Wednesday, 11 August 2010

"‘मैं नहीं जानता हूँ,’ की अवस्था में तुम्हें जानने का मौका मिलता है"





प्रश्न : प्रिय गुरुजी, मैं कभी भी एक आध्यात्मिक या सच्चा धार्मिक व्यक्ति नहीं रहा हूँ। मैं ऐसा कैसे बनूं?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम्हें अपने आप पर एक लेबल लगाने की आवश्यकता नहीं है – मैं धार्मिक व्यक्ति हूँ, इत्यादि। इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। बस, स्वाभाविक रहो – एक सुंदर, अच्छे इंसान। बस इतना ही!

अगर कोई अच्छा इंसान नहीं है और वो कहे कि, ‘मैं आध्यात्मिक या धार्मिक व्यक्ति हूँ,’ तो ये इसका क्या फ़ायदा है? वो किस काम का है? है कि नहीं?

अध्यात्म का ध्येय है तुम्हें अच्छा इंसान बनाना। धर्म का ध्येय है तुम्हें धर्मशील बनाना, तुम्हें विश्व से जोड़ना, विश्व की चैतन्य शक्ति से जोड़ना। यही आध्यात्म है, और एक सीधा साधा, स्वाभाविक, आम इंसान भी यही है! समझ गये? ठीक है। तो ये बेहतर होगा कि तुम अपने आप पर कोई लेबल ना लगाओ।

अगर तुम सोचते हो कि तुम आस्तिक या नास्तिक हो, तब भी अपने आप पर नास्तिक का लेबल लगाना ठीक नहीं होगा। अगर कोई व्यक्ति ये कहता है कि वह नास्तिक है, तो मेरे हिसाब से सच नहीं है। तुम सच में नास्तिक नहीं हो सकते हो। तुम्हारी चेतना के किसी कोने में तुम्हें किसी बात पर आस्था है। तुम कुछ तो ज़रूर जानते हो, क्योंकि तुम्हारी चेतना अति प्राचीन है। तुम अपनी चेतना को नहीं जानते हो, क्योंकि ये इतनी प्राचीन है, इसमें इतनी परतें हैं, तुम्हारे मन पर कितनी ही छापें हैं – ये चेतना बहुत ही अद्भुत है!

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, मैंने सत्य के बारे में सुना और समझा है, पर यह मेरे अनुभव में नहीं आया है। सत्य का नुभव करने में कृपया मेरी मदद कीजिये।

श्री श्री रवि शंकर :
बढ़िया! ‘मैं नहीं जानता हूँ,’ की अवस्था में तुम्हें जानने का मौका मिलता है। अगर तुम सोचते हो कि तुम जानते हो, तो तुम एक सिद्धांत में अटके हुये हो। उपनिषद में बहुत सुंदर बात कही गयी है, ‘जो कहता है कि, “मैं नहीं जानता हूँ।” वो जानता है, और जो कहता है, “मैं जानता हूँ।” सच में नहीं जानता है!’

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, हाल ही में वैज्ञानिकों ने घोषित किया है कि वे लैब में जीन्ज़ में फेरबदल कर के जीवन बना सकते हैं। क्या ये आध्यात्म और धर्म के विरुद्ध नहीं है कि मनुष्य जड़ वस्तु को जीवंत बनाये?

श्री श्री रवि शंकर :
बिल्कुल नहीं। तुमने ये सुना है कि ‘ईश्वर ने मनुष्य को अपने जैसा ही बनाया है,’? ठीक है ना? तो जो ईश्वर कर सकते हैं, मनुष्य भी वो कर सकता है। ईश्वर ने मनुष्य को बनाया, अपने ही जैसा बनाया – ऐसा बाइबल में लिखा है। है ना?

५००० वर्ष पहले लिखे गये महाभारत महापुराण में भी ऐसी कथा आती है। तो, टेस्ट ट्यूब बच्चे कोई नयी बात नहीं है। महारानी गांधारी ने एक ही भ्रूण को १०० भागों में बांट कर अलग अलग मटकों में रख कर १०० तरह के बच्चे बनाये।

पर वो बच्चे किस तरह के थे, तुम सभी जानते हो! तो इस में जोखिम भी है! पर ये एक तथ्य है कि ५००० वर्ष पहले गांधारी ने १०० मटकों में १०० बच्चे बनाये थे। तो लैब में जीवन बनाना या टेस्ट ट्यूब बेबी कोई नई बात नहीं है। ऐसा ५००० वर्ष पहले किया जा चुका है!

प्रश्न : गुरुजी, क्या पिछले जन्म में की कई ग़लतियों का भी प्रभाव रहता है? अगर ऐसा है, तो इससे बचने का उपाय क्या है?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम्हें कोई ज़्यादा प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं है। बस, अपनी साधना करते रहो। सुदर्शन क्रिया, ध्यान और गान से तुम्हारे सभी बुरे कर्म और चित्तवृत्ति अपने आप ही साफ़ हो जायेंगे। और कुछ अडवांस कोर्स, कुछ hollow and empty meditations...सभी छाप साफ़ हो जायेगी।

प्रश्न: प्रिय गुरुजी, क्या ये सच है कि गुरु ही शिष्य को चुनता है? अगर ऐसा है तो आपने मुझे चुनने में इतनी देर क्यों लगाई??
श्री श्री रवि शंकर: (हंसी) हम भूतकाल में ना जाकर, आगे मज़े करें। आगे के सुंदर दिन, ठीक है?

प्रश्न : गुरुजी, जब आप आतंकवादियों और नक्सलियों से मिलते हैं तो उनके रवैये और ज्ञान की कमी को देख कर निराश नहीं हो जाते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
ये तो ऐसा ही हुआ अगर तुम किसी डौक्टर से पूछो, ‘क्या तुम बीमार लोगों को देख कर बीमार नहीं हो जाते हो?’!

प्रश्न : क्या आप मुझे एक सुझाव देंगे – अगर आपका जीवनसाथी आप से हमेशा क्रोधित रहे तो आप शांत कैसे रहें?

श्री श्री रवि शंकर :
मेरा जवाब प्रामाणिक नहीं होगा! यहाँ बहुत से अनुभवी व्यक्ति हैं, तुम उनसे अनुभव बांट सकते हो!

अगर कोई अक्सर ही तुम से क्रोधित रहे तो तुम्हें इसकी आदत हो जाती है, और तुम उसकी ज़्यादा फ़िक्र नहीं करते हो। है ना? पर अगर वे आमतौर पर तुमसे प्यारा बर्ताव करें और कभी कभी क्रोधित हो जायें तो तुम्हें विशेष परेशानी होती है, है ना?

भारत में एक लोकप्रिय कहानी है। एक विनम्र व्यक्ति की शादी एक बहुत ही कुटिल महिला से हुई। वो हर काम उसकी इच्छा के विरुद्ध करती थी। वो व्यक्ति जो भी कहे, वह उसका उल्टा ही करती थी। वो व्यक्ति इस बात से बहुत परेशान और दुखी था। उन दिनों भारत में तलाक इतनी आम बात नहीं थी। तो, वह व्यक्ति उस स्थिति में फंस गया था। जब आप किसी मुश्किल में फंस जाते हैं तो आप किसी ज्ञानी व्यक्ति के पास जाते है। तो, वह व्यक्ति एक योगी से मिलने गया।

उस योगी ने उसके कान में कुछ कहा, और तीन महीने बाद जब वह योगी उस व्यक्ति को फिर मिला तो वह व्यक्ति खुशी से मुस्कुरा रहा था! उसने जाकर योगी से कहा कि, ‘आपका मार्गदर्शन बहुत उपयोगी रहा, और अब घर में शांति है!’ मार्गदर्शन ये था कि वो जो भी चाहता था, अपनी पत्नि से उसका उल्टा ही कहता था। जो बात वो कहे, उसकी पत्नि तो मानने वाली थी नहीं! तो तुम्हें उस व्यक्ति की नब्ज़ जानने की ज़रूरत है।

अगर तुम्हारा जीवनसाथी हर वक्त तुमसे क्रोधित रहता है तो मैं जानते हूँ कि अपने अनुभव से तुमने इस बात को संभालना सीख ही लिया होगा, और उसके क्रोध को कम या ज़्यादा कैसे करना। है ना? ये रुचिकर है! शायद ऐसे लोगों के साथ तुम्हें एक-दो महीने ऐसा करना चाहिये, फिर अचानक एक दिन उन्हें अचंभित कर दो। अग्र वे क्रोध में हो तो उनकी तारीफ़ करो और बहुत प्रेम करो। क्रोध के साथ एक तय रवैया ना अपनाओ।

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