलकुल वैसे ही जैसे आप अभी कर रहे है|

प्रश्न: विश्व मे कई युद्ध और क्षेत्रीय हिंसा हो रही है | विश्व मे हिंसा कम करने के लिये हम क्या कर सकते है?
श्री श्री रवि शंकर : तनाव और क्रोध हिंसा होने का मूल कारण है| और मेरे मत मे ध्यान, प्राणायाम और सुदर्शन क्रिया तनाव और क्रोध को कम करने का उपाय है | इसका यही उपाय है |
आप कुछ आयुर्वेद सहायता ले सकते है, अपने आहार को परिवर्तित कर सकते है, आप यह कर सकते है, परन्तु यह सब इतना महत्वपूर्ण नहीं है |

प्रश्न:गुरूजी कोर्से मे गायन इतना महत्वपूर्ण क्यों है? गायन का आध्यात्मिक महत्त्व क्या है?

श्री श्री रवि शंकर: ज्ञान, तर्क, और संगीत आपके मस्तिष्क के दो अलग भाग मे उत्पन्न होते है इसलिए दोनों आवश्यक है| इससे तंत्र मे संतुलन आता है | संगीत आवश्यक है |


प्रेम के साथ प्रतिबद्धता भक्ति होती है !!!

Posted: 27 Apr 2011 01:28 AM PDT
मॉन्ट्रियल केंद्र कनाडा, २१ अप्रैल २०११.


प्रश्न : जब प्रियजनों की मृत्यु होती है तो क्या उनका पुनर्जन्म होता है? क्या हम उनको फिर से पहचान सकते है? पालकों के मामले मैं क्या हम उनसे फिर से सम्बंधित हो सकते है ?
श्री श्री रवि शंकर: सब कुछ संभव है ! यदि उनका पुनर्जनम अभी होता है तो आप उन्हें जान सकते है और आप इसे महसूस कर सकते है ! क्या आप ने कभी यह महसूस किया कि जब आप कभी कही पर जाते है और कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से अचानक घनिष्ट हो जाता है ? आपकी अंतरात्मा आप को इसका अनुभव कराती है | सब कुछ संभव है | किसी समय मे हम सब एक दूसरे से सम्बंधित होते है | अतीत मे हम सब आपस मैं सम्बंधित होते हैं; अभी भी हम आपस मे सम्बंधित है | चाहे हम इसे समझे या ना समझे फिर भी हम आपस मे सम्बंधित है |


प्रश्न : खुशी क्या है ?
श्री श्री रवि शंकर : जब आप कहते है, मुझे कुछ नहीं चाहिये; वह खुशी है | जब आप खुश होते है और आप से यह प्रश्न किया जाये ‘क्या आप को कुछ चाहिये?’ फिर आप का उत्तर होता है नहीं “मुझे कुछ नहीं चाहिये”|


प्रश्न :प्रिय गुरूजी मैं अपने आप पर बहुत संशय करता हूँ , मैं अपने कौशल, योग्यता और निर्णयों पर संशय करता हूँ | अपने आप पर संशय करने से कैसे निपटा जाये ?
श्री श्री रवि शंकर : कोई व्यक्ति अपने आप पर संशय करता है तो उससे कैसे निपटा जाये? सबसे पहले संशय को समझे; संशय हर समय किसी अच्छी बात के लिये होता है | जब आप से कोई कहता है, “मैं तुम से प्रेम करता हूँ”, तो आप उनसे तुरंत प्रश्न करते है “सचमुच?” | और जब आप से कोई कहता है की “मैं तुम से घृणा करता हूँ” तब आप यह प्रश्न कभी नहीं करेंगे “सचमुच?” | इसीलिये संशय हर समय किसी अच्छी बात के लिये ही होता है | आप अपनी योग्यता पर संशय करते हैं; परन्तु आप अपनी कमजोरी पर कभी संशय नहीं करते | आप खुशी पर संशय करते हैं परन्तु दुःख पर कभी संशय नहीं करते | ठीक है ?| कोई भी अपनी उदासी या निराशा पर संशय नहीं करता, परन्तु यह कहता है कि मुझे पूरी तरह से यकीन नहीं है कि मैं खुश हूँ या नहीं| जब आप यह समझ जाते है की संशय हर समय किसी सकारात्मक बात के लिये होता है तो फिर आप का मन एक विशेष स्थर पर चला जाता है |
संशय का सरल अर्थ है; प्राण उर्जा की कमी इसीलिये अधिक प्राणायाम करें और फिर आप पायेंगे कि आप उस स्थिति से निकल गए हैं |


प्रश्न : प्रिय गुरुजी भक्त कौन होता है? भक्त को क्या करना होता है? कोई कैसे भक्त बन सकता है?
श्री श्री रवि शंकर: भक्त बनने के लिए कोई गहन प्रयास न करें; प्रेम के साथ प्रतिबद्धता भक्ति होती है | प्रेम के साथ विवेक भी भक्ति है |
विवेक के बिना प्रेम नकारात्मकता मे परिवर्तित हो सकता है | आज प्रेम करे; कल घृणा करें | आज प्रेम करे; कल ईर्ष्या करें; आज प्रेम करें संबंधो के प्रति तृष्णा को कल रखें |
प्रेम के साथ विवेक परमानन्द होता है; और वही भक्ति है | भक्ति एक बहुत मजबूत बंधन है, यह एक अपनेपन का एहसास है | हर व्यक्ति इस गुण के साथ जन्म लेता है | यह फिर से शिशु बन जाने के सामान है |


प्रश्न : प्रिय गुरु जी मैं धन्य हूँ कि मैं आपके साथ हूँ और मेरे स्तन का कर्क रोग भी आरोग्य हो रहा है जिसका निदान पिछले वर्ष हुआ था| क्या आप मुझे और हम सबको बता सकते हैं कि क्या रोग से कुछ सीखा जा सकता है ?
श्री श्री रवि शंकर:आपको बीमारी से कुछ भी सिखने की आवश्यकता नहीं है|आगे बढते रहे | यह जीवन का हिस्सा है | शरीर कभी कभी बीमार हो जाता है | यह कई कारणों से हो सकता है | यह कर्मो, पूर्व के संस्कार और पारिवारिक जीन के कारण हो सकता है|यह प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करने से,जब आवश्यक न हो तो भी अधिक भोजन ग्रहण करने से, और यह वर्तमान की प्रौद्योगिकी के कारण भी हो सकता है जो इतनी अधिक विकिरण उत्पन्न करती है | इसलिये इस पर ध्यान देने की आवश्यता नहीं है कि इससे हमें क्या सीखना है |
सिर्फ एक विश्वाश, एक ज्ञान और एक कृतज्ञता के साथ आगे बढते रहे |आपको खुश रहना चाहिये कि आप इस गृह पर है, और जब तक आप सब यहां पर है, आप सब को अच्छा ही करना है क्योंकि निश्चित ही आप सब को एक दिन यहां से जाना है |


प्रश्न : मुझे दो सिद्धांतों का परिचय करवाया गया है जो मुझे भ्रमित करता है; अ:मैं कर्ता नहीं हूँ, या ब: मुझे हर छोटी छोटी बात की जिम्मेदारी लेनी चाहिये जबकि उस पर मेरा नियंत्रण बहुत ही कम है, कृपया इसे समझाये?
श्री श्री रवि शंकर : जीवन इन दोनों बातों का संतुलन है| जिम्मेदारी लेना और फिर उसे समर्पित कर देना | और यह एक उत्तम संतुलन है | वर्तमान और भविष्य के लिए जिम्मेदारी लीजिये और अतीत के लिये जान लीजिये कि ऐसा ही होना था और आगे बढ़ते चले | परन्तु आप अक्सर इसका विपरीत करते है|आप सोचते है कि अतीत आपकी स्वतंत्र इच्छा थी और उसका पछतावा करते है और भविष्य को भाग्य समझकर उसके लिये कुछ भी नहीं करते है | क्या आपको मालूम है कि ज्ञानी लोग क्या करते है? वे भविष्य को स्वतंत्र इच्छा, और अतीत को भाग्य मानते है और वर्तमान मे खुश रहते है| इसलिये आप अतीत का पछतावा न करे और आपको पता है कि आपको भविष्य मे क्या करना है और उसके लिये सक्रीय हो जाये |


सेवा के द्वारा कृत्य शुद्ध हो जाते है!

Posted: 26 Apr 2011 01:57 AM PDT
आर्ट ऑफ लिविंग केंद्र ,टेक्सास, अमरीका
१२, अप्रैल,२०११


प्रश्न: न्याय के लिये लड़ने के दौरान मैं शान्ति को कैसे संतुलित कर सकता हूँ ?
श्री श्री रवि शंकर: यही सम्पूर्ण भगवत गीता का सार है |भीतर से शांत रहकर जब आवश्यक हो तब कृत्य को करे | जब आवश्यक हो तो लड़े; परन्तु उस लड़ाई को अपने मन के भीतर ही न रखे | अक्सर हम भीतर ही लड़ते रहते है और बहार शांत रहते है| हमें इसका विपरीत करना चाहिये | ध्यान के द्वारा इस परिवर्तन को लाना आसान है | सत्व और ध्यान की शक्ति इसे आसान बना देती है |
आज रामनवमी है | रा का अर्थ है प्रकाश, और म का अर्थ है मैं | राम का अर्थ है “ मेरे भीतर का प्रकाश” राम का जन्म दशरत और कौशल्या के यहां हुआ था | दशरथ का अर्थ है “दस रथ” | दस रथ पांच इन्द्रियों और पांच ज्ञान और कृत्य को दर्शाता है |(उदाहरण के लिये; प्रजनन,पैर,हाथ इत्यादि) कौशल्या का अर्थ है ‘कौशल’ | अयोध्या का अर्थ है, “ऐसा समाज जहां कोई हिंसा नहीं है” जब आप कुशलतापूर्वक इसका अवलोकन करते है, कि आपके शरीर के भीतर क्या प्रवेश कर रहा है,आपके भीतर प्रकाश का भोर हो रहा है |यही ध्यान है| आपको तनाव को मुक्त करने के लिए कुछ कौशल की आवश्यता होती है | फिर आपका फैलाव होने लगता है |
आपको पता है आप अभी यहां पर है फिर भी आप यहां पर नहीं है |इस एहसास से, कि कुछ प्रकाश तुरंत आता है | जब भीतर के प्रकाश मे चमक आ जाती है तो वह राम है | सीता जो मन/बुद्धि है, उसे अहंकार(रावण) ने चुरा लिया था | रावण के दस मुख थे | रावण (अहंकार) वह था, जो किसी की बात नहीं सुनता था | वह अपने सिर(अहंकार) मे ही उलझा रहता था | हनुमान का अर्थ श्वास है | हनुमान (श्वास) के सहायता से सीता(मन) अपने राम (स्त्रोत्र) के पास जा सकी |
रामायण ७,५०० वर्ष पूर्व घटित हुई |उसका जर्मनी और यूरोप और पूर्व के कई देशो पर प्रभाव पड़ा | हजारों से अधिक नगरों का नामकरण राम से हुआ |जर्मनी मे रामबौघ,इटली मे रोम का मूल राम शब्द मे ही है | इंडोनेशिया, बाली और जापान सभी रामायण से प्रभावित हुये |वैसे तो रामायण इतिहास है परन्तु यह एक ऐसी अनंत घटना है,जो हर समय घटित होती रहती है |


प्रश्न: गुरु आदर्श भक्त मे कौन से गुण देखना चाहते है?
श्री श्री रवि शंकर: कोई भी नहीं | यदि मैं कोई एक गुण बताऊंगा, तो आप उस गुण का अनुसरण करने लगेंगे | इसलिए स्वयं के साथ स्वाभाविक और ईमानदार रहे | यदि एक दिन भी आपका ध्यान करना रह जाता है तो उसके लिये परेशान न हो | समय आपको लेकर चल रहा है| जो भी अच्छे गुणों की तलाश आपको है, वह वैसे भी आप मे मौजूद है | आप यहां पर है और सब अच्छा ही कर रहे है|
उचित आहार से आप अपने शरीर को शुद्ध रख सकते है | साल मे दो तीन दिन व्रत रखना अच्छा होता है| रस लेकर व्रत करे |परन्तु यदि आपका शरीर इसकी अनुमति नहीं देता तो उसे न करे | आपको अपने शरीर की बात सुननी चाहिये |
मन प्राणायाम और सुदर्शन क्रिया के द्वारा शुद्ध होता है |
बुद्धि ज्ञान के द्वारा शुद्ध होती है |
भावनाये भजन के द्वारा शुद्ध होती है |
सेवा के द्वारा कृत्य शुद्ध हो जाते है |
दान के द्वारा धन शुद्ध हो जाता है |
आपने अपने आय का २ से ३ % दान करना चाहिये |


प्रश्न: आने वाले वर्षों के लिये आपका आर्ट ऑफ लिविंग के लिये क्या दृष्टिकोण है?
श्री श्री रवि शंकर :मैने उसकी शुरुवात कर दी है | मैने अपना कृत्य कर दिया | अब यह आप पर है | आपके पास दृष्टिकोण है, इसलिये आप उसे जहां ले जाना चाहे ले जाये | हम जर्मनी मे आर्ट ऑफ लिविंग के ३० वर्ष पूर्ण होने का उत्सव मना रहे है | हिटलर ने ७५ वर्ष पूर्व जिस ओलंपिक स्टेडियम का निर्माण करवाया था हम उसी मे होंगे | उसने युद्ध की शुरुवात वही से करी | जिस जगह से युद्ध की शुरुवात हुई, हम वही से शान्ति के सन्देश का प्रचार करेंगे |


प्रश्न: कई युद्धों का कारण धर्म क्यों होता है?
श्री श्री रवि शंकर:मुझे भी आश्चर्य होता है | विश्व मे १० प्रमुख धर्म है | चार मध्य पूर्वी देशो से और ६ पूर्व देशो से | पूर्व के ६ धर्मो मे कोई द्वंद नहीं है | इन ६ धर्मो मे कभी भी कोई द्वंद नहीं हुआ| हिंदू,बुद्ध,सिख, जैन,शिंटो और ताओ धर्म एक ही समय आस्तित्व मे थे | जब राष्ट्रपति निक्सन जापान गये , तो उनके एक तरफ शिंटो संत थे और दूसरी तरफ बौद्ध संत थे | उन्होंने शिंटो संत से प्रश्न किया कि जापान मे शिंटो कितने प्रतिशत है? संत ने कहा-८०% |फिर उन्होंने बौद्ध संत से प्रश्न किया , कि जापान मे बुद्ध कितने प्रतिशत है? संत ने कहा-८०%| निक्सन को आश्चर्य हुआ कि यह कैसे संभव है| शिंटो बुद्ध मंदिरों मे जाते है और बुद्ध शिंटो मंदिरों मे जाते है |उसी तरह हिंदू सिख गुरूद्वारो मे जाते है,और सिख हिंदू मंदिरों मे जाते है | भारत मे यही बात हिंदू और बुद्ध लोगों के लिये कही जा सकती है |उसी तरह चीन मे बुद्ध और ताओ धर्म मे कोई द्वंद नहीं है
मध्य पूर्व के चार धर्मो मे हर समय युद्ध रहा |इन्होने अन्य ६ धर्मो से सीखना चाहिये कि कैसे एक साथ आस्तित्व मे रहना चाहिये | ईसाई और यहूदी धर्म मे मित्रता है | यहूदी और इस्लाम धर्म मे कोई आपसी मुद्दा है |


प्रश्न: कर्म और भाग्य मे क्या अंतर है?
श्री श्री रवि शंकर: भाग्य का अर्थ है विधि अर्थात यह ऐसा ही है | कर्म के अनेक अर्थ है | इसका अर्थ कृत्य या अप्रत्यक्ष कृत्य भी हो सकता है | किसी कृत्य के संस्कार के कारण कोई अन्य कृत्य भी उत्पन्न हो सकता है और उसे भी कर्म कह सकते है |


सेवा के द्वारा कृत्य शुद्ध हो जाते है!

Posted: 26 Apr 2011 01:57 AM PDT
आर्ट ऑफ लिविंग केंद्र ,टेक्सास, अमरीका
१२, अप्रैल,२०११


प्रश्न: न्याय के लिये लड़ने के दौरान मैं शान्ति को कैसे संतुलित कर सकता हूँ ?
श्री श्री रवि शंकर: यही सम्पूर्ण भगवत गीता का सार है |भीतर से शांत रहकर जब आवश्यक हो तब कृत्य को करे | जब आवश्यक हो तो लड़े; परन्तु उस लड़ाई को अपने मन के भीतर ही न रखे | अक्सर हम भीतर ही लड़ते रहते है और बहार शांत रहते है| हमें इसका विपरीत करना चाहिये | ध्यान के द्वारा इस परिवर्तन को लाना आसान है | सत्व और ध्यान की शक्ति इसे आसान बना देती है |
आज रामनवमी है | रा का अर्थ है प्रकाश, और म का अर्थ है मैं | राम का अर्थ है “ मेरे भीतर का प्रकाश” राम का जन्म दशरत और कौशल्या के यहां हुआ था | दशरथ का अर्थ है “दस रथ” | दस रथ पांच इन्द्रियों और पांच ज्ञान और कृत्य को दर्शाता है |(उदाहरण के लिये; प्रजनन,पैर,हाथ इत्यादि) कौशल्या का अर्थ है ‘कौशल’ | अयोध्या का अर्थ है, “ऐसा समाज जहां कोई हिंसा नहीं है” जब आप कुशलतापूर्वक इसका अवलोकन करते है, कि आपके शरीर के भीतर क्या प्रवेश कर रहा है,आपके भीतर प्रकाश का भोर हो रहा है |यही ध्यान है| आपको तनाव को मुक्त करने के लिए कुछ कौशल की आवश्यता होती है | फिर आपका फैलाव होने लगता है |
आपको पता है आप अभी यहां पर है फिर भी आप यहां पर नहीं है |इस एहसास से, कि कुछ प्रकाश तुरंत आता है | जब भीतर के प्रकाश मे चमक आ जाती है तो वह राम है | सीता जो मन/बुद्धि है, उसे अहंकार(रावण) ने चुरा लिया था | रावण के दस मुख थे | रावण (अहंकार) वह था, जो किसी की बात नहीं सुनता था | वह अपने सिर(अहंकार) मे ही उलझा रहता था | हनुमान का अर्थ श्वास है | हनुमान (श्वास) के सहायता से सीता(मन) अपने राम (स्त्रोत्र) के पास जा सकी |
रामायण ७,५०० वर्ष पूर्व घटित हुई |उसका जर्मनी और यूरोप और पूर्व के कई देशो पर प्रभाव पड़ा | हजारों से अधिक नगरों का नामकरण राम से हुआ |जर्मनी मे रामबौघ,इटली मे रोम का मूल राम शब्द मे ही है | इंडोनेशिया, बाली और जापान सभी रामायण से प्रभावित हुये |वैसे तो रामायण इतिहास है परन्तु यह एक ऐसी अनंत घटना है,जो हर समय घटित होती रहती है |


प्रश्न: गुरु आदर्श भक्त मे कौन से गुण देखना चाहते है?
श्री श्री रवि शंकर: कोई भी नहीं | यदि मैं कोई एक गुण बताऊंगा, तो आप उस गुण का अनुसरण करने लगेंगे | इसलिए स्वयं के साथ स्वाभाविक और ईमानदार रहे | यदि एक दिन भी आपका ध्यान करना रह जाता है तो उसके लिये परेशान न हो | समय आपको लेकर चल रहा है| जो भी अच्छे गुणों की तलाश आपको है, वह वैसे भी आप मे मौजूद है | आप यहां पर है और सब अच्छा ही कर रहे है|
उचित आहार से आप अपने शरीर को शुद्ध रख सकते है | साल मे दो तीन दिन व्रत रखना अच्छा होता है| रस लेकर व्रत करे |परन्तु यदि आपका शरीर इसकी अनुमति नहीं देता तो उसे न करे | आपको अपने शरीर की बात सुननी चाहिये |
मन प्राणायाम और सुदर्शन क्रिया के द्वारा शुद्ध होता है |
बुद्धि ज्ञान के द्वारा शुद्ध होती है |
भावनाये भजन के द्वारा शुद्ध होती है |
सेवा के द्वारा कृत्य शुद्ध हो जाते है |
दान के द्वारा धन शुद्ध हो जाता है |
आपने अपने आय का २ से ३ % दान करना चाहिये |


प्रश्न: आने वाले वर्षों के लिये आपका आर्ट ऑफ लिविंग के लिये क्या दृष्टिकोण है?
श्री श्री रवि शंकर :मैने उसकी शुरुवात कर दी है | मैने अपना कृत्य कर दिया | अब यह आप पर है | आपके पास दृष्टिकोण है, इसलिये आप उसे जहां ले जाना चाहे ले जाये | हम जर्मनी मे आर्ट ऑफ लिविंग के ३० वर्ष पूर्ण होने का उत्सव मना रहे है | हिटलर ने ७५ वर्ष पूर्व जिस ओलंपिक स्टेडियम का निर्माण करवाया था हम उसी मे होंगे | उसने युद्ध की शुरुवात वही से करी | जिस जगह से युद्ध की शुरुवात हुई, हम वही से शान्ति के सन्देश का प्रचार करेंगे |


प्रश्न: कई युद्धों का कारण धर्म क्यों होता है?
श्री श्री रवि शंकर:मुझे भी आश्चर्य होता है | विश्व मे १० प्रमुख धर्म है | चार मध्य पूर्वी देशो से और ६ पूर्व देशो से | पूर्व के ६ धर्मो मे कोई द्वंद नहीं है | इन ६ धर्मो मे कभी भी कोई द्वंद नहीं हुआ| हिंदू,बुद्ध,सिख, जैन,शिंटो और ताओ धर्म एक ही समय आस्तित्व मे थे | जब राष्ट्रपति निक्सन जापान गये , तो उनके एक तरफ शिंटो संत थे और दूसरी तरफ बौद्ध संत थे | उन्होंने शिंटो संत से प्रश्न किया कि जापान मे शिंटो कितने प्रतिशत है? संत ने कहा-८०% |फिर उन्होंने बौद्ध संत से प्रश्न किया , कि जापान मे बुद्ध कितने प्रतिशत है? संत ने कहा-८०%| निक्सन को आश्चर्य हुआ कि यह कैसे संभव है| शिंटो बुद्ध मंदिरों मे जाते है और बुद्ध शिंटो मंदिरों मे जाते है |उसी तरह हिंदू सिख गुरूद्वारो मे जाते है,और सिख हिंदू मंदिरों मे जाते है | भारत मे यही बात हिंदू और बुद्ध लोगों के लिये कही जा सकती है |उसी तरह चीन मे बुद्ध और ताओ धर्म मे कोई द्वंद नहीं है
मध्य पूर्व के चार धर्मो मे हर समय युद्ध रहा |इन्होने अन्य ६ धर्मो से सीखना चाहिये कि कैसे एक साथ आस्तित्व मे रहना चाहिये | ईसाई और यहूदी धर्म मे मित्रता है | यहूदी और इस्लाम धर्म मे कोई आपसी मुद्दा है |


प्रश्न: कर्म और भाग्य मे क्या अंतर है?
श्री श्री रवि शंकर: भाग्य का अर्थ है विधि अर्थात यह ऐसा ही है | कर्म के अनेक अर्थ है | इसका अर्थ कृत्य या अप्रत्यक्ष कृत्य भी हो सकता है | किसी कृत्य के संस्कार के कारण कोई अन्य कृत्य भी उत्पन्न हो सकता है और उसे भी कर्म कह सकते है |


सेवा के द्वारा कृत्य शुद्ध हो जाते है!

Posted: 26 Apr 2011 01:57 AM PDT
आर्ट ऑफ लिविंग केंद्र ,टेक्सास, अमरीका
१२, अप्रैल,२०११


प्रश्न: न्याय के लिये लड़ने के दौरान मैं शान्ति को कैसे संतुलित कर सकता हूँ ?
श्री श्री रवि शंकर: यही सम्पूर्ण भगवत गीता का सार है |भीतर से शांत रहकर जब आवश्यक हो तब कृत्य को करे | जब आवश्यक हो तो लड़े; परन्तु उस लड़ाई को अपने मन के भीतर ही न रखे | अक्सर हम भीतर ही लड़ते रहते है और बहार शांत रहते है| हमें इसका विपरीत करना चाहिये | ध्यान के द्वारा इस परिवर्तन को लाना आसान है | सत्व और ध्यान की शक्ति इसे आसान बना देती है |
आज रामनवमी है | रा का अर्थ है प्रकाश, और म का अर्थ है मैं | राम का अर्थ है “ मेरे भीतर का प्रकाश” राम का जन्म दशरत और कौशल्या के यहां हुआ था | दशरथ का अर्थ है “दस रथ” | दस रथ पांच इन्द्रियों और पांच ज्ञान और कृत्य को दर्शाता है |(उदाहरण के लिये; प्रजनन,पैर,हाथ इत्यादि) कौशल्या का अर्थ है ‘कौशल’ | अयोध्या का अर्थ है, “ऐसा समाज जहां कोई हिंसा नहीं है” जब आप कुशलतापूर्वक इसका अवलोकन करते है, कि आपके शरीर के भीतर क्या प्रवेश कर रहा है,आपके भीतर प्रकाश का भोर हो रहा है |यही ध्यान है| आपको तनाव को मुक्त करने के लिए कुछ कौशल की आवश्यता होती है | फिर आपका फैलाव होने लगता है |
आपको पता है आप अभी यहां पर है फिर भी आप यहां पर नहीं है |इस एहसास से, कि कुछ प्रकाश तुरंत आता है | जब भीतर के प्रकाश मे चमक आ जाती है तो वह राम है | सीता जो मन/बुद्धि है, उसे अहंकार(रावण) ने चुरा लिया था | रावण के दस मुख थे | रावण (अहंकार) वह था, जो किसी की बात नहीं सुनता था | वह अपने सिर(अहंकार) मे ही उलझा रहता था | हनुमान का अर्थ श्वास है | हनुमान (श्वास) के सहायता से सीता(मन) अपने राम (स्त्रोत्र) के पास जा सकी |
रामायण ७,५०० वर्ष पूर्व घटित हुई |उसका जर्मनी और यूरोप और पूर्व के कई देशो पर प्रभाव पड़ा | हजारों से अधिक नगरों का नामकरण राम से हुआ |जर्मनी मे रामबौघ,इटली मे रोम का मूल राम शब्द मे ही है | इंडोनेशिया, बाली और जापान सभी रामायण से प्रभावित हुये |वैसे तो रामायण इतिहास है परन्तु यह एक ऐसी अनंत घटना है,जो हर समय घटित होती रहती है |


प्रश्न: गुरु आदर्श भक्त मे कौन से गुण देखना चाहते है?
श्री श्री रवि शंकर: कोई भी नहीं | यदि मैं कोई एक गुण बताऊंगा, तो आप उस गुण का अनुसरण करने लगेंगे | इसलिए स्वयं के साथ स्वाभाविक और ईमानदार रहे | यदि एक दिन भी आपका ध्यान करना रह जाता है तो उसके लिये परेशान न हो | समय आपको लेकर चल रहा है| जो भी अच्छे गुणों की तलाश आपको है, वह वैसे भी आप मे मौजूद है | आप यहां पर है और सब अच्छा ही कर रहे है|
उचित आहार से आप अपने शरीर को शुद्ध रख सकते है | साल मे दो तीन दिन व्रत रखना अच्छा होता है| रस लेकर व्रत करे |परन्तु यदि आपका शरीर इसकी अनुमति नहीं देता तो उसे न करे | आपको अपने शरीर की बात सुननी चाहिये |
मन प्राणायाम और सुदर्शन क्रिया के द्वारा शुद्ध होता है |
बुद्धि ज्ञान के द्वारा शुद्ध होती है |
भावनाये भजन के द्वारा शुद्ध होती है |
सेवा के द्वारा कृत्य शुद्ध हो जाते है |
दान के द्वारा धन शुद्ध हो जाता है |
आपने अपने आय का २ से ३ % दान करना चाहिये |


प्रश्न: आने वाले वर्षों के लिये आपका आर्ट ऑफ लिविंग के लिये क्या दृष्टिकोण है?
श्री श्री रवि शंकर :मैने उसकी शुरुवात कर दी है | मैने अपना कृत्य कर दिया | अब यह आप पर है | आपके पास दृष्टिकोण है, इसलिये आप उसे जहां ले जाना चाहे ले जाये | हम जर्मनी मे आर्ट ऑफ लिविंग के ३० वर्ष पूर्ण होने का उत्सव मना रहे है | हिटलर ने ७५ वर्ष पूर्व जिस ओलंपिक स्टेडियम का निर्माण करवाया था हम उसी मे होंगे | उसने युद्ध की शुरुवात वही से करी | जिस जगह से युद्ध की शुरुवात हुई, हम वही से शान्ति के सन्देश का प्रचार करेंगे |


प्रश्न: कई युद्धों का कारण धर्म क्यों होता है?
श्री श्री रवि शंकर:मुझे भी आश्चर्य होता है | विश्व मे १० प्रमुख धर्म है | चार मध्य पूर्वी देशो से और ६ पूर्व देशो से | पूर्व के ६ धर्मो मे कोई द्वंद नहीं है | इन ६ धर्मो मे कभी भी कोई द्वंद नहीं हुआ| हिंदू,बुद्ध,सिख, जैन,शिंटो और ताओ धर्म एक ही समय आस्तित्व मे थे | जब राष्ट्रपति निक्सन जापान गये , तो उनके एक तरफ शिंटो संत थे और दूसरी तरफ बौद्ध संत थे | उन्होंने शिंटो संत से प्रश्न किया कि जापान मे शिंटो कितने प्रतिशत है? संत ने कहा-८०% |फिर उन्होंने बौद्ध संत से प्रश्न किया , कि जापान मे बुद्ध कितने प्रतिशत है? संत ने कहा-८०%| निक्सन को आश्चर्य हुआ कि यह कैसे संभव है| शिंटो बुद्ध मंदिरों मे जाते है और बुद्ध शिंटो मंदिरों मे जाते है |उसी तरह हिंदू सिख गुरूद्वारो मे जाते है,और सिख हिंदू मंदिरों मे जाते है | भारत मे यही बात हिंदू और बुद्ध लोगों के लिये कही जा सकती है |उसी तरह चीन मे बुद्ध और ताओ धर्म मे कोई द्वंद नहीं है
मध्य पूर्व के चार धर्मो मे हर समय युद्ध रहा |इन्होने अन्य ६ धर्मो से सीखना चाहिये कि कैसे एक साथ आस्तित्व मे रहना चाहिये | ईसाई और यहूदी धर्म मे मित्रता है | यहूदी और इस्लाम धर्म मे कोई आपसी मुद्दा है |


प्रश्न: कर्म और भाग्य मे क्या अंतर है?
श्री श्री रवि शंकर: भाग्य का अर्थ है विधि अर्थात यह ऐसा ही है | कर्म के अनेक अर्थ है | इसका अर्थ कृत्य या अप्रत्यक्ष कृत्य भी हो सकता है | किसी कृत्य के संस्कार के कारण कोई अन्य कृत्य भी उत्पन्न हो सकता है और उसे भी कर्म कह सकते है |



अपने पर्यावरण के प्रति संवेदनशील रहे !

Posted: 24 Apr 2011 11:33 PM PDT
२३, अप्रैल, २०११
आज विश्व पृथ्वी दिवस पर पर्यावरण का पोषण और उसका ध्यान रखने का संकल्प लीजिये !!!
विकास अनिवार्य है, परन्तु अल्प कालिक द्रष्टिकोण होने से वे अक्सर बड़े नुकसान का कारण बन जाते है | स्थिर विकास वे होते है जो किसी भी कार्यक्रम मे दीर्घकालिक प्रभाव एवं लाभ का ध्यान रखते है |

अल्प कालिक विकास सिर्फ आपदा होते हैं | प्राकृतिक साधनों का नाश बिना किसी दीर्धकालिक दृष्टिकोण होने से पारिस्थितिकी नष्ट हो जाती है, जो कि जीवन का स्रोत्र होती है | विकास का उद्देश्य जीवन को स्थिर बनाने के लिए सहायक होना चाहिये| एक बड़ा द्रष्टिकोण रखते हुये सारी विकास योजनाएं पारिस्थितिकी, समाजशास्त्र और मनोविज्ञान पर प्रभाव करती है| फिर किसी भी विकास की प्रक्रिया सजगतापूर्ण प्रयासों के द्वारा इस प्रथ्वी और उसके साधनों का संरक्षण करने के लिए हो जाते हैं | हमारे गृह का स्वस्थ्य सबसे महत्पूर्ण है !

मानव तंत्र मे पर्यावरण के प्रति समझ मौजूद होती है | सम्पूर्ण इतिहास मे भारत मे प्रकृति को पूजा जाता है जैसे ; पर्वत, नदी, सूर्य , चंद्र, वृक्ष को श्रद्धा के भाव से देखा जाता रहा है | विश्व के सारे प्राचीन संस्कृतियों ने प्रकृति के प्रति गहन श्रद्धा प्रकट की है | उनके लिए भगवान मंदिरों या गिरजाघरों मे नहीं होते थे परन्तु वह इस प्रकृति मे ही अंतर्निहित होता था | और जब हम प्रकृति से दूर जाने लगे तो हम इसे प्रदूषित करने लगे |प्रकृति का सम्मान और उसका संरक्षण करने की प्राचीन प्रथा को पुनर्जीवित करना आज के समय की गहन आवश्यकता है| कई लोगो का मत है कि पारिस्थितिकी की हानि तकनीकी प्रगति का अपरिहार्य उपोत्पाद है | परन्तु यह सही नहीं है,स्थिर विकास तभी संभव है, जब पारिस्थितिकी की सुरक्षा की जाये | विज्ञान और प्रौद्योगिकी को पर्यावरण विरोधी नहीं मानना चाहिये, और ऐसे साधनों की खोज करनी चाहिये जिससे विज्ञान और प्रौद्योगिकी मे विकास करते हुये पर्यावरण के साथ सामंजस्य स्थापित हो सके | यह आज के युग की सबसे बड़ी चुनौती है |

प्रकृति का अवलोकन करे, इसके पांचो तत्व एक दुसरे के विरोधाभासी होते है | जल अग्नि को नष्ट करता है,अग्नि वायु को नष्ट करती है| प्रकृति मे कई प्रजातिया होती है, जैसे पक्षी,सरीसृप, स्तनधारी; और यह सारी विभिन्न प्रजातिया एक दुसरे के विरोधाभासी होती परन्तु फिर भी प्रकृति इन सब मे संतुलन बनाकर रखती है | हमें प्रकृति से सीखना चाहिये कि कैसे वह अपशिष्ट पदार्थ का पाचन करके उसी से कुछ और भी सुन्दर पदार्थ का उत्पादन करती है | विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संकट पैदा नहीं होता है परन्तु विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रक्रियाओं से जो अपशिष्ट पदार्थ उत्पन्न होते है, वह संकट का कारण है |

अपशिष्ट पदार्थो को नष्ट करने के साधनो को हमें ढूँढना होगा और गैर प्रदूषणकारी प्रक्रियाओ को विकसित करना होगा;जैसे सौर उर्जा को उपयोग मे लाना होगा | परंपरागत पद्दति की ओर वापसी करते हुये हमें जैविक ओर रसायन रहित खेती को अपनाना होगा जिससे स्वस्थ्य विकास की पृष्ठभूमि तैयार हो सके | संस्कृति,प्रौद्योगिकी, व्यापार और सत्य वे चार सूत्र है,जिसे समय समय पर पुनर्जीवित करना होगा | जब तक वे पुनर्जीवित नहीं होंगे, तो जिस उद्देश्य से उनकी शुरुवात हुई थी वह अर्थहीन हो जायेगा | प्राचीन और आधुनिक पद्दतियो मे आपसी तालमेल लाना होगा | रसायन और उर्वरक के क्षेत्र मे प्रगति होने के बावजूद, प्राचीन भारतीय प्रौद्योगिकी मे गौमूत्र और गाय के गोबर का उपयोग अब भी फसल की खेती के लिए उत्तम उपाय है | कई शोध से यह पता चलता है, कि प्राकृतिक खेती से अधिक उपज प्राप्त होती है |

यह आवश्यक नहीं है कि सबसे आधुनिक तकनीक भी आर्थिक रूप से व्यवहार्य हो या सबसे योग्य तकनीक हो | हमें गुणवक्ता पर ध्यान देना होगा, कोई चीज नवीन है इसलिये यह आवश्यक नहीं है कि वही अच्छी है, और कोई चीज पुरानी है इसलिये यह भी आवश्यक नहीं है, कि उसे बदलना होगा |
तनाव और हिंसा युक्त समाज मे स्थिर विकास संभव नहीं है|रोग रहित शरीर,तनाव रहित मन,हिंसा रहित समाज और विष रहित पर्यावरण स्थिर विकास के प्रमुख तत्व होते है | जैसे समाज का विकास होता है; और यदि हमें अधिक से अधिक अस्पताल और कारागार बनाने पड़े तो यह भी भविष्य के लिए कोई अच्छी बात नहीं है |अधिक अस्पतालों और कारागार का उपलब्ध होना विकास के लक्षण नहीं है |

स्थिर विकास का अर्थ है, सभी किस्म के अपराधों से मुक्ति | पर्यावरण का विनाश, पेडों की कटाई, विषम अपशिष्ट पदार्थो के ढेर, फिर से प्रयोग मे न आने वाले पदार्थो का उपयोग करना भी अपराध है | पर्यावरण हमारा पहला शरीर होता है, फिर भौतिक शरीर और मन, या मानसिक परत | आपको इन तीनो स्थरो का भी ध्यान रखना होगा |
वास्तव मे मनुष्य का लालच सबसे बड़ा प्रदूषक है |लालच मनुष्य को दूसरों के साथ बाँटने से रोकता है | लालच परिस्थिति के संरक्षण मे बाधा है ; मनुष्य इतना लालची होता है की उसे तुरंत लाभ और परिणाम चाहिये होते हैं; ऐसा नहीं है कि लालच सिर्फ ठोस भौतिक पर्यावरण को प्रदूषित करता हैं परन्तु वह सूक्ष्म पर्यावरण को भी प्रदूषित करता हैं ; यह सूक्ष्म मन मे नकारात्मक भावनाओं को उत्तेजित करता है | जब यह नकारात्मक स्पंदन बढ़ जाते तो समाज मे अशांति निर्मित हो जाती है | नकारत्मक भावनाये जैसे घृणा,क्रोध, ईर्ष्या विश्व की सभी आपदाओ और दुःख का मूल कारण होती हैं, चाहे उनका स्वरुप आर्थिक , राजनैतिक या सामाजित हो |

लोगो को इस गृह,पेड़ों, नदियों और स्वयं लोगो को भी पबित्र मानने के लिए और प्रकृति और लोगों मे भगवान को देखने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ! इससे संवेदनशीलता को प्रोत्साहन मिलता है और एक संवेदनशील व्यक्ति प्रकृति का ध्यान और उसकी देखरेख करता है | मूल रूप से यह असंवेदनशीलता ही होती है जो व्यक्ति को पर्यावरण के प्रति कठोर बनाती है | यदि व्यक्ति संवेदनशील है तो वह निश्चित ही पर्यावरण का पोषण करेगा, जिससे प्रदूषण समाप्त हो सकेगा |


ज्ञान के मोती

ज्ञान के मोती


सहजता और सरलता का अभाव ही अहंकार है!

Posted: 10 May 2011 12:22 AM PDT
प्रश्न: अच्छे और बुरे कर्म में क्या अंतर है?
श्री श्री रवि शंकर: कर्म को अच्छा बुरा title हम देते हैं। तनाव से जो करते हैं वो कर्म सब बुरे हैं। प्रसन्न चित्त से जो भी करते हैं वो सब अच्छे हैं। एक बार की बात है - बोद्धिसत्व गए चीन। तो चीन के चक्रवर्ति स्वागत करने आए, बोले "हमने इतने तलाब खुलवाएं हैं, यह सब किया है, अन्न दान किया है, यह किया है, वो किया है।" यह सब सुनने के बाद बोद्धिसत्व ने कह दिया तू तो नर्क जाएगा। यह कोई अच्छा कर्म है! क्यों? मैं कर रहा हूँ। मैं कर्ता हूँ! यह कर्तापन से किया है। तनाव से किया है। अहंकार से किया है। सो वो अच्छा कर्म ही क्यों ना हो वो बुरा ही तुम्हारे लिए बन जाता है।


प्रश्न: गुरुजी अहंकार क्या है और उसे कैसे मिटा सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर: अपने आपको इस समष्टि से अलग मानना ही अहंकार है। औरों से अपने आप को अलग मानना। मैं बहुत अच्छा हूँ, सबसे अच्छा हूँ यां सबसे बुरा हूँ। दोनो अहंकार है। और अहंकार को तोड़ने की चेष्टा ना करो। ऐसा लगता है, उसको रहने दो। ऐसा लग रहा है मुझ में अहंकार है तो बोलो ठीक है, मेरी जेब में रह जाओ! कोई बात नहीं! वो अपने आप सहज हो जाएगा। सहजता का अभाव ही अहंकार है। सरलता का अभाव अहंकार है। अपनापन का अभाव अहंकार है। आत्मीयता का अभाव अहंकार है। और इसको तोड़ने के लिए सहजता, आत्मीयता, माने अपनापन, सरलता को जीवन में अपनाना पड़ेगा।


प्रश्न: अगर किसी करीबी का निधन हो जाए तो उनकी आत्मा की शांति के लिए क्या कर सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर: तुम शांत हो। जैसे तुम शांत होते हो, प्रेम से भर जाते हो, भजन में एक हो जाते हो, ज्ञान में एक हो जाते हो, ज्ञान में उठ जाते हो, तो जो व्यक्ति उस पार चले गए हैं उनको भी बहुत अच्छा लगता है। अभी आप यहाँ बैठ कर ध्यान कर रहे हो, किए हो, सबका असर सिर्फ़ आप तक नहीं है, उन तक भी पहुँचता है जो उस पार चले गए।


प्रश्न: हम हमारी सहनशीलता को कैसे बड़ा सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर: फ़िर वही बात! सहनशीलता मुझमें नहीं है जब मान के चलते हो तो वैसे हो जाएगा। हमारी दादी माँ कहा करती थी कभी कोई चीज़ नाकारात्मक नहीं बोलना। क्यों। कहती थी कुछ देवता घूमते रहते हैं उनका नाम है अस्तु देवता। वो बोलेंगे तुम कुछ कहोगे - तथास्तु। मानलो घर पर मिठाई नहीं है तो कभी नहीं कहती थी मिठाई नहीं है। कहती थी बाज़ार मिठाई से भरा हुआ है चलो बाज़ार चलते हैं। शब्दों में भी वो यह नहीं कहती थी कि मिठाई खत्म हो गई है। कहदोगे तो पता नहीं कहाँ अस्तु देवता घूम रहे होंगे तो तथास्तु कह देंगे। फ़िर खत्म ही रहेगा सब। इस तरह काजु चाहिए हमे, काजु भरा हुआ है बाज़ार चलते हैं!
उस पीढ़ि के लोगों में कितना विश्वास था मन में। और यह बात सच भी है। वैज्ञानिक तौर से भी सही है। हम जिसको नहीं समझ के मानते है वैसा होता है। आभाव को मानोगे तो अभाव ही रहता है। कई लोग बोलते हैं पैसा नहीं है हमारे पास तो अस्तु देवता बोल देंगे तथास्तु ऐसे हो जाए। तो जिन्दगी भर वही नहीं नहीं गीत गाते चले जाते हैं। तो कभी भी तृप्ति नहीं होती। एक समृद्धि का अनुभव करो, महसूस करो। मेरे पास सब कुछ है। फ़िर तुम्हारे पास होने लगता है। मेरे पास नहीं है, मुझ में प्यार नहीं है - फ़िर ऐसा ही लगने लगता है। मैं बहुत प्यारा हूँ। समझ कर चलो तो प्यार ही प्यार मन में झलकता है।


एक बड़े कंजूस व्यक्ति हमारे पास आए तो मैं बोलता हूँ तुम कितने उदार हो। तो एक बार हमारे पास आकर बोलते, "गुरुजी आप हमेशा बोलते हैं मैं उदार हूँ मैं उदार हूँ। मैं कहाँ उदार हूँ? मैं तो कितना कंजूस हूँ। मैं अपने पत्नि तक दस रूपय नहीं खर्चा करने देता हूँ। आप कैसे मुझे उदार बोलते हो? बच्चे जाते हैं काँगेस exibition में तो एक से दूसरी कैन्डी खरीद के देने में मुझे हिचकिचाहट होती है। मैं एक ही मिठाई खरीद के देता हूँ, और आप मुखे उदार बोलते हैं। ताकिं तुम उदर बन जाओ।
तो जिस भावना को अपने में उभारना चाहते हैं, उसको मानके चलना पड़ता है वो है हमारे में। उसको नहीं है मानकर चलोगे तो नहीं है हो जाएगा।
यह याद रखो, "काजु भरा है, बाज़ार चलते हैं!"


प्रश्न: गुरुजी, शादी में इतने प्यार के बावज़ूद भी झगड़े क्यों होते हैं?
श्री श्री रवि शंकर: क्या कहें? हमे तो पता ही नहीं है! ना पता लगाने की चेष्टा करी मैने! हो सकता है कुछ जोड़ स्वर्ग में बनकर स्वर्ग से थक गएं हों, फ़िर नर्क में उतर आए हों, यां स्पेशल category में बने होंगे नर्क में।
देखो, हर संबंध में कभी न कभी, कुछ न कुछ, कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ भी होता है और ठीक भी होता है। तो हर परिस्तिथि में हम अपने मन को समझाएं, और थामे रहो तो सब चीज़े ठीक हो जाती हैं। देर सवेर सब ठीक हो जाता है।
विलायत में अभी किसी देश में एक ब्यासी साल का पुरुष, ८० साल की अपनी पत्नि पर कोर्ट में केस कर दिया। डाइवोर्स ले लिया और केस कर दिया ८० साल के बाद। ४० साल साथ रहे, ४०-४५ साल दोनो। आखिरी में केस क्यों कर दिया? जिस कुर्सी पर वो बैठता था रोज़, पत्नि वो कुर्सि नहीं देना चाहती थी! नहीं छोड़ना चाहती थी। बाकी सब डिविज़न हो गया, कुर्सी की बात पर कोर्ट में इतना बड़ा केस हो गया! आदमी का दिमाग बहुत विचित्र है! जिस से दोस्ती करता है उसी से लड़ता है। और जिससे लड़ता है फ़िर उसी से दोस्ती की प्यास में पड़ा रहता है। तो यह जीवन बहुत ज़टिल है, और ज़टिल जीवन के बीच में मुस्कुराते मुस्कुराते गुज़र जाना बुद्धिमानी है। सिर्फ़ व्यक्ति को ही देखते रहोगे तो अज्ञान में रग जाओगे। व्यक्ति नहीं है व्यव्हार। व्यक्ति के पीछे जो चेतना है, सत्ता है, उसको देखो तो वो एक ही चेतना है - इस व्यक्ति से ऐसा कराया, उस व्यक्ति से वैसा कराया, उस व्यक्ति से वैसा कराया। इस तरह से व्यक्ति से पीछे जो चेतना जिस के कारण सब है और सब होता है, उसको पहचानना ज्ञान है। समझ में आया यह।
हम सब को देखो तो हर व्यक्ति भीतर क्या है - Hollow and Empty. और जैसा विचार आया कुछ वैसा उन्होने व्यवहार कर दिया। उसका क्या कसूर है।


प्रश्न: क्या गुरु और ऋषियों से कुछ माँगना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर: यह तो माँग ही लिया। कुछ उत्तर तो माँग ही लिया। जब माँग उठता है तो उठने के बाद ही तुम सोचते हो माँगना चाहिए नहीं माँगना चाहिए। उठ गया माँग। प्यास लग गया तो पानी की माँग उठ ही गई। पानी की माँग को ही प्यास कहते हैं। भूख को ही कहते हैं भोजन की माँग। माँग स्वभाविक है। माँग जब उठ जाता है तो उसके बाद तुमको पता भी चलता है उठ गया माँग! क्या? नहीं? अभी करना चाहिए नहीं करना चाहिए - बात ही नहीं। कर लिया। करने के बाद समझ में आया मैने माँगा है। वो सच्चा माँग भीतर से उठी है, एकदम गहराई से, आवश्यकता है। ऐसी आव्श्यक माँग पूरी होनी ही है। पूरी हो जाती है।


प्रश्न: बेसिक कोर्स में कहते हैं, "जो जैसा है उसे वैसा स्वीकार कर लें"। तो क्या इसका मतलब यह है कि भ्रष्ट नेताओं को भी स्वीकार कर लें जो अपने देश को बेचने पर तुले हैं?
श्री श्री रवि शंकर: तीन तरह की दक्षता समझो - शारीरिक, वाचिक और मानसिक - कृत्य में, वाणी में और भावना में। जैसे कुछ लोग करते हैं - बोलते बहुत अच्छा हैं, मीठा मीठा बोलते हैं पर काम की बात हो तो काम तो करेंगे ही नहीं। यह क्या? वाणी में तो ठीक रहे मगर कृत्य में ठीक नहीं रहे। कई लोगों का मन बहुत साफ़ है, वह भावनाओं में ठीक रहते हैं पर जैसे मुँह खोलेंगे तो आग बरसता है। समाज में यह बहुत बड़ी समस्या है। व्यक्ति बहुत अच्छे हैं, काम भी बहुत अच्छा करते हैं पर जैसे मुँह खोलेंगे तो लोगों को लगता है कान बंद कर के भाग जाएं। और कुछ लोग काम ठीक ठीक कर देते हैं पर बोलते ठीक नहीं। और कुछ लोग काम भी ठीक करते हैं बोलते भी ठीक हैं पर मन खट्टा रहता है, भावनाएं ठीक नहीं रहती। विरले ही लोग मिलेंगे जिनमें भाव भी शुद्ध है, वाणी भी शुद्ध है और कृत भी समय पर है। कई बार आप टेलर को कपड़े देते हो वो अच्छी मीठी मीठी बातें करेगें, दीवाली से एक दिन पहले आ जाओ दे देंगें! उनके मन में कोई गलत भावना नहीं होगी, उनके मन में तुम्हे झूठ बोलने की यां थोका देने की कोई भावना नहीं होगी - भाव भी ठीक है, वाणी भी ठीक है मगर कृत में गड़बड़। कई लोग अपने कृत में गड़बड़ करते हैं। बोलते अच्छा हैं, भाव भी ठीक होता है पर तुम लोग क्या समझते हो उसने जानबूझ कर ऐसा किया - तब तुम्हारा भाव गड़बड़ हो गया। उसका कृत गड़बड़ हुआ और तुम्हारा भाव गड़बड़ हुआ - तुम दोनो एक ही नांव में हो। तीनो अंतर्कन की शुद्धि चाहिए - वाणी की शुद्धि चाहिए, कृत की शुद्धि चाहिए और भावना की शुद्धि चाहिए - तभी सिद्ध होगें - Perfection.

चेतना में ज्ञान संरचित होता हैं !!!

ज्ञान के मोती


चेतना में ज्ञान संरचित होता हैं !!!

Posted: 11 May 2011 09:05 AM PDT
४,मई, २०११, बैंगलुरू आश्रम


प्रश्न: लोगो को मुझ से बहुत अपेक्षाये है, इसके लिए मैं क्या करू ?
श्री श्री रवि शंकर: यह उनकी समस्या है, आप अपनी योग्यता का १०० प्रतिशत प्रयास करे, और उसके लिए जो भी कर सकते है, उसे करे , और फिर भी यदि कोई और अपेक्षा करे तो यह उनकी समस्या है|
( श्री श्री ने श्रोताओ से भगवत गीता को सीखने में उनके प्रगति के बारे में प्रश्न किया | फिर श्रोताओ ने सातवें अध्याय के श्लोको का मंत्रोचारण किया, और श्री श्री ने उनके अर्थ पर प्रकाश डाला )
जब कोई योगी निद्रा में होते है, तो हर कोई जागता है| और जब हर कोई निद्रा में होते है, तो योगी जागते है | यह बात भगवान श्री कृष्ण भगवत गीता में कही है | क्या आपने इसे पहेले सुना है ? इसका क्या अर्थ है? इसका सरल अर्थ है, जब हर कोई उत्तेजित और चिंतित होता है,कि क्या होने वाला है तो योगी आरामपूर्वक विश्राम करते है | योगी जानते हैं कि सबकुछ उत्तम और जन सामान्य के लिए अच्छा ही होगा | योगी में यह विश्वास होता है | और जब सब कोई निद्रा में होते है और योगी जागते है का अर्थ है, योगी जीवन के सत्य के बारे में सचेत होते हैं, जब हर कोई निद्रा में होते हैं| यह कोई विचार नहीं करता कि उसका अंत क्या होगा, वह कहां पर जायेगा, जीवन क्या है, और मैं कौन हूं | जब इनमे से कोई भी प्रश्न लोगो के मन में उत्पन्न नहीं होते है तो वे निद्रा में है|
लोग सिनेमा देखने मे और विडियो गेम खेलने मे लुप्त हो गए हैं | ऐसे भी कई लोग हैं जो वृद्ध अवस्था मे विडियो गेम खेलने की शुरुवात करते हैं | व्यक्ति यह नहीं देख रहा हैं कि मृत्यु निकट आ रही हैं | वह यह सोचता ही नहीं हैं कि कैसे उसने अपने मन मे इतनी लालसा और घृणा को एकग्रित करके रखा हैं | और वह अपने मन को साफ और स्वच्छ करने के लिए कुछ नहीं करता | यदि आप इन मन के संस्कारो की सफाई नहीं करते हैं तो फिर आप को वही मन और संस्कार मृत्यु के बाद भी ढोने होंगे |
जब आप की मृत्यु होती हैं तो आपका मन खुश और आनंदमयी होना चाहिए | जो कोई भी ऐसी निद्रा में होता है तो वह अपने भीतर मन में कचरा एकाग्रित कर रहा होता है | परन्तु योगी सतर्क और सचेत होते हैं और वे अपने मन में किसी का भी बाहरी कचरा नहीं लेते | उस आदमी ने मुझे ऐसा क्यों कहां ? उस महिला ने मुझे ऐसा क्यों कहां ?
आपका मन पूरी तरह से दूसरों की त्रुटियों के बारे में सोचने मे नष्ट हो जाता है | दूसरों की त्रुटियों को उनके पास ही रहने दीजिये | उनसे उन्हें ही निपटने दीजिये | आप अपने मन और त्रुटियों से निपटे, वही काफी है | क्या आप मे दूसरों की गलतियों को स्वीकार करने का धैर्य है? आपको दूसरों की गलतियों को स्वीकार करना चाहिए और फिर आपसे जितना हो सके उन गलतियों को सुधारे | यदि आप अत्यंत दयालु है, तो ही उसे सुधारे| यद्यपि उसे प्रकृति पर छोड़ दीजिये, उन्हें अपना मार्ग मिल ही जायेगा| परन्तु यदि आप करुणामय है, तो उसे करुणा के साथ सुधारे, फिर वह आपके मन या मस्तिष्क पर हावी नहीं होगा |
आप कब क्रोधित या उदास होते हैं ? जब आपने किसी के कृत्य मे त्रुटियों को देखा | क्या आप इस तरह से किसी की त्रुटियों को ठीक कर सकते है ? उनके कृत्य मे त्रुटि थी परन्तु अब उसके बारे मे सोच कर आपका मन त्रुटिपूर्ण बन गया है | कम से कम अपने मन को तो संभाल कर रखे | यदि कोई गलत मार्ग पर चला गया है, तो क्यों आपका मन भी गलत मार्ग पर भटक जाना चाहिये ! ठीक है ? इसलिए वे कहते है कि और जब हर कोई निद्रा में होता है, तो योगी जागते है | और जब आप ऐसी निद्रा में होते है तो आप अपने मन के भीतर दूसरों का कचरा एकाग्रित कर लेते है | परन्तु योगी ऐसा नहीं होने देते | वे अपने मन की ताज़गी बनाये रखते है |


प्रश्न: परिवर्तन सतत होता रहता हैं | क्या भगवत गीता का ज्ञान भी इस सदी के लिए बदल जाएगा ? क्या कोई नवीनतम ज्ञान का उदय होगा ?
श्री श्री रवि शंकर: हां जैसे आपका मन खिल जाता हैं, वैसे ही ज्ञान के नवीन स्वरुप आप में खिल उठते हैं | चेतना में ज्ञान संरचित होता हैं |
( श्री श्री ने सातवें अध्याय के अर्थ को पुनः समझाना प्रारंभ किया )
आपका मन कहां आकर्षित होता हैं ? वह सुंदरता, प्रकाश और शक्ति के ओर आकर्षित होता हैं | भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, कि जिसमे भी तुम्हारा मन आकर्षित हो, उसमे मुझे देखो | यदि कुछ सुंदर हैं तो वह इसलिए सुन्दर हैं क्योंकि उसमे जीवन हैं, और वही चेतना हैं | इसलिए मन स्तोत्र मे चला जाता हैं| भगवान श्री कृष्ण कहते हैं:सूर्य का प्रकाश मैं हूं| मैं जल की तरलता हूं | पृथ्वी की सुगंध मैं हूं | अग्नि मे अग्नि मैं ही हूं |
हम सूर्य समान पदार्थ से बने होते हैं | यदि सूर्य न हो तो पृथ्वी नहीं होगी और यदि पृथ्वी नहीं होगी तो आप नहीं होंगे |
यदि आप आज क्वांटम भौतिक विज्ञानिक से बात करेंगे तो वह भी यही बात कहेंगे कि सबकुछ एक ही तरंग से बना हैं |
यही बात भगवान श्री कृष्ण ने कही : मैं हर किसी मे जीवन हूं |
अपने मन के भीतरी गहन मे जाकर उस प्राण शक्ति को देखे जो हम सब हैं |
मैं ही जीवन मे हूं |
जीवन भगवान हैं |भगवान कुछ जीवन के बहार नहीं हैं | जीवन दिव्यता हैं |
शरीर के भीतर जीवन दिव्य हैं| फिर मन किसकी कामना करता हैं? यह सुख, वह सुख | इस क्षण मे जीवन पर ध्यान दे | सिर्फ मेरा ही जीवन भगवान नहीं हैं | हर जगह जीवन मे वही आत्मा हैं |
भगवत गीता का सातवां अध्याय अत्यंत सुन्दर हैं |
भगवत गीता मे, प्रत्येक अध्याय एक एक कर के प्रकट होते हैं |
विषद योग के अध्याय मे अर्जुन अत्यंत बैचैन और कांपते हुए दिख रहे हैं |
सांख्य योग मे भगवान कृष्ण अर्जुन को कहते हैं, जाग जाओ – तुम्हारी आत्मा को कुछ नहीं हुआ हैं | खुशी और दुःख आते जाते रहते हैं |
कर्म योग मे भगवान कृष्ण अर्जुन को कर्म करने के लिए कहते हैं |वे कहते हैं कर्म के बिना तुम कुछ भी नहीं कर सकते | यहां तक यदि तुम्हे खड़ा होना या बैठना हैं, तो भी कर्म आवश्यक हैं| इसलिए कुछ करो |
कर्म योग के बाद ज्ञान योग हैं, जिसमे बताया गया हैं कि आप जो भी कार्य कर रहे हैं उसे समझ लिजिये |
ज्ञान और कर्म योग के उपरान्त ध्यान योग हैं, जिसमे भगवान कृष्ण कहते हैं, कृत्य करने के पहेले ध्यान करे और कृत्य समाप्त होने के उपरान्त भी ध्यान करे |
इस प्रणाली से प्रत्येक अध्याय एक एक कर के प्रकट होते हैं |

यह हम पर निर्भर करता हैं कि कैसे हम दूसरों की प्रतिभा में से उनका सर्वश्रेष्ठ निखार सके

यह हम पर निर्भर करता हैं कि कैसे हम दूसरों की प्रतिभा में से उनका सर्वश्रेष्ठ निखार सके

Posted: 14 May 2011 12:21 AM PDT
बैंगलुरू, ७ मई २०११

प्रश्न: गुरूजी जब आप कहते हैं कि किसी व्यक्ति को आत्मा का अहसास हो गया हैं तो, कृपया कर के यह बताए कि उन्हें क्या अनुभव होता हैं |
श्री श्री रवि शंकर : इस बात का अनुभव कि मैं सिर्फ शरीर नहीं हूं,, परन्तु मैं इस शरीर से कहीं अधिक विशाल हूं | इस जन्म के पहले भी मैं यही पर था और मेरी मृत्यु के उपरांत भी मैं यही पर रहूंगा | यदि किसी व्यक्ति को इसका एहसास हो जाए तो वह पर्याप्त हैं | परन्तु यह सिर्फ वे कह सकते हैं, दुसरे उनके लिए कोई राय नहीं दे सकते |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी कृपया कर के बताये कि हम मानवो के रूप में आध्यात्मिक बनना चाहते हैं या हम आध्यात्मिक होते हुए मानव रूप मे स्वांग कर रहे हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: दोनों -आध्यात्मिक होते हुए मानव रूप मे स्वांग करना जो फिर से आध्यात्मिक कोण में आना चाहता हैं,अपने स्वयं मे वापसी |
क्या आप को राधा शब्द का अर्थ पता है ?राधा का अर्थ हैं स्रोत मे वापसी | धारा का अर्थ हैं प्रवाह,स्रोत से प्रवाह को धारा कहते हैं | और जब धारा को दुसरे छोर से पढ़ते हैं, तो वह राधा हैं| जब जल का प्रवाह होता है तो उसे धारा कहते है और जब जल की अपने स्रोत के पास वापसी हो जाती हैं तो वह राधा है |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी मेरा पुत्र दो वर्ष का हैं, वह अन्य लोगो के समक्ष असुरक्षित महसूस करता हैं | क्या बच्चे इतनी उम्र में ऐसा महसूस करते है? इससे कैसे निपटा जाए ?
श्री श्री रवि शंकर: बालक में असुरक्षा की भावना नहीं हो सकती | दो वर्ष का बालक इतना असुरक्षित हो ही नहीं सकता, यह आपका उसके लिए रक्षा का भाव हो सकता है |कभी कभी जब बालक कुछ महसूस करता हैं और कुछ कहता हैं तो आप अपने आपको काफी सुरक्षित कर लेते हैं | खास तौर पर दादा दादी का बच्चो पर बहुत असर होता हैं | दादाजी कहेंगे कि मेरे ६ महीने के पोते ने मेरी तरफ देख कर कहा कि “ दादाजी आज आप सैर के लिए न जाए और मेरे साथ ही रहे,” यह सब उसने अपने आँखों से कहां | शिशु को बोलना भी नहीं आता परन्तु दादाजी को लगता हैं कि वह सब कुछ कह सकता हैं | यह काफी हद तक सिर्फ आपकी कल्पना ही होती हैं |
यदि आपको लगता हैं कि आपके बच्चे में थोड़ी ईर्ष्या हैं, तो वह भाई बहिन के प्रति हो सकती हैं, यदि आपको ऐसा लगता हैं तो आप उनकी पीठ को थपथपाए और उनका और अधिक ध्यान रखे |

प्रश्न: गुरूजी मैने दो वर्ष पूर्व यस + कोर्स किया था और हाल मे मैने अपने पालको को बताया कि भीतर से मैं खाली और खोखला महसूस करता हूं और कुछ भी नहीं होने का अनुभव भी बताया | वे कहते हैं कि अब मैं किसी काम का नहीं रहा, मुझे उन्हें क्या कहना चाहिए ?
श्री श्री रवि शंकर: आप उन्हें कुछ नहीं कहे | सिर्फ उन्हें यह दिखाए कि आप बहुत कुछ कर सकते हैं | उनके दिल को अपने शब्द से नहीं बल्कि अपने कृत्य से जीते |

प्रश्न: गुरूजी तड़प कैसे दिव्य गुण है? तड़प में मुझे बहुत दर्द होता है |
श्री श्री रवि शंकर: तड़प ही इश्वर है !

प्रश्न: गुरूजी मुझे लगता हैं कि मैं स्वार्थी और चालाक लोगो से घिरा हुआ हूं , जो मुझसे सिर्फ कार्य करवा लेना चाहते हैं | इस दुनिया में मैं कैसे अपनी सरलता और सादगी को कैसे बरक़रार रख सकता हूं ?
श्री श्री रवि शंकर: सबसे पहले हर किसी व्यक्ति को चालाक और भ्रष्ट मत समझों | अन्यथा आप उन्हें उसी दृष्टि से देखेंगे ? उस तरह लोगो अंकित न करे, यहां तक यदि वैसे ही हो तो भी | आपका संकल्प और आपके विचार उन्हें और बुरा बना सकते है | लेकिन यदि आपका संकल्प अच्छा हैं तो जो लोग बुरे प्रतीत होते हैं, तो उनमे से भी कुछ अच्छा ही निखर के आयेगा | आज हमारे एक प्रशिक्षक ने श्रीनगर से फोन करके बताया कि उन्होंने ५० युवाओं का युवा नेतृत्व प्रशिक्षण शिविर का समापन किया | वे बता रहे थे कि युवाओं में बहुत अधिक बदलाव आया |समापन समारोह में जिले के कलेक्टर आये और उन्होंने कहां, “ कि यह तो चमत्कार है, यहां के युवाओं को क्या हो गया हैं ? इनमे इतना बदलाव कैसे आया”| युवा कह रहे थे कि आपने पहेले इस प्रकार का आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान नहीं किया और आप हमें कहते हैं कि हम यह और वह करते हैं, परन्तु हमें भीतर की शान्ति के बारे मे किसी ने शिक्षा नहीं दी |
इसलिए यह हम पर निर्भर करता हैं कि कैसे हम दूसरों की प्रतिभा में से उनका सर्वश्रेष्ठ निखार सके, अक्सर हम दूसरों की निंदा करते हैं और कहते हैं, “ तुम बिलकुल निकंमे हो”, परन्तु उस में कुछ अच्छे गुण भी होते हैं,इसलिए आपको उसमे आशा को जगाना होगा |अपने आस पास के लोगो में, दिव्य गुणों को निखारे और इसे अपना लक्ष्य बना लीजिए| मैं आपको अनुभवहीन बनने के लिए नहीं कह रहा हूं, इसलिए ध्यान रखकर, अच्छे गुणों को निखारे |

प्रश्न: ऐसा कहा जाता हैं कि जीवन चेतना की क्रीड़ा और प्रदर्शन हैं | चेतना को क्रीड़ा करने की क्या आवश्यकता हैं?
श्री श्री रवि शंकर: प्रकृति क्रीडा हैं | जब आप खुश होते हैं तो आप क्या करते हैं, आप खेलते हैं | जब आप खेलते हैं तो आप की कोई आवश्यकता नहीं होती हैं|इस लिए आप खेलते हैं | जब आपकी अनेक जरूरते होती हैं, तो आप सिर्फ कार्य करते रहते हैं | जब आप के पास खाली समय होता हैं तभी आप खेल सकते हैं| जब आपकी सभी जरूरते पूरी होती हैं तो खेल आपके जीवन का हिस्सा बन जाता हैं | चेतना सम्पूर्णता हैं और क्रीड़ा करना उसका स्वभाव हैं | क्रीड़ा करना दिव्यता का स्वभाव होता हैं |

प्रश्न: गुरूजी पर्यावरण आज सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा हैं, हम उसका ध्यान रखने के लिए क्या कर सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर: पर्यावरण का ध्यान रखना आर्ट ऑफ लिविंग का बड़ा लक्ष्य हैं |वृक्षारोपण करे, कम से कम प्लास्टिक का उपयोग करे, यदि संभव हो सके तो प्लास्टिक का उपयोग ही न करे और विकल्प में कपड़े का थैलों का उपयोग करे | यह सब बहुत ही उचित बातें हैं जिनकी जानकारी होना आवश्यक हैं | आपने इसके बारे में बेसिक कोर्से में सुना था और आप इसे अब वैसे भी कर ही रहे हैं |
पर्यावरण को स्वच्छ रखे, यदि आप लोगों को सड़को पर गन्दगी करते हुए देखे तो आप उन्हें समझाए | यदि आप के पास खाली समय हो और आप को कहीं गन्दगी देखे तो आप वहां खड़े होकर कुछ और लोगो को बुलाये उर उनसे कहे “चलो इस जगह को साफ कर देते हैं”, इस तरह से कुछ करते रहे |

ज्ञान के मोती

ज्ञान के मोती


जब आप दूसरों की सहायता या उनकी देखरेख विवेक और ज्ञान के साथ करते है, तो आप उनके लिए गुरु की भूमिका निभा रहे हैं

Posted: 30 Apr 2011 09:50 PM PDT
मॉन्ट्रियल केंद्र कनाडा, २१ अप्रैल २०११.
( पिछले लेख का शेष भाग)

प्रश्न: आपको कैसे मालूम हुआ कि आप गुरु है?क्या आपके भी कोई गुरु थे? कभी कभी मैं विचार करता हूँ कि क्या मैं अपना स्वयं का गुरु हूँ | इस संदर्भ मे आप क्या कहेंगे?
श्री श्री रवि शंकर: आप अपने आप के लिए सर्जन (चिकित्सक) नहीं हो सकते | आप सर्जन (चिकित्सक)हो सकते है परन्तु आप अपने आप के लिए सर्जन (चिकित्सक) नहीं हो सकते, ठीक है ? आपकी माँ आपकी पहली गुरु होती है|आपकी माँ आपको शिक्षा देती है| गुरु वह है जिसका आपके प्रति रुख और दृष्टिकोण बिना किसी शर्त के होता है| आपको गुरु की भूमिका बिना किसी शर्त के निभानी होती है |“जब आप दूसरों की सहायता या उनकी देखरेख विवेक और ज्ञान के साथ करते है, तो आप उनके लिए गुरु की भूमिका निभा रहे हैं”|
जब आप किसी की सहायता इस मनोभाव के साथ करते है कि “ मुझे कुछ नहीं चाहिये, मुझे सिर्फ आपकी प्रगति चाहिये” तो फिर आप उनके लिये गुरु है | और आपको उनसे आपको गुरु मानने के लिये भी मांग नहीं करनी होगी | और एक आदर्श गुरु कोई भी मांग नहीं करता,यहां तक किसी व्यक्ति से कृतज्ञता की भी उम्मीद नहीं रखता |

प्रश्न : मैने सुना है कि आर्ट ऑफ लिविंग भारत मे भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ रहा है?उत्तर अमरीका मे हम समाज से भ्रष्टाचार से लड़ने के लिये क्या कर सकता है ?
श्री श्री रवि शंकर: इस स्थिति से निपटने के लिये आपको विचार करना चाहिये | भ्रष्टाचार तीन स्तर पर होता है| पहला लोगो के मध्य मे | लोग भ्रष्टाचार को अक्सर जीवन जीने की शैली के रूप मे स्वीकार कर लेते है| दूसरा और तीसरा स्तर है, नौकरशाही और राजनीतिज्ञ | जीवन के हर वर्ग मे अच्छे लोग होते है | और ऐसे लोग भी है जो इतने अच्छे नहीं है| आपको उन्हें आर्ट ऑफ लिविंग कोर्से मे लाकर श्वास तकनीके सिखाना चाहिये | फिर वे भी अच्छे हो जायेंगे |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी, क्या आप वर्ष २०१२ मे क्या होने वाला है, उसे और विस्तृत से बतायेंगे ?
श्री श्री रवि शंकर: हमेशा की तरह व्यापार | सिर्फ लोग और अधिक आध्यात्मिक हो जायेंगे |

प्रश्न: हम अपनी आध्यात्मिक प्रगति मे शीघ्रता लाने के लिये इस समय का उपयोग कैसे कर सकते है?
श्री श्री रवि शंकर: बिलकुल वैसे ही जैसे आप अभी कर रहे है|

प्रश्न: विश्व मे कई युद्ध और क्षेत्रीय हिंसा हो रही है | विश्व मे हिंसा कम करने के लिये हम क्या कर सकते है?
श्री श्री रवि शंकर : तनाव और क्रोध हिंसा होने का मूल कारण है| और मेरे मत मे ध्यान, प्राणायाम और सुदर्शन क्रिया तनाव और क्रोध को कम करने का उपाय है | इसका यही उपाय है |
आप कुछ आयुर्वेद सहायता ले सकते है, अपने आहार को परिवर्तित कर सकते है, आप यह कर सकते है, परन्तु यह सब इतना महत्वपूर्ण नहीं है |

प्रश्न:गुरूजी कोर्से मे गायन इतना महत्वपूर्ण क्यों है? गायन का आध्यात्मिक महत्त्व क्या है?
श्री श्री रवि शंकर: ज्ञान, तर्क, और संगीत आपके मस्तिष्क के दो अलग भाग मे उत्पन्न होते है इसलिए दोनों आवश्यक है| इससे तंत्र मे संतुलन आता है | संगीत आवश्यक है |

Friday 7 January 2011

PROMISE BY GURUDEV

PROMISE
If I had to promise you something, what would it be?

I can’t promise that you would always be comfortable…
Because comfort brings boredom and discomfort.

I can’t promise that all your desires will be fulfilled…
Because desires whether fulfilled or unfulfilled bring frustration.

I can’t promise that there will always be good times…
Because it is the tough times that make us appreciate joy.

I can’t promise that we will be rich or famous or powerful…
Because they can all be pathways to misery.

I can’t promise that we will always be together…
Because it is separation that makes togetherness so wonderful.

Yet if you are willing to walk with me,
If you are willing to value love over everything else ~

I promise that this will be the most rich and fulfilling life possible.
I promise your life will be an eternal celebration,
I promise you I will cherish you more than a king cherishes his crown,
And I shall love you more than a mother loves her newborn.

If you are willing to walk into my arms,
If you are willing to live in my heart,
You will find the one you have waited forever….
You will meet yourself in my arms…
I promise.