Friday 3 September 2010

जन्माष्टमी

जन्माष्टमी का एक नया परिप्रेक्ष्य


श्री श्री रविशंकर
जनमाष्टमी का दिन श्री कृष्ण के जन्म को मनाने का उत्सव है। अष्टमी एक महत्वपूर्ण दिन है। यह दर्शित और अदर्शित सत्यता, तथा दिखते हुए इस जगत लोक और अदृश्य आध्यात्मिक लोक के पूर्ण सन्तुलन को दर्शाता है।

कृष्ण का जन्म अष्टमी पर होना उनका सांसारिक लोक व आध्यात्मिक लोक दोनों पर आधिपत्य यां स्वामित्व होने को दर्शाता है। वह एक गुरु और आध्यात्मिक पथ प्रदर्शक के साथ-साथ एक कुशल राजनीतिज्ञ भी हैं। एक तरफ़ वे योगेश्वर (सब योग के अधिपति, एक ऐसा स्थान जिसे सब योगी पाना चाहते हैं) के रुप में जाने जाते हें तो दूसरी तरफ़ एके चोर के रूप में (माखन चोर)!
सबसे अद्वितीय गुण कृष्ण का यह है, कि जहाँ एक संत के रूप में उनका चरित्र इतना श्रेष्ठ व पवित्र माना गया है, वहीं दूसरी ओर उन्हें सबसे शरारती और नट्खट माना गया है!
उनका व्यवहार दोनों चरम में पूर्ण समता दर्शाता हैं - शायद इसीलिये कृष्ण को समझ पाना बहुत कठिन है। कोई अवधूत इस भौतिक जगत से अपरिचित सा लगता है तो कोई सांसारिक, राजनैतिक, या राज व्यक्ति, आध्यात्मिकता से अपरिचित लगते हैं, पर कृष्ण तो दोनों ही थे - द्वारकाधीश और योगेश्वर रूप में।

कृष्ण का दिया ज्ञान आज के युग में सबके लिये सबसे अधिक प्रासंगिक और उचित है, क्योंकि वह ना तुम्हें संसार की भौतिक साधनों में पूरी तरह से ड़ूबने देता है और ना ही संसार से भागने देता है। यह ज्ञान पुनर्जीवन देता है जिससे एक तनाव भरे, और बुझे व्यक्तित्व की बजाय एक संतुलित व जोशीला व्यक्तित्व उभरता है ।
कृष्ण हमें कुशलता से भक्ति सिखाते हैं। गोकुलाष्टमी उत्सव मनाने का अर्थ है इन विपरीत परंतु अनुकुल गुणों को अपने जीवन में सम्मिलित करना।

इसलिये जनमाष्टमी उत्सव मनाने का सबसे उचित तरीका यही होगा कि तुम द्विपद किरदार को निभाओ - देश का एक जिम्मेदार नागरिक होने का और साथ ही साथ इस बात को ध्यान में रखने का कि तुम सब घटनाओं से परे, उनसे अप्रभावित केवल मात्र ब्रह्मन स्वरूप हो! कुछ अवधूत के और कुछ कार्यशीलता के अंश अपने जीवन में शामिल करना ही जनमाष्टमी का असली उद्देश्य है।

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