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इम्पीरियल होटल, नई दिल्ली
१० अगस्त २०१०
श्री श्री रवि शंकर : मैं खुद ही आपको अपना परिचय देता हूं...इजाज़त है? मैं एक बालक हूं जिसने बड़े होने से इंकार कर दिया है। (हंसी) ये हुआ एक वाक्य में मेरा परिचय। मैंने देखा है कि हर व्यक्ति में बालवत स्वभाव है पर वह भूतकाल के अनुभवों और भविष्य की चिंताओं के बोझ तले दब जाता है।
हमारा या जो भी व्यक्ति समाज का भला चाहता है उसका कार्य है इस कूड़े कचरे के बोझ को हटाना ताकि प्रकृति ने हमें जो स्वाभाविकता उपहार स्वरूप दी है वो खिल सके – सहजता, स्वाभाविकता, मानवीय गुण, करुणा, सदभाव, दोस्ती...। इन गुणों की खेती नहीं करनी पड़ती है। ये हम में हैं हीं, इन्हें केवल पुष्ट करना है और उजागर करना है। मैं इसे ही आध्यात्म कहूंगा।
देखो, हम सभी जड़ और चेतन से बने हैं। जड़ – अमीनो ऐसिड्ज़, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, इत्यादि। चेतन – प्रेम, करुणा, अपनापन, सब के साथ एक होना, अपने बारे में, अपने जीवन के बारे में, विश्व के बारे में एक बृहद दृष्टिकोण - ये सब चेतन का अंश है। और जिस भी चीज़ से चेतना और आध्यात्मिक गुणों का उत्थान हो उसे मैं आध्यात्मिकता कहता हूं। आप की क्या राय है? हां। ये कोई कर्मकाण्ड या विचारधारा नहीं है। ये उससे कहीं ज़्यादा है। ये एक अच्छे इंसान का सार तत्व है। ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं है जो अपने जीवन में सुख, प्रेम और करुणा ना चाहता हो। इस पैमाने से हर व्यक्ति आध्यात्मिक है, चाहे वो इसे पहचाने या ना पहचाने।
तो, आज की इस शाम की बात करें – मैं चाहूंगा के आप मुझ से प्रश्न पूछें। आप जानते हैं कि प्राचीन भारत की एक कहावत है, कि बुद्धिमत्ता का पहला चिह्न है कि व्यक्ति मौन रहे (हंसी) और यदि पहला चिह्न आप में खो गया है तो दूसरा चिह्न है कि, बिना किसी के प्रश्न पूछे जवाब ना दें (हंसी)। इसीलिये, हमारे सभी शास्त्र एक प्रश्न से शुरु होते हैं।
आप चाहे भगवद गीता लें, पुराण लें या रामायण लें – आप कोई भी प्राचीन शास्त्र देखें तो पायेंगे कि किसी ने एक प्रश्न पूछा और फिर किसी ने उसका समाधान किया। ये संभाषण एक गुरु शिष्य के बीच हो, या पति पत्नि के बीच हो, साधकों और संत के बीच हो – ये हमेशा प्रश्न उत्तर के रूप में ही होता है। आप को कैसी लगी ये बात?
प्रश्न : आप भारतीय राजनीति के नेतृत्व को सत्यपरायण कैसे बनायेंगे?
श्री श्री रवि शंकर : किसी भी प्रश्न का एक ही जवाब होता है, पर कुछ प्रश्नों का जवाब नहीं देना चाहिये – उस प्रश्न को ही पथ बना लेना चाहिये। एक सड़क पर कई बार चला जा सकता है। उसी तरह ये प्रश्न हमें अलग अलग स्थितियों में बार बार पूछना होगा। कोई व्यक्ति सत्यपरायण क्यों नहीं होता है? एक अपनेपन के अभाव में। क्या आप जानते हैं कि भ्रष्टाचार अपनेपन के दायरे के बाहर से ही शुरु होता है?
कोई अपने परिवार के साथ भ्रष्टाचार नहीं करता है। इस दायरे को थोड़ा बढ़ा दो तो अपने प्रियजनों के साथ कोई भ्रष्टाचार नहीं किया जाता। अपने मित्रों से वे भ्रष्टाचार नहीं करते। पर जब अपनी मित्रता के दायरे के बाहर जब वे एक सीमा रेखा खींच लेते हैं और उन्हें लगता है कि केवल उस रेखा की भीतर जो लोग हैं वही उनके अपने हैं, उसके बाहर के लोगों से अपनापन नहीं होता, और तभी भ्रष्टाचार शुरु होता है। हमें लोगों को इस अपनेपन के दायरे को बढ़ाने की सीख देनी है।
भ्रष्टाचार का दूसरा कारण है असुरक्षा की भावना। जिन लोगों के मित्र नहीं होते हैं वे धन में सुरक्षा ढूढते हैं। अरे! वे ये जानते ही नहीं कि धन से उन्हें सुरक्षा नहीं मिलने वाली। अच्छे लोगों की संगति से उनके जीवन में सुरक्षा बढ़ेगी। आप को पता है अगर आप किसी स्कूली बच्चे से पूछें कि उसके कितने मित्र हैं, तो अपनी उंगलियों पर अपने मित्र गिन सकें, इतनी संख्या होगी – २, ३, ४, ५। फिर मैं उनसे पूछता हूं, ‘देखो तुम एक कक्षा में ५०-१०० बच्चों के साथ ५-८ घंटे रहते हो – क्या तुम उन सब से दोस्ती नहीं कर सकते हो?’ और स्कूल कालेज से बाहर निकल कर तुम १ बिलियन लोगों के साथ, विश्व के ६ बिलियन लोगों के साथ कैसे रहोगे?
तो, मित्रता के भाव ने हमारे बच्चों के भीतर घर नहीं किया है। फिर क्या होता है? असुरक्षा की भावना अपने भीतर आ जाती है। और इस असुरक्षा से निबटने के लिये वह व्यक्ति उपाय खोजता है, ‘ठीक है, मुझे अधिक धन कमाना चाहिये। कैसे भी कर के धन का संग्रह करो, भ्रष्ट बनो।’
तो, सब से पहले हमें राजनीति में आध्यात्मिक्ता, व्यापार में सामाजिक कार्य, और धर्म मंक सभी धर्मों के प्रति सम्मान का भाव लाना होगा। यदि हम ये तीन चीज़ें कर सके तो समाज बेहतेर होगा और हम एक बेहतर जीवन जी पायेंगे।
हर नेता को अपनी जाति और धर्म से आगे देखना चाहिये। उनकी दृष्टि में संपूर्ण मानवताअ के लिये स्थान होना चाहिये। एक हिंदु पुजारी को केवल हिंदुओं के लिये ही नहीं, समस्त मानवता के लिये प्रार्थना करनी चाहिये। इसी तरह, एक मुस्लिम इमाम और ईसाई पादरी को भी समस्त मानवता के लिये प्रार्थना करनी चाहिये, तभी हम धर्म के उद्देश्य को पूरा कर पायेंगे।
इसलिये, मैं कहूंगा कि सभी धर्मों का समान सम्मान हो, और व्यवसायों में सामाजिक कार्य जुड़ा हो। अगर हर व्यवसायिक संस्थान corporate social responsibility के तहत अपने मुनाफ़े का १, २, १०, या जो भी प्रतिशत, गांवों के विकास में लगायें तो मेरा यक़ीन मानो, इस ग्रह पर कहीं भुखमरी, बीमारी और निरक्षरता नहीं रह जायेगी। क्योंकि सरकारें अकेले ये कार्य नहीं कर सकती हैं। व्यवसायिक संस्थानों एवं ग़ैर सरकारी संगठनों के तालमेल से बहुत कुछ संभव है। इसलिये, व्यवसाय में सामाजिक कार्य जोड़ो, और राजनीति में आध्यात्मिकता लाओ। महात्मा गांधी के समय में अच्छे चरित्र की वजह से राजनेताओं का बहुत सम्मान था।
आज की स्थिति उसके ठीक विपरीत हो गई है। आपको पता है, मुझे चिन्नई में एक सभा को संबोधित करना था, जिसमें दो मंत्री भी आने वाले थे। वहां हज़ारों लोग थे। किसी कारणवश वे मंत्री कहीं फंस गये और सभा में ना आ पाये। जब उनके ना आने की घोषणा की गई तो सभी लोग खुशी ज़ाहिर करने लगे (हंसी)। मैंने पहली बार लोगों को इस बात पर ताली बजाते देखा कि मंत्री नहीं आयेंगे (हंसी)!
आप जानते हैंकि हमें राजनीति में आध्यात्मिकता लाने की आवश्यकता है। राजनेताओं को देश का ख़्याल होना चाहिये।
मैं अपने दादाजी के समय की एक कहानी सुनाना चाहूंगा। मेरे दादाजी जब महात्मा गांधी से मिले तो वे उनके साथ सेवाग्राम में २० साल रहे और उन्हें मेरी दादीजी का १०.५ किलो सोना दिया। मेरी दादी बहुत ही सुंदर थीं। उन दिनों महिलायें बहुत से सोने के आभूषण पहना करती थीं, किंतु मेरी दादी ने स्वेच्छा से अपने मंगलसूत्र को छोड़कर अनय सभी आभूषण देते हुये कहा, ‘मैं बच्चों की देखभाल करूंगी, आप जाकर देश की सेवा कीजिये।’ तो वो जाकर महात्मा गांधी के आश्रम में रहे।
आजकल देनें की भावना पर मान नहीं किया जाता है। अगर दान कर के व्यक्ति खुद को कृत्य कृत्य समझे तो बहुत फ़र्क आयेगा। दान पर गौरव, अहिंसा पर गौरव, ये दोनों ही आज की शिक्षा में शामिल नहीं हैं। अगर हम फ़िल्में देखें तो हीरो को गुस्सैल और अक्रामक दिखाया जाता है। जो शांत, सहनशील, दूसरा गाल भी आगे करने वाले व्यक्ति होते हैं, उन्हें हीरो नहीं समझा जाता। इन मूल्यों को बदलना होगा।
मैं अभी अभी अमरीका में था, और शिकागो में ज़िलों के स्कूली बच्चों के लिये एक कार्यक्रम था। वहां एक स्कूल था जहां पिछले साल २६८ अपराधिक कृत्य हुये थे। और जब हमने स्कूलों में ध्यान, प्राणायाम और मानवीय गुणों को सम्मिलित किया जैसे कि हर दिन एक नया दोस्त बनाओ, और करुणा करो – इससे अपराध की दर २६८ से गिर कर ६० पर आ गई। वे बड़े चकित थे, और स्कूलों के डिस्ट्रिक्ट काउंसिलर मेरा धन्यवाद करने के लिये आये। शिक्षा के क्षेत्र के ५० उच्चतम अफ़सरों ने कहा कि जो प्रक्रियायें हमने सिखाई हैं उनसे समुचित बदलाव आया है। नहीं तो, वहां के लोग सुरक्षित नहीं महसूस करते हैं – वे नहीं जानते कि कल क्या हो सकता है, उनका बच्चा बिना हड्डी पसली तुड़वाये, सही सलामत घर आयेगा कि नहीं।
हमें सुरक्षा की भावना को वापस लाना है – अपनेपन से, एक दूसरे की देखभाल से, बांटने से, और देने में गौरव अनुभव करने से।
प्रश्न : ‘जीवन जीने की कला’ से दान देने की कला – हमने सुना है कि जिन देशों को हम कम आध्यात्मिक समझते थे, वहां लोग दान अधिक देते हैं। हमने हाल ही में सुना है कि अमरीका में कुछ अरबपति अपनी ५०% संपत्ति सामाजिक विकास के लिये दे रहे हैं। क्या ऐसे अब भी ऐसे देश को कम आध्यात्मिक कह सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर : मैं कहूंगा कि अमरीका बहुत ही आध्यात्मिक है। पिछले १० सालों में वहां आध्यात्मिकता में ५००% तरक्की हुई है। आप अगर कैलिफ़ोर्निया जायें तो पायेंगे कि वहां आध्यात्मिकता में, विशेषकर पूर्व से आई आध्यात्मिकता में बहुत बढ़ोतरी हुई है। भारत में ये बहुत पुरानी परंपरा रही है कि व्यापारियों द्वारा अस्पताल, धर्मशालायें, तालाब बनवाये जाते थे। व्यापारिक संगठन मंदिर बनवाते थे, ना कि सरकार।
भारत में अगर आध्यात्म अभी भी है तो वह व्यापारिक संगठनों की वजह से है, ना कि सरकार की वजह से। हां, कुछ सालों से दान देने में कमी आई है। ये आध्यात्म की कमी है। हो सकता है कि वे आध्यामिक गुणों में नीचे जा रहे हों।
हो सकता है कि कुछ स्थानों में लोग अधिक धार्मिक हो रहे हैं, पर आध्यात्मिक कम हो रहे हैं। ये भी एक कारण हो सकता है। पर आज भी अगर आप गांवों में जायें तो वहां के लोगों का मेल-जोल, मिल-बांट कर रहना अद्वितीय है। आप किसी भी गांव में जायें – यदि उनके पास एक ही गिलास लस्सी है तब भी वे आधा गिलास लस्सी आपको देंगे। वे बांट कर खाने के गुण को महत्ता देते हैं। गांवों में ऐसा है, पर शहरों में, जैसा कि आपने कहा, ये लुप्त होता जा रहा है। और, इसे वापस लाना है।
प्रश्न : मेरा प्रश्न है कि हम अपने कार्य को करने में जी जान से जुट जाते हैं, और उसके परिणाम से आसक्त हो जाते हैं। अगर परिणाम अच्छा हो तो हमें खुशी होती है पर यदि परिणाम अच्छा ना हो, तो अच्छे परिणाम में अपनी आसक्ति की वजह से हमें तनाव और दुख होता है। अपनी सीमित समझ के साथ मैं कहूंगा कि भगवद गीता में कहा है कि वैराग्य के साथ कर्म करो, पर अगर हम ऐसा करते हैं तो हो सकता है कि परिणाम अच्छा ना हो। इसका समाधान कैसे हो?
श्री श्री रवि शंकर : हां, गीता की ये समझ कुछ फ़र्क है। असल में गीता से ये समझना है कि, ‘तुम मेहनत से काम करो, अपना १०० प्रतिशत दो, उद्देश्य को देखो, उद्देश्य को पूरा करने की ओर देखो, पर साथ ही श्रद्धा और विश्वास रखो, और विश्राम करो।’
आपको पता है कि कुछ भी पाने के लिये ३ तरह का विश्वास होना आवश्यक है? पहले तो, खुद पर विश्वास रखो, तब तुम्हें घबराहट नहीं होगी। ‘ये काम संभालना मेरे लिये सरल है। मैं ये कर सकता हूं।’ दूसरा, अपने आस पास के लोगों पर, समाज पर विश्वास रखो। अगर तुम जानो कि तुम्हारी टीम अच्छी है, और वे उद्देश्य की प्राप्ति कर ही लेंगे, या सामाजिक व्यवस्था सुचारू है और तुम्हारे साथ न्याय होगा। तुमने अगर अच्छा काम किया है तो तुम्हें अच्छा ही मिलेगा।
पर यदि आपको सामाजिक व्यवस्था पर विश्वास नहीं है, वह भ्रष्ट है इसलिये आप उस से पास नहीं हो पायेंगे। तो, हमें व्यवस्था पर विश्वास होना चाहिये। तीसरा विश्वास है उस उच्च शक्ति पर, परमात्मा पर जो करुणामय है, सब के लिये श्रेष्ठतम ही करता है। ये तीन प्रकार के विश्वास हमें चिंता से बचाते हैं। मैं कहूंगा, अपने लिये कुछ समय निकालो, विश्राम करो और पीछे मुड़ कर देखो कि पहले भी तुम कितनी बार तनावग्रस्त हुये थे, तुमने कुछ पराजयों का सामना किया था, और फिर प्राप्ति भी की थी। उसी तरह तुम अब भी प्राप्ति कर लोगे। इससे तुम्हें भीतरी शक्ति मिलती है, जिस की उस समय ख़ास आवश्यकता भी होती है।
ये एक सेलफ़ोन के जैसा है। सेलफ़ोन के लिये आपको एक सिम कार्ड चाहिये, ठीक है ना? और बैटरी भी चार्ज होनी चाहिये, और नियंत्रक टावर से नज़दीकी भी होनी चाहिये (हंसी)। रेंज के भीतर होना चाहिये। इन में से एक की भी कमी रह जाये तो आप फ़ोन मिलाते रहिये, हेलो कहते रहिये, पर कोई जवाब नहीं आयेगा।
प्रश्न : आध्यात्म की लगन को जैसे जागृत रखें, उसे दैनिक दिनचर्या में बुझने से कैसे बचायें? बिना अपनी ज़िम्मेदारियों से मुंह मोड़े अपने आप में आध्यात्म को कैसे जागृत रखें? एक आत्मज्ञानी होने के नाते से आप हमें क्या सलाह देंगे? आपने जो कहा, मुझे बहुत सुंदर लगा – खुशियां बांटों, स्वाभाविक, सादा जीवन, और दान।
श्री श्री रवि शंकर : मैं तुम्हें तीन सलाह दूंगा। पहली तो ये कि अपने साथ कुछ १०-१५ मिनट बिताओ – तुम्हें क्या चाहिये? ये जीवन क्या है? मैं ५०-६० साल पहले कहां था और आने वाले ५० सालों में कहां होऊंगा? मैं कहां से आया हूं? मैं क्या हूं?
तुरंत ही किसी जवाब की तलाश में मत रहो। खुद से ये प्रश्न करना कि, ‘जीवन क्या है?’ भी चेतना को ऊर्ध्वगामी बनाता है। इसे मैं ज्ञान कहता हूं। कुछ समय ज्ञान के साथ रहते हुये तुम कुछ किताबें पढ़ सकते हो जैसे कि योग वाशिष्ठ, अष्टावक्र गीता, या भगवद गीता। किसी भी अच्छे ज्ञान की किताब से कुछ पंक्तियां पढ़ो। और फिर १०-१५ मिनट का ध्यान करो।
अब हम सब थोड़ी देर के लिये ध्यान करेंगे।
एक १०-१५ मिनट के ध्यान से ही तुम में इतनी स्फूर्ति आ जायेगी की दिमाग़ और शरीर तरोताज़ा हो जायेगा। बहुत बढ़िया!
और तीसरी बात – कुछ सेवा कार्य करो। अपनी दिनचर्या से हट कर किसी के भी लिये कुछ सेवा कार्य करो। चित्रकला या संगीत के साथ कुछ समय बिताओ। ये तीनों चीज़ें करने से तुम्हें पूर्णता का अनुभव होगा और तुम तनाव से दूर रहोगे।
पिछले महीने तुमने News 24 चैनेल पर एक कार्यक्रम देखा होगा जिसमें महाराष्ट्र में नान्देद के पास काठियावाड गांव के बारे में बताया गया था। हमारे एक शिक्षक वहां गये, और तीन महीने उस गांव में रहे। उन्होंने पूरे गांव का कायापलट कर दिया। ७०० परिवार!
इस गांव में सभी ने अपने दरवाज़ों से ताले हटा दिये हैं। और वहां एक दुकान है जहां कोई दुकानदार नहीं है। लोग सामान लेते हैं और एक डिब्बे में पैसे डाल देते हैं। वह गांव बहुत ही स्वालंबी है। गांव में सभी ने जैविक खेती को अपनाया है।
रोज़ सभी लोग मिलकर सत्संग में गाते हैं। जाति पाति की सभी ताख्तियां हटा दी हैं। और यहां इस देश में फिर से जाति को राष्ट्रीय जनगणना में शामिल करने की बात हो रही है! इस गांव में सबसे पहले उन्होंने जाति की तख्तियां हटा दी – दलित, क्षत्रिय, ब्राहमण – सभी तख्तियां हटा दी।
भारत सरकार ने भी उस गांव को पुरुस्कृत किया। ये गांव अपराध-मुक्त है। ये गांव पहले बहुत ही बदनाम हुआ करता था, यहां अपराध के बहुत वाक्ये होते थे। आज, तीन सालो में ये गांव एक स्वालंबी गांव है। सभी के पास पानी है, सड़के हैं, हर घर में शौचालय है, और धूम्ररहित चूल्हे हैं। बहुत ही सत्यपरायण गांव है। इस गांव से ११८ गांवों ने प्रेरणा ली है।
इस गांव में एक भी व्यक्ति शराब-तंबाकू का नशा नहीं करता है। सभी ने शराब, तंबाकू, और नशीली ड्रग्ज़ को छोड़ दिया। इससे शिक्षकों और कार्यकर्ताओं में नई स्फूर्ति आ गई। महात्मा गांधी ने जिस रामराज्य का सपना देखा था, वो संभव है। जहां कोई डकैती ना हो, अपराध ना हो – आज ये संभव है। आप इस गांव के बारे में यूट्यूब में देख सकते हैं।
मेरी इच्छा है कि हम ऐसा कई गांवों में करें - अगर विभिन्न कौरपोरेट कंपनियां १०-१० गांव की ज़िम्मेदारी ले लें। इसमें ज़्यादा खर्च नहीं है। ये सिर्फ़ लोगों को शिक्षित करने की बात है, जागरूक करने की बात है साफ़ सफ़ाई के बारे में। अब वहां हर घर गुलाबी रंग का है।
Saturday, 21 August 2010
"बिना किसी के प्रश्न पूछे जवाब ना दें"
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