Saturday 31 July 2010

अंहकार


अंहकार का अर्थ है किसी एक पहचान में फंस जाना
प्रश्न: विकास के आधुनिक सिद्धांत (Modern theory of evolution) के बारे में आपके क्या विचार हैं? अगर यह सत्य है तो आत्माएं किस चरण में आती हैं? उससे पहले आतमाओं की क्या स्थिति होती है?
श्री श्री रवि शंकर: आधुनिक सिद्धांत विकसित हो रहे हैं उनके अनुसार सब कुछ कहीं से शुरु हुआ है मैं इसे linear understanding कहूँगा लेकिन एक spherical thinking भी है जिसकी यहाँ कमी है ओरिएंट में sperical thinking रही है पच्छम में linear understanding सबका कहीं से शुरु होना आवश्यक है एक एडम और ईव होने ही चाहिए जिनकी सब संतान हैं इसके आधार पर हर कोई एक दूसरे का भाई यां बहिन है तो फिर कोई किसी से शादी कैसे कर सकता है? इस तरह से शादी ही एक अपराध हुआ अगर ईश्वर एक एडम और ईव बना सकते हैं तो वह ऐसे और भी बना सकते थे और फिर ईश्वर ने ऐसा ज्ञान का फल क्यों बनाया जिसे खाने के लिए मना ही करना था? इस तरह से हमारी सोच बहुत संकुचित है और हमे व्यापक समझ अपनाने की आवश्यकता है हमे गोलाकार सोचने की आवश्यकता है शुरुआत में किसी एक जीव का नहीं बल्कि सबकी, सब वस्तुयों की एक साथ रचना हुइ अगर मैं तुमसे पूछ्ता हूँ कि टैनिस की गेंद का प्रारंभ बिन्दु कौन सा है तो तुम्हारा क्या उत्तर होगा? गेंद पर हर एक बिन्दू पहला है, और अंतिम भी प्राचीन लोगों की यही सोच रही तभी उन्होने कहा, "संसार आदि है और अनंत भी", अर्थात इसकी ना शुरुआत है और ना ही अंत आत्मा की ना कोई शुरुआत है और ना अंत जिस कारण ब्रह्मांड का अस्तित्व है , उस दिव्यता की ना शुरुआत है और ना ही अंत तीनो एक ही हैं यही अद्वैत का सिद्धांत है कि सब कुछ एक ही तत्व से बना है यही theory of relativity है String theory और आधुनिक वैज्ञानिकों का भी यही कहना है आइन्सटाईन भगवद गीता का अध्ययन करके हैरान रह गया था
ब्रह्मड में सबकुछ, चाहे जीवीत है यां अजीवित, एक ही चेतना से बना है प्राचीन ग्रंथ जैसे उपनिष्द और गुरु ग्रंथ साहिब में भी यही कहा गया है सिक्खों में अभिवादन करने का बहुत उत्तम तरीका है - सत्श्रियाकाल सत+ श्री + अकाल: सत - सत्य, श्री - धन, अकाल - जो समय से परे है तो जब आप यह कह कर अभिवादन करते है, आप एक दूसरे को अपना वासत्विक स्वरूप याद दिलाते हैं, वो स्वरूप जो समय से परे है और आपका असली धन है तुम अपने से बाहर क्या ढूंढते हो, सब कुछ अपने भीतर ही है
प्रश्न: यदि सब कुछ बदल रहा है, कुछ भी करने का क्या मतलब है?
श्री श्री रवि शंकर: यह सवाल पूछने में क्या मतलब है? उत्तर समझने में क्या मतलब है? हम कुछ करते हैं क्योंकि हम कुछ किए बिना नहीं रह सकते
यह भी बदलाव का हिस्सा है
'सब कुछ बदल रहा है' - यह समझने के लिए है
पर हमें कुछ करते रहना है, और यदि हम ऐसा करते हैं जो हमे शांति देता है और विकास की तरफ ले जाता है तो यह बहाव की दिशा में तैरने जैसा है
और कुछ ऐसा करना जो हमे विकास से दूर ले जाता है, बहाव की उल्टी दिशा में तैरने जैसा है
अहंकार क्या है? क्या अहंकार और प्रेम एकसाथ चल सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर: अहंकार अलगाव की भावना है, एक अलग पहचान की भावना
तीन प्रकार का अहंकार है:
१. 'मैं यह हूँ'
२. 'मैं यह नहीं हूँ'
३. 'मैं दूसरों से भिन्न हूँ'
अहंकार कैसे लुप्त हो सकता है?
जब अहंकार का विस्तार होता है 'मैं यह हूँ', 'मै यह भी हूँ', 'मैं वो भी हूँ' मुश्किल तब होती है जब हम किसी एक पहचान में फंस जाते है जैसे कि अगर तुम सेना अधिकारी हो और घर पर भी तुम वैसा ही व्यवहार करते हो तो मुश्किल होती है तुम सेना अधिकारी हो, यह तुम्हारी एक पहचान है पर तुम एक पिता, एक पति, एक पुत्र भी हो यह सभी तुम्हारी पहचान है जब तुम इन सब भूमिकाओं को एक जैसा महत्व देते हो तो अहंकार घुल जाता है एक संकुचित पहचान से दिव्यता के साथ पहचान करना ही अहंकार का विस्तार करना है तुम मैंपन से अहं ब्रह्म की ओर बढ़ते हो 'मैं कुछ हूँ' से 'मैं कुछ नहीं हूँ', और 'मैं कुछ नहीं हूँ' से 'मै सबकुछ हूँ' पर यह बहुत दार्शनिक लगता है तुम अपने दफ्तर में जाकर यह नहीं कह सकते कि तुम कुछ नहीं हो ना ही तुम अपने घर पर कह सकते हो कि तुम सबकुछ हो ऐसा करने से कुछ नहीं होगा मैं कहूँगा, अपने अहंकार से बाहर आने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है - सहजता
अहंकार से तुम असहज, अप्राकृतिक और अलग महसूस करते हो हर किसी से हर परिस्थिति में सहजता से व्यवहार करना, यह एक बच्चे की तरह सरल रहना है
अहंकार के बारे में एक अंतिम बात यह कहूँगा कि अगर तुम्हे लगता है कि तुममें अहंकार है तो इससे छेड़-छाड़ मत करो इसे अपनी जेब में रखो और चिन्ता मत करो
प्रश्न: मैं अपने शरीर को शुद्ध कैसे कर सकता हूँ?
श्री श्री रवि शंकर: प्राणायाम, सही भोजन, मन और शरीर को विश्राम देकर, और सही मार्गदर्शन में उपवास रखकर
प्रश्न: हम कौन से निर्णय दिल से लेते हैं और कौन से दिमाग से?
श्री श्री रवि शंकर: व्यापार दिमाग से और सेवा दिल से करो
अहंकार (Ego)
"समाज में शांति के लिए राजनीति में आध्यात्मिकता, व्यापारिक कंपनियों में सामाजिक दायित्व की भावना और धर्म में धर्मनिरपेक्षता होना आवश्यक है"
Ramsay Taum (Director of External Relations & Community Partnerships, University of Hawaii at Manoa and Chairman of the Board of Sustain Hawaii) ने एक हवाइ मंत्र के साथ श्याम की शुरुआत की। फ़िर उन्होने भारतीय और हवाइ सभ्यता की समानता के बारे में कहा। श्री श्री ने धन्यवाद देते हुए शुरुआत की।
श्री श्री रवि शंकर : एक ही बात को एक अलग नज़रिए से सुनकर बहुत अच्छा लगा। यह बहुत ही सुन्दर है कि किस तरह सभी सभ्यतायों में एक जैसी बात कही गई है। जिस तरह Ramsay Taum ने ज़िक्र किया, उसी तरह संस्कृत में भी पाँच तत्व हैं - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। फिर हैं मन, बुद्धि और अहंकार। और फ़िर आत्मा।
जब हम ने एक दूसरे को mahalo कह कर नमस्कार किया, तो वो अहंकार से परे एक कदम है। ’मा’ का अर्थ है - जिसे तुम जानते हो। बच्चे का पहला शब्द माँ होता है। एक बच्चा मैं की भावना से परे देखता है। यह बहुत ही सुन्दर है कि दुनिया में सभी सभ्यतायों का मूल एक जैसा ही है।
प्रश्न : हम अहंकार पर काबू कैसे कर सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : अहंकार को काबू करने का प्रयास भी मत करो। अगर तुम्हे लगता है कि तुममे अहंकार है तो इसे अपनी जेब में रखो। अहंकार को काबू करने में उससे भी बड़ा अहंकार हो जाता है। अहंकार अनदेखा किया जाना पसन्द नहीं करता। अहंकार का इलाज है - बच्चे की तरह सरलता में रहना। अगर फ़िर भी तुम्हे अहंकार परेशान करे तो उसे वहीं रहने दो।
प्रश्न : कुछ लोग लालची और क्रूर क्यों होते हैं? हम उन्हे बदल सकते हैं यां उन्हे वैसे ही स्वीकार कर लेना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर : कुछ लोग नहीं जानते वो भीतर से कितने सुन्दर है। हर अपराधी के भीतर हालात का शिकार एक व्यक्ति मदद की पुकार कर रहा है। कोई भी पैदाइश से हिंसक नहीं होता। सही शिक्षा के अभाव में इन्सान ऐसा बन जाता है।
प्रश्न : ध्यान का यह तरीका अन्य तरीकों से कैसे विशेष है?
श्री श्री रवि शंकर : यह तुम्हे साधारन बनाता है और यह केवल साधारन लोगो के लिए ही है। अगर तुम खुद को बहुत विशेष मानते हो तो ध्यान नहीं होगा। इसकी यही विशेषता है।
प्रश्न : हमें प्रेम के बारे में कुछ बताएं। अनुशासन का पालन कैसे करें?
श्री रवि शंकर : तुम अपने पर किसी चीज़ को प्रेम करने यां ना करने के लिए दबाव नहीं डाल सकते। सहजता से अपने स्वभाव में रहो।
तीन सूरतों में तुम अनुशासन का पालन कर सकते हो:
प्रेम, भय और लालच। जब तुम प्रेम में होते हो तो अनुशासन सहज ही हो जाता है। किसी चीज़ का भय यां कोई बड़ा लालच भी तुम्हे अनुशासन में रखता है।
प्रश्न : अपना भाग्य पूरा करने के लिए क्या चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर : विश्वास - यह विश्वास की तुम अपना भाग्य पा सकते हो।
प्रश्न : क्या विश्व के नेता दुनिया की मुश्किलों का हल कर सकते हैं? यां वो आर्थिक रूप से कुछ ही लोगो से प्रेरित हैं?
श्री श्री रवि शंकर : मुझे लगता है तुम्हारे प्रश्न में उत्तर भी है। मुझे लगता है ऐसे बहुत से विश्व के नेता हैं जो समाज के लिए कुछ अच्छा करना चाहते हैं पर उनके हाथ बन्धे हैं। बहुत बार वो सामाजिक व्यवस्था के कारण कुछ कर नहीं पाते। कुछ ऐसे भी हैं जिनको केवल अपनी पदवी और पार्टी से ही मतलब है। लोगों के हित से ज़्यादा इनके लिए अगले चुनाव और पार्टी की ज़रुरतें ज़्यादा महत्वपूर्ण है। ये बड़े मुद्दों पर काम करना भी चाहें तो इनके सामने अपने राजनीतिक एजेंडे खड़े हो जाते है। एक शासक सुधारक नहीं बन सकता और एक सुधारक शासक नहीं बन सकता। इनकी अलग अलग भूमिका है और इनको मिलकर काम करना चाहिए।
प्रश्न : शादी के महत्व के बारे में हमे बताएं।
श्री श्री रवि शंकर : मुझे इस विषय में अनुभव नहीं है!
शादी एक महत्वपूर्ण पद्धती है जो तुम्हे जीवन में किसी को स्वीकार करके आगे बढ़ना सिखाती है। इससे तुम बाँटना, दूसरे की देखभाल करना और अपनी देखभाल कराना सिखते हो।
"साधना का अर्थ है हर तरह के प्रयत्न से विश्राम"
ध्यान में कोई प्रयत्न नहीं है।
हम जो भी प्रयत्न से प्राप्त करते हैं, वो हमारे अहंकार को बढ़ाता है। जो तुम नहीं कर सकते, तुम्हें करने की आवश्यकता नहीं है। कोई कहे कि तुम्हें ४० दिन तक उपवास रखना है। तुम्हारा शरीर इसे सहन नहीं कर सकता। ऐसा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। पर अगर तुम सोचो कि तुम कुछ नहीं कर सकते, तो तुम आलसी हो जाओगे। तब भी तुम कुछ नहीं पाओगे।
"आध्यात्म, इस नये युग की भाषा है"
बैंगलोर आश्रम, २ सितंबर २००९
श्री श्री ने आज कहा -
प्रश्न : मैं अपने प्रदेश में एक सम्मानित, प्रतिष्ठित और जाना माना, उच्च पदाधिकारी हूं। जब मैं किसी अन्य जगह जाता हूं तो कभी कभी मुझे लगता है कि वहां मेरा महत्व कुछ कम है। मैं अपनी identity पर प्रश्न चिह्न लगा लेता हूं। इससे छुटकारा कैसे पाऊं?
श्री श्री : तुम्हें पता है, तुम्हें एक सूट पहनना आना चाहिये – और उसे उतारना भी! अपने घर में सब राजा होते हैं। अकिंचन रहना सीखो – मैं कुछ नहीं हूँ। जीवन की पूरी यात्रा है, ‘मैं कुछ हूँ’ से ‘मैं कुछ नहीं हूँ’ और फिर ‘मैं ही सब हूँ।’ आमतौर पर जीवनयात्रा होती है, ‘मैं कुछ हूँ’ से ‘मैं कुछ नहीं हूँ’ और फिर, ‘मैं कुछ हूँ’!
सत्संग में बैठो। अपने वजूद को घुल जाने दो। अपने वजूद को घुलकर जाने देना, समाधि है, आनंद है। तुम जान जाओगे कि तुम अमर हो।
प्रश्न : Art of Living संस्था के लिये आपका क्या vision है?
श्री श्री : आध्यात्म, इस नये युग की भाषा है। तुम अपना vision खुद बनाओ। मैं कहूंगा कि तुम दृष्टा बन जाओ, अपने दृश्य खुद बनाओ। परमात्मा तुम्हें नींद देंगे, स्वप्न तुम खुद बनाओ।
प्रश्न : अगर १ से १०० तक की rating करें और एक पत्थर का स्तर शून्य है और मनुष्य का १००, तो बीच के बाकी जीवों का क्या स्तर तय करेंगे?
श्री श्री : Rating की क्या आवश्यकता है? सब कुछ उस एक का है। उसका ही अंग है। उस एक ने ही ये सभी अनंत रूप लिये हैं। शून्य और १००, सभी में वही है। एक पत्थर में भी जड़ता और चैतन्य होगी। ब्रह्म में जड़ और चैतन्य दोनों का ही समन्वय है। वे ब्रह्म का अंग हैं।
भगवान श्री कृष्ण, भगवद्गीता में कहते हैं, ‘माया भी मुझ से ही है। समस्त विश्व मुझ में ही है। फिर भी मैं किसी में नहीं हूं।’ भगवद्गीता की philosophy भ्रामक लग सकती है। बिना सत्य के अनुभव के philosophy केवल कुछ सिद्धांत मात्र हैं। अपने आप का सत्य अनुभव करने के लिये तुम अपने भीतर, गहरे उतर जाओ।
प्रश्न : मैं अपनी नकरात्मक भावनाओं से ज्ञान के द्वारा कैसे छुटकारा पा सकता हूं? अगर मैं उन्हें हटाने के लिये प्रतिबद्ध हो जाऊं तो वे मेरा विरोध करेंगे। अगर मैं उनका विरोध ना करूं, तो वे यथावत रहेंगे।
श्री श्री : नकरात्मक भावनाओं के साथ लड़ो मत, और उनसे मित्रता भी मत करो। युक्ति से, सांस से, सही दृष्टिकोण से, सभी नकरात्मकता से छुटकारा हो सकता है। अष्टावक्र गीता में कहा गया है, ‘सही तरीके से मन के ऊपर जाओ।’
प्रश्न : शिव जी के परिवार में हरेक का वाहन, जीव जगत में आपस में दुश्मन है। एक बैल है, चूहा है, मोर इत्यादि है – फिर भी वे आपस में शांते से रहते है! ऐसा कैसे?
श्री श्री : शिव का शांत, अद्वैत तत्व, हरेक को संग लाता है, और सद्भावना लाता है।
प्रश्न : जिज्ञासा का सार तत्व क्या है?
श्री श्री : तुम्हारा प्रश्न ही जिज्ञासा के सार तत्व का उदाहरण है। जो तुम पूछ रहे हो, वही इसका उत्तर है। ये तो ऐसा ही है जैसे कोई पूछे कि ध्वनि क्या है?

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