प्रश्न : कई आध्यात्मिक किताबों में मन और विचारों पर नियंत्रण करने पर बहुत ज़ोर दिया जाता है, पर सामान्य जीवन में यह बहुत कठिन कार्य लगता है। आपसे अनुरोध है कि बारे में कुछ उपयोगी उपाय बतायें।
श्री श्री रवि शंकर : हां, अब हम यही करने वाले हैं। ध्यान। तब तुम जान जाओगे कि विचारों के साथ कैसे पेश आना है।
प्रश्न : किसी को अच्छा या बुरा घोषित करने की प्रवृत्ति से कैसे छुटकारा पायें?
श्री श्री रवि शंकर : ओह! (हंसी) ये अपने आप ही छूट जाता है। एक बार आप जान गये कि आप किसी को अच्छा या बुरा व्यक्ति मान रहे हैं, आप उससे बाहर आ जाते हैं। देखो, जो हो गया उसके बारे में आप कुछ नहीं कर सकते हैं। जिस क्षण आप सजग हो गये कि आप किसी को निर्णयात्मक नज़रिये से देख रहे हैं तो आप उसी समय उस से बाहर आ जाते हैं। आप मुड़ कर देखें कि कितनी बार आपने लोगों को अच्छा या बुरा समझा, पर उस समय का वो निर्णय अक़सर ग़लत सिद्ध हुआ।
अपने अनुभव से आप ज्ञान में बढ़ते हैं। ये बाहर से नहीं लाया जा सकता है। ये भीतर से ही लाना है। आपको पीछे मुड़कर देखना है कि वो कैसा था और आपने क्या किया।
प्रश्न : आपने जिस गांव के बारे में बताया, वहां किस वजह से इतना बदलाव आया?
श्री श्री रवि शंकर : ध्यान, श्वांस प्रक्रियायें, शिक्षा, और भजन कीर्तन। हर दिन वहां सब शाम को मिलकर गाते हैं। हफ़्ते में एक दिन प्रीति भोज होता है, जहां सब साथ में मिल कर खाते हैं। इस परिवर्तन का प्रेरणा स्तोत्र है Youth Leadership Training Programme.
प्रश्न : क्या हम ये प्रयास गुणगांव के गांवों मे कर सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : हां, ज़रूर।
प्रश्न : क्या मैं इसका हिस्सा बन सकता हूं?
श्री श्री रवि शंकर : अवश्य। आपका स्वागत है।
प्रश्न : क्या आज आप हमारे साथ गायेंगे?
श्री श्री रवि शंकर : हम ध्यान करेंगे।
प्रश्न : क्या आधुनिक भारत में व्यापार और नैतिक मूल्यों का समन्वय हो सकता है?
श्री श्री रवि शंकर : ये मान्यता कि सिर्फ़ ग़लत काम कर के ही आदमी आगे बढ़ सकता है, ग़लत है। ये सत्य नहीं है। आप देखिये कि भारत में ऐसे कई बिज़नेस हैं जो नैतिक कार्य कर रहे हैं और आगे भी बढ़ रहे हैं। पर इन का प्रचार नहीं किया गया है। कई लोगों को मालूम नहीं है।
कुछ छोटे बिज़्नेस ये नहीं जानते कि कुछ बड़े बिज़्नेस पूरी तरह नैतिक कार्य कर रहे हैं, जैसे कि टाटा, इन्फ़ोसिस, विप्रो...ये सभी बिल्कुल नैतिक काम कर रहे हैं। ये किसी को ठग नहीं रहे और ना ही कोई अनैतिक कार्य कर रहे हैं। हमें ऐसी बातों को जनता के सामने उजागर करना है। ये काम अभी होना है। कितने ही ऐसे छोटे व्यवसाय हैं जहां लोग नैतिकता से काम करते हैं, पर इनकी ख़बरें नहीं बनती हैं। केवल सत्यम ही ख़बरों में आया (हंसी)! मीडिया को बुरी ख़बरों का प्रचार करने में अधिक रुचि रहती है, ना कि सकरात्मक ख़बरों में।
प्रश्न : भारत में लोग नैतिकता से व्यापार करने और अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी के प्रति जागरूक हो रहे हैं। आप इस बारे में कुछ बतायेंगे?
श्री श्री रवि शंकर : मुझे लगता है कि यह बात अमरीका के लिये भी सत्य है, और विश्व में सभी जगहों में भी। आज इस ग्लोबलाइज़्ड दुनिया में सभी जगह यही बात है कि हम नैतिकता की ओर कैसे लौटें?
योरोपियन पार्लियामेंट में हर साल Art of Living एक सेमिनार कराता है – ‘व्यवसायिक संस्कृति और आध्यात्म।’ दुनिया भर से व्यवसायी आते हैं, और जो लोग नैतिकता से व्यवसाय करते हैं, दूसरों को बताते हैं कि वे ऐसा कैसे करते हैं, व्यवसाय की सामाज के प्रति ज़िम्मेदारी कैसे निभाते हैं, और व्यवसाय में आध्यात्म को कैसे जोड़ सकते हैं। ये सेमिनार हर साल अक्तूबर-नवंबर में होता है।
प्रश्न : कृपया प्रेम के बारे में बताइये – माता पिता, सेक्स, बच्चे, परिवेश, मित्र, इत्यादि के लिये प्रेम।
श्री श्री रवि शंकर : प्रेम के बारे में मैं तुम्हें बताता हूं – तुम प्रेम से ही बने हो। तुम एक पदार्थ से बने हो जिसका नाम है प्रेम। तुम्हारी चेतना प्रेम से भरी है। प्रेम के कई प्रकार होते हैं। माता पिता का प्रेम, भाई बहन का प्रेम, बच्चों के लिये प्रेम, जीवनसाथी के लिये प्रेम – ये सब इसके विभिन्न स्वाद हैं। भिन्नता है, पर उसके पीछे मैं प्रेम को केवल एक भावना के रूप में नहीं देखता – प्रेम हमारा अस्तित्व है। तुम्हारे शरीर के सभी अणु एक दूसरे से प्रेम करते हैं और तभी तो तुम एक मनुष्य के रूप में हो। तभी तो एक मालिक है। जिस क्षण ये प्रेम का बंधन छूट जाये उसी क्षण इस शरीर का नाश हो जाता है। मैं प्रेम को अस्तित्व के रूप में देखता हूं, ना कि केवल एक भावना के रूप में। प्रेम के साथ ज्ञान हो तो आनंद होता है।
अज्ञान की वजह से, ज्ञान के बिना प्रेम की वजह से ईर्ष्या, लालच, क्रोध, निराशा, और सभी कुछ आता है। ये सभी नकरात्मक भाव, प्रेम से ही उपजे हैं। अगर प्रेम ना हो तो तुम किसी से ईर्ष्या नहीं करोगे। है कि नहीं? यदि तुम्हें लोगों से अधिक चीज़ों से प्रेम हो तो उसे लालच कहते हैं।
आप किसी को आवश्यकता से अधिक प्रेम करें तो उससे उस पर स्वामित्व जताने लगते हैं। आपको उत्तमता से प्रेम हो तो आपको ज़रा सी तृटि से क्रोध आ जाता है। है कि नहीं? प्रेम को ज्ञान की लगाम की आवश्यकता है।
भक्ति सूत्रों (प्रेम के सूत्र) पर २० सी डी हैं, तुम उसे ले सकते हो। उसमें मैंने विभिन्न प्रकार के प्रेम के बारे में बताया है, और कैसे वे हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं।
प्रश्न: हमारे चर्च में कुछ नवयुवकों की टोली है, और कुछ सामाजिक कार्य चलते रहते हैं। हमने देखा है कि हमारे नवयुवकों में कोई भी नेत्रत्व नहीं करता है। कोई ज़िम्मेदारी लेने के लिये आगे नहीं बढ़ता है। एक नेता को कैसा होना चाहिये? और युवाओं को नेतृत्व की ओर कैसे प्रेरित करें?
श्री श्री रवि शंकर : नेताओं को नेता बनाने चाहिये, और साथ ही नेताओं को अपना प्रभुत्व नहीं जताना चाहिये। नेताओं को पार्श्व से काम करना चाहिये और सेवा के भाव से भरा और करुणामय होना चाहिये। कोई व्यक्ति सेवा कार्य में रुचि क्यों नहीं ले रहा है? हो सकता है वो तनावग्रस्त हो। अगर आप खुद ही दुखी हैं तो किसी और के लिये कुछ करने की ओर प्रेरित नहीं होते हैं। तो, पहले आप शांति पा लीजिये।
इसीलिये मैं कहता हूं कि मुस्कुराओ और फिर सेवा करो। अगर तुम्हारी सेवा में मुस्कुराहट नहीं है तो वो सेवा कुछ ही समय चल पायेगी। तुम २-३, ५ दिन सेवा करोगे, फिर और नहीं कर पाओगे, क्योंकि तुम में ऊर्जा ही नहीं है। तो, भीतरी शांति और सब से अपनेपन का उदय हो तो तुम सेवा किये बिना रह ही नहीं पाओगे, सेवा करना तुम्हारे स्वभाव का अंग हो जायेगा।
प्रश्न : प्रेरणा का स्तोत्र कहां ढूढें?
श्री श्री रवि शंकर : मैं देखता हूं कि हरेक बच्चा कुछ प्रेरणा देता है।
प्रश्न : जीवन का अर्थ क्या है? जंगलों में देखें तो शिकारी जानवर दूसरे जानवरों को अपना आहार बना लेते हैं। जन्म और मृत्यु किसी यंत्र जैसे चलित लगते है। जीवन का कोई ख़ास अर्थ नहीं है। पर मनुष्य जाति को देखें तो वे आयु को बढ़ाने में लगे रहते हैं। क्या ये आवश्यक है?
श्री श्री रवि शंकर : हां, जानवर अपने स्वभाव के विरुद्ध नहीं जाते हैं, प्रकृति के नियमों के विरुद्ध नहीं जाते हैं। उनका जीवन यंत्रवत चलता है। उन्हें स्वतंत्रता नहीं है। पर मनुष्यों के पास वो स्वतंत्रता है। तुम्हारे पास बुद्धि है कि तुम्हारे पास नियमों के विरुद्ध जाने की स्वतंत्रता है। यही तो हमे जानवरों से अलग बनाता है, है ना? तो, जानवरों की समझने की, ग्रहण करने की शक्ति से अधिक शक्ति हम में है। हम ब्रह्माण्ड के बारे में जानते हैं, सौर मण्डल के बारे में जानते हैं, मिल्की वे के बारे में जानते हैं, अणु के बारे में, पूरे संसार के बारे में जानते हैं। ये जानने की शक्ति, रचना करने की शक्ति, बदलने की शक्ति, हम में निहित है। इसे विवेक कहते हैं।
प्रश्न : आध्यात्मिक पथ पर साधक निराकार, साकार के बीच भटक सकता है, ध्यान में मंत्र या विपासना...किसी रास्ते पर जाकर फिर ये समझना कि उसके लिये दूसरा रास्ता सही होता, इस में साधक का समय नष्ट हो सकता है?
श्री श्री रवि शंकर : देखो, सभी संभावनाये हैं। ऐसा नहीं है कि जो लोग साकार उपासना में जाते हैं, उन्हें प्राप्ति नहीं होती है। उनकी प्राप्ति के लाखो उदाहरण हैं। इस देश में हज़ारों संत, साकार से निराकार तक पंहुच गये। अगर हम तुलसी रामायण देखें तो जो तुलसी ने लिखा है, ‘राम निरंजन अरूप,’ ये अनुभव के बिना नहीं कह सकते थे। पहले वे राम को एक व्यक्ति के रूप में देखते हैं, फिर उन्होंने पाया कि राम का सार निराकार है। उसी तरह, असीसी के सेंट फ़्रांसिस भी साकार से निराकार में आये। मीरा साकार से निराकार तक पहुंच गई। गुरु नानक देव...। इस देश में ऐसे कई उदाहरण हैं कि जहां साधक की लगन सच्ची है तो कभी गलती नहीं होती। ऐसा मेरा मानना है। क्योंकि प्रकृति तुम्हारा मार्गदर्शन करेगी।
देखों वह व्यापक बुद्धि, परमात्मा कभी आपका साथ नहीं छोड़ते। वो आपको सही रास्ते पर ले जाते हैं। मुझे नहीं लगता अलग अलग कि साधना के पथ पर कहीं भी समय नष्ट होता है। पर अपने विवेक का प्रयोग करो।
तो अब हम थोड़ा ध्यान करें? आप में से कितनों को लगता है कि ध्यान का अर्थ है एकाग्रता? किसी को नहीं लगता कि ध्यान का अर्थ एकाग्रता है? ये बहुत अच्छा है। तो तुम पहली सीढ़ी पर आ गये हो। अक़्सर लोग ध्यान को मन की एकाग्रता या विचारों पर नियंत्रण करना समझते हैं। ऐसा नहीं है। ध्यान है गहरा विश्राम। ठीक है...
ध्यान के लिये तीन चीज़े आवश्यक हैं। पहली बात ये है कि अगले दस मिनट के लिये हम ध्यान करेंगे – ये जान लो कि, ‘अगले दस मिनट तक मुझे कुछ नहीं चाहिये।’ क्या सब लोग ऐसा कर सकेंगे? क्या आप कह सकते हैं कि, ‘अगले दस मिनट तक मुझे कुछ नहीं चाहिये।’ नहीं, ज़ोर से कहने की कहने की ज़रूरत नहीं है (हंसी)। देखो, अगर तुम कहो कि, ‘ओह! मुझे एक गिलास पानी चाहिये। मैं प्यासा हूं।’ तो तुम्हारा मन फंसा हुआ है।
‘अगले दस मिनट के लिये मुझे कुछ नहीं चाहिये।’
हम सब अपने मोबाइल फ़ोन का लाल बटन दबा दें – ये ध्यान के लिये एक आवश्यक क्रिया है। तो अगले दस मिनट के लिये आप सभी यहां रहेंगे। आप बीच में उठ कर दूसरों के ध्यान में बाधा नहीं डालेंगे। तो, पहली बात है, ‘अगले दस मिनटों के लिये मुझे कुछ नहीं चाहिये।’
दूसरी आवश्यक बात है, ‘मैं कुछ नहीं करता हूं।’
हम तीन बार ॐ का उच्चारण करेंगे। ॐ एक स्पंदन है। पूरब के सभी धर्मों ने - बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सिख धर्म, टाओ धर्म, शिंटो धर्म, हिंदु धर्म – सभी ने ॐ को ध्यान में सुन कर धर्म में सम्मिलित किया है। तो, ये योग से जुड़ा हुआ है। हम तीन बार ॐ का उच्चारण करेंगे।
तीसरी बात है, ‘मैं कुछ नहीं हूं।’ अगर तुम सोचते हो कि तुम बहुत बुद्धिमान हो, तो ध्यान भूल जाओ। अगर तुम सोचते हो कि तुम बेवकूफ़ हो, तब भी ध्यान नहीं हो पायेगा। अगर तुम सोचते हो कि तुम अमीर हो तो...बाइबल की वो बात याद है कि अमीर लोग नहीं जा पायेंगे...क्या है? तो, अगर तुम सोचते हो कि तुम अमीर हो, तो तुम ध्यान नहीं कर पाओगे। अगर तुम सोचते हो कि तुम ग़रीब हो तब भी ध्यान नहीं कर पाओगे। अगर तुम सोचते हो कि तुम पापी हो तो ध्यान असंभव है। अगर तुम सोचते हो कि बहुत पवित्र हो, तब भी ध्यान नहीं होगा। तो, तुम्हें क्या होना चाहिये? ‘मैं कुछ नहीं हूं।’
मुझे कुछ नहीं चाहिये। मैं कुछ नहीं करता हूं। मैं कुछ नहीं हूं।
क्या हम ये तीन बातें कर पायेंगे? मैं बहुत बुद्धिमान नहीं हूं, मैं बहुत बड़ा बेवकूफ़ भी नहीं हूं। मैं ना अमीर हूं, ना ग़रीब हूं, ना पापी हूं, ना संत हूं। मैं कुछ भी नहीं हूं। ठीक है?
तो हम बस ये तीन बातें रखेंगे। इन्हें मन में बार बार दोहराना नहीं है। ये बस एक विचार है। ठीक है? विचार ऐसा ही होता है।
Saturday, 21 August 2010
"प्रेम के साथ ज्ञान हो तो आनंद होता है"
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