Wednesday 30 June 2010

GYAN KEE BATE

प्रश्न : मैं आप के साथ कुछ समय बिताना चाहता हूँ, बैठ कर आप से बातें करना चाहता हूँ। आपके साथ यात्रा करना चाहता हूँ। इसके लिये मुझे क्या करना होगा?

श्री श्री रवि शंकर : जो इच्छाएं तुम पूरी कर सकते हो, वो पूरी कर लो, और जो इच्छाएं समर्पित कर सकते हो, उन्हें समर्पित कर दो। किसी भी इच्छा की पूर्ति में समय और प्रयास लगता है। जब तुम अपनी इच्छाओं को समर्पित कर देते हो, वो अपने आप ही पूरी हो जाती हैं। कुछ इच्छाएं बहुत लंबे समय तक इच्छा करने पर पूरी होती हैं। और कुछ इच्छाएं तब भी पूरी नहीं होती हैं। कई बार तुम पाते हो कि किसी इच्छा का पूरा ना होना तुम्हारे हित में था। इस विश्वास के साथ चलो कि ईश्वर जानता है तुम्हारे लिए क्या उत्त्म है। ना तो इच्छाओं की आलोचना करो, और ना ही उनके साथ बह जाओ। ठीक है? ये बीच का रास्ता है। जैसे ही तुम सजग होते जाते हो, बाकी सब अपने आप ही शांतिपूर्ण हो जाता है।

प्रश्न : लोगों को आप पर बहुत विश्वास है। अगर आप कहें कि आप गुरु नहीं हैं तो उनके विश्वास का क्या होगा? मैं यह नहीं कह रहा कि ऐसा है पर मैं एक स्थिति दर्शाने की कोशिश कर रहा हूँ जो कि मेरी जीवन में घट चुकी है। अगर कोई कहे कि मैंने जिसपर विश्वास किया वो गलत है, तो मेरी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिये?

श्री श्री रवि शंकर : तुम ने मन में एक कल्पना बनाई है और एक जो अस्तित्व से तुम्हारा मन कहता है। विश्वास वही है जो संशय से हिलता नहीं है। संशय आसमान में छाये बादलों की तरह आ कर चला जाता है। कितने भी बादल हों पर आसमान को अधिक देर के लिए ढक नहीं सकते। १०० परिक्षा भी हो पर दिल कहीं तो कहता है क्या सत्य है।
अगर तुम्हारे पैर में दर्द हो और मैं भी तुम से कहूं कि तुम्हारे पैर में दर्द नहीं है, तो क्या तुम मान लोगे? जीवन में कुछ ऐसे अनुभव होते हैं चाहे पूरी दुनिया कहदे गलत है पर मन नहीं मानता।
एक प्रकार से, संशय करना अच्छा है। एक तरह से पकने के लिए प्रभु की कृपा हो गया। संशय की अग्नि से तुम्हें मज़बूत बनने का मौका मिलता है।

प्रश्न : गायत्री मंत्र में कहा है, ‘धियो यो ना प्रचोदयात:’ इसका क्या अर्थ है?

श्री श्री रवि शंकर : बुद्धि में दिव्यता का प्रवाह हो। बुद्धि में केवल अच्छे विचार ही आएं।

प्रश्न : योगी होने का क्या अर्थ है?

श्री श्री रवि शंकर : योगी होने का अर्थ है फिर एक बच्चे की तरह हो जाना। अष्टावक्र भी यही कह रहे हैं – कोई तृष्णा, कोई द्वेष, कोई राग आत्मज्ञान को ढक नहीं सकता।

प्रश्न : इच्छा और संकल्प में क्या अंतर है?

श्री श्री रवि शंकर : जीवन में हर कार्य संकल्प से होता है। तुम्हारे मन में ये संकल्प उठा कि तुम यहाँ आओ, तभी तुम यहाँ आ सके। अगर कोई चीज़ तुम्हारे मन में बार बार आती रहे, तो वह इच्छा है। ये मत सोचो कि मन में कोई इच्छा नहीं होनी चाहिए। बड़े बड़े काम करने के संकल्प करो। अधिक काम की ज़िम्मेदारी लो, पर कभी कभी उन्हें किनारे रख कर विश्राम भी करो।

प्रश्न :मन को एकाग्र कैसे कर सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर : तुम्हारा मन प्रेम से स्थिर हो जाता है। लालच और भय भी मन को स्थिर करते हैं। मैं प्रेम को बाकी दोनों उपायों से श्रेष्ठ मानता हूँ।

प्रश्न : आपकी उपस्थिति में इतनी शांति और आनंद मिलता है कि मैं हमेशा उसी आनंद में रहना चाहता हूं। मैं क्या करूं?

श्री श्री रवि शंकर : चाहे तुम विश्व में कहीं भी हो जब तुम इन अनुभवों को याद करते हो, तो तुम उस आनंद को अनुभव कर लेते हो। संसार के बाकी सभी छाप इस अनुभव से धुल जाती हैं।


जो ध्यान करते हैं, उनके सानिध्य में सब वैर छूट जाता है। आज सारी दुनिया आतंकवाद से पीड़ित है। ध्यान और साधना एक ही रास्ता है जिससे इस वैर को खत्म किया जा सकता है। आज श्याम यहाँ भी एक आतंकवादी आया था। उसने गोली तो चलाई पर किसी को ज़्यादा नुकसान नहीं हुआ। इस वातावरण में आकर उसके भीतर भी ज़्यादा नुकसान करने का भाव नहीं आया, वो एक गोली चला के भाग गया। उसका भी मन परिवर्तन हो गया। एक जन को पैर में थोड़ा सा लगा, नहीं तो कुछ भी हो सकता था।योगासूत्र में दिया गया ज्ञान,तत सानिध्य वैर त्याग:, ध्यान करने वालों के सानिध्य में किसी भी तरह का वैर छूट जाता है। जहाँ सब ध्यान करते हैं वहाँ ज़्यादा नुकसान हो ही नहीं सकता। जब हम २५ वर्ष पूरे होने पर उत्सव की तैयारी कर रहे थे, तब भी किसी ने कहा था, "यह हो ही नहीं सकता"। और हमने कहा था कि यह होकर ही रहेगा। हम सबको मिलकर इस ज्ञान को घर घर में फ़ैला देना है। घर घर में लोग ध्यान और योग करें तो देश भर में एक नई लहर हमको ले के आनी है। अभी एक तारीक को कई नक्सल लोग जो हिंसा में लगे हुए हैं, आ रहे हैं। वो बोले दर्शन करना चाहते हैं। हमा लोगों के साथ बैठकर वो सत्संग करेंगे, सब हिंसा छोड़ देंगे और फूल की तरह खिल जाएंगे।
देशभर में जितने लोग आतंक में लगे हुए हैं हम उन सबका स्वागत करते हैं। इस दैवी उर्जा में उनका भी मन बदल जाएगा। हरेक इंसान के अन्दर कुछ मान्यता है, दैवी गुण हैं, बस वो जगने की ज़रुरत है। कई लोग हमसे पूछते हैं कि इतने प्रचार और प्रसार की क्या ज़रुरत है। हमे क्या ज़रुरत है! हमे कुछ भी नहीं चाहिए पर जब तक यह ज्ञान लोगों तक नहीं पहुँचता, समाज शांति से नहीं रह सकता। इसलिए समाज में शांति और लोक कल्याण के लिए हम सबको काम करना पड़ेगा। अगर यहाँ एक एक आदमी ज्ञान, भक्ति और ध्यान फैलाने की ज़िम्मेदारी ले ले तो सोचो समाज कितना सुन्दर हो जाएगा। आप लोग भी प्रसन्नता से और निर्भय होकर आगे बड़ो, यह जानकर की आपको एक सुरक्षा का कवच मिल गया।

No comments:

Post a Comment