Sunday, 12 September 2010

ज्ञान के मोती



प्रश्न : मैंने अपने जीवन के कई वर्ष बर्बाद कर दिये हैं। कम से कम, अब मैं कुछ करना चाहता हूं और सफल होना चाहता हूं। मैं ६० साल का हूं, क्या अब बहुत देर हो चुकी है?

श्री श्री रवि शंकर : नहीं! कभी भी देर नहीं हुई होती, बिल्कुल नहीं, चिंता मत करो। भूतकाल पर अफ़सोस मत करो। अब भी देर नहीं हुई है। मुस्कुराओ, खुश रहो, हां...तुम सही जा रहे हो, सही रास्ते पर हो और सही जगह पर हो। आगे बढ़ो! बहुत से काम करने हैं और मुझे बहुत सी मदद की आवश्यकता है। बहुत सारे हाथों को साथ लेकर ये बड़ा काम करना है। ठीक है! पूरी दुनिया को एक परिवार के रूप में साथ लाना है - इसमें हम सब की बहुत अहम भूमिका है। चलो मिल कर हम सब इस काम को करते हैं।

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, कृपया सलाह देकर मेरी मदद कीजिये। मेरे पति कंप्यूटर गेम्स के दीवाने हैं और वो पूरी रात उन्हें खेल सकते हैं। मैं उनकी इस तीव्र इच्छा से छुटकारा कैसे दिलाऊं, और इस अवस्था में मैं उनकी क्या मदद कर सकती हूं? बहुत बहुत धन्यवाद!

श्री श्री रवि शंकर: पूरी रात कंप्यूटर गेम्स! एक काम करो - उन्हें एक कमरे में बंद कर दो और पूरा दिन कंप्यूटर गेम्स खेलने को कहो, ना कि केवल रात को ही। अगर वो अपने आप को एक कमरे में बंद कर के दिन रात खेल सकते हैं - एक पूरा दिन...तीन दिन बाद, चौथे दिन वो कंप्यूटर गेम्स को अलविदा कह देंगे।

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, मैंने सुना है कि कुछ लोग बिना भोजन के जीने की तैयारी कर रहे हैं। क्या ये उचित है?

श्री श्री रवि शंकर : कुछ लोग भोजन के बिना जीते हैं, पर उनमें बहुत शक्ति नहीं होती, वे कुछ खास करते नहीं हैं। अगर तुम एक नाज़ुक सी गुड़िया की तरह कहीं बैठ कर कुछ ना करना चाहते हो, तो तुम्हें भोजन की ज़रूरत नहीं है।कुछ लोगों ने बहुत समय तक इसका अभ्यास किया है। मैं ऐसे एक व्यक्ति को जानता हूं जो यहां आश्रम में आया था। उसने कहा कि उसने पिछले ३० सालों से कुछ के बराबर खाया था।
ठीक है, ऐसा अभ्यास करने में तुम्हें कितना समय लगा? उसने कहा, १७ साल। १७ साल केवल सूर्य को देखता रहा और धीरे धीरे भोजन को कम करता रहा, फिर एक ऐसा समय आता है जब कुछ भी खाने की ज़रूरत नहीं पड़ती; पर उसने इसके अलावा जीवन में कुछ भी हासिल नहीं किया है। तो अगर तुम इसे ही अपने जीवन का ध्येय बनाना चाहते हो कि बिना खाये रहने का अभ्यास करो, तो ठीक है! तुम ऐसा कर सकते हो, इसमें कोई शक नहीं है। देखो, कुछ लोगों के साथ ऐसा स्वाभाविक रूप से हुआ है। कुछ लोगों का शरीर ही प्रकृति ने ऐसा बनाया है कि उन्हें खाना नहीं पड़ता। जब वे प्रसन्न रहते हैं और ध्यान करते हैं तो स्वाभाविक रूप से भोजन की मात्रा कम हो जाती है। मुझे भारत की दो महान हस्तियों की याद गई जो कि समकालीन थे - भगवान बुद्ध और भगवान महावीर
भगवान महावीर कुछ नहीं खाते थे, ऐसा कहा जाता है कि वे साल में केवल एक बार खाते थे, या, तीन बार खाते थे, ऐसा कुछ कहा है। उन्हें भोजन करने की आवश्यकता नहीं लगती थी। वे भी गौतम बुद्ध या भगवान बुद्ध की तरह एक राजकुमार थे और एक राजकुमार होते हुये भी जीवन का अर्थ जानने के लिये निकल गये थे। बहुत ही कम बार उन्होंने भोजन किया, किसी ने भोजन लाकर उन्हें अर्पण किया तो उन्होंने खा लिया।
तो, भगवान बुद्ध ने भी ये प्रयोग किया; उन्होंने भी कहा, ‘ठीक है, मैं भी नहीं खाऊंगा और जीवन का अर्थ खोजूंगा। बुद्ध ने ज़बरदस्ती भोजन नहीं किया और उनका शरीर इतना कमज़ोर पड़ गया कि वे ना बैठ सकते थे, ना चल सकते थे और ना ध्यान ही कर सकते थे, वे बहुत बेबस हो गये थे। उस समय उन्हे एक भक्त ने खीर दी। उन्होंने थोड़ी खीर खाई, और कुछ प्राण आये। तब बुद्ध ने घोषणा की कि अधिक उपवास करना बेकार है! जितना चाहिए, महिने में एक यां दो बार उपवास उचित है। उन्होंने कहा कि उपवास करने से आत्मज्ञान नहीं प्राप्त होता है। भगवान कृष्ण ने भगवद गीता में साफ़ शब्दों में कहा है कि अधिक खाने वाले के लिये भी योग नहीं है और ना ही बिल्कुल ना खाने वाले के लिये ही है। योग ऐसे व्यक्ति के लिये नहीं है जो आलसी है और कुछ नहीं करता और ना ही ऐसे व्यक्ति के लिये है जो बहुत अधिक काम करता है, ‘युक्ताहार विहारस्य उसी तरह योग ना तो उसके लिये है जो बिल्कुल नहीं सोता और ना ही उसके लिये है जो हर समय सोता ही है।

योग उसके लिये है जो कि मध्य मार्ग पर चलता है, और उसे दुख से, पीड़ा से, कष्ट से बाहर निकालता है। जीवन में दुख से बाहर आने की ही कोशिश रहती है और हम ऐसा कैसे कर सकते हैं? ‘युक्ताहार विहारस्य युक्त चेष्टस्य कर्मसु युक्त स्वप्नबोधस्य, योगो भवति दुखा।जो भोजन करने में, कर्म करने में, सोने में, विश्राम करने में मध्य मार्ग पर चलता है, योग उसी के लिये है। योग से आत्मज्ञान होता है। योग से ऐसी स्थिति में पंहुचते हैं कि दुख से मुक्ति हो जाती है।

मध्य मार्ग का क्या अर्थ है? दिन में तीन बार भोजन करना मध्य मार्ग है, दो बार भोजन करना मध्य मार्ग है। एक बार भोजन करना? मध्य मार्ग? मध्य मार्ग क्या है ये आपको देखना है।

जब भूख लगे तब खाओ, उतना ही खाओ जितना आवश्यक है। आर्ट आफ़ लिविंग ने तुम्हें इतनी बढ़िया साधना पद्दत्ती दी है जो कि आज के व्यस्त जीवन के अनुकूल है, तुम्हारे शरीर के अनुकूल है, वातावरण के अनुकूल है, सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण के अनुकूल है।

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर संदेश दिया।
    आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय
    कल (13/9/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
    और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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