Tuesday, 17 August 2010

हमें जाग कर देखना ये है कि ये ग्रह हमारा घर है"



प्रश्न : गुरुजी, मैं एक साल का संकल्प लेने की क्षमता नहीं रखती हूं। मैं क्या करूं?

श्री श्री रवि शंकर :
क्षमता नहीं रखती हो? एक एक दिन कर के चलो। तुम एक दिन के लिये एक संकल्प ले सकती हो, तो इतना काफ़ी है। हरेक दिन तुम ऐसा कर सकती हो। ये मत सोचो, ‘हे भगवान! एक साल तक मुझे ये करना है!’ आज मैं कर रही हूं – ये अच्छा है। कल मैं करूंगी – ये अच्छा है।

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, मैंने बहुत प्रार्थना की थी कि आप इस हफ़्ते यहां आयें। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। मैं बहुत आभारी हूं। प्रार्थनाओं के बारे में हमें कुछ बताइये।

श्री श्री रवि शंकर :
जब तुम बहुत अभारी महसूस करते हो या एकदम लाचार महसूस करते हो, तब प्रार्थना का जन्म होता है। प्रार्थना के उदय होने का तीसरा कारण है, जब तुम ज्ञान में स्थित होते हो। तब तुम देखते हो कि चेतना का विस्तार हुआ है, तुम चेतना के एक नये आयाम तक पंहुचे हो, जो कि पूर्णता लिये हुये है और अंतर्ज्ञान, ज्ञान और प्रेम से भरा हुआ है।

प्रश्न : कृपया रिश्तों के बारे में बताइये – कई बार ये इतने मुश्किल क्यों हो जाते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम्हें एक बार फिर ‘Celebrating Love’ पुस्तक पढ़नी चाहिये। तुम्हें क्या लगता है कि रिश्तों में मुश्किलें क्यों आती हैं?

प्रश्न : मुझे अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करना नहीं आता है। चूंकि मैं अपनी भावनाओं को छुपाने का प्रयास करता हूं, मुझे तनाव हो जाता है। मुझे नहीं पता कि मैं इस स्थिति से कैसे निबटूं। क्या आपके निर्देशों के अनुसार ध्यान करने पर भी मन को ख़ाली करना मुश्किल है?

श्री श्री रवि शंकर :
अगर तुम्हें बहुत विचार आते हैं, तो इसके कुछ कारण हैं। एक कारण तो ये है कि अगर तुम्हारा पेट साफ़ ना हो, पेट ख़राब हो, कब्ज़ियत हो, तो मन में बहुत विचार आते हैं। अगर शरीर में रक्त संचार सुचारू रूप से नहीं हो रहा है, तब भी विचार बहुत आते हैं। है ना? तो, योगासन और प्राणायाम से तुम्हें मदद मिलेगी। सही आहार से मदद मिलेगी। किसी आयुर्वेदिक डौक्टर को देखाओ। वो बतायेगा यदि तुम्हारे शरीर में पित्त अधिक है तो तदनुसार उपयुक्त भोजन से मदद मिलेगी।

प्रश्न : ऐसे लोगों के साथ कैसे काम करूं जिनमें अक्रामकता, ईर्ष्या तथा असंतुलन जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियां हो?

श्री श्री रवि शंकर :
कुशलता से। उनके बर्ताव पर प्रतिक्रिया करते हुये करुणा का प्रयोग करो और देखो कि तुम उनके साथ कैसे काम कर सकते हो। हां? इससे पहली बात तो ये होगी कि तुम्हारी कुशलता बढ़ेगी। दूसरे ये कि तुम्हारा धैर्य बढ़ेगा। तीसरी बात ये है तुम ये जान जाओगे कि व्ह व्यक्ति हर समय ईर्ष्यालु या गुस्से मेम नहीं होता है। वह भी बदलता है! तुम ये देख कर अचरज करोगे कि कैसे लोग बदलते हैं।

प्रश्न : बच्चे जैसे बन जाना और ज़िम्मेदारी लेना, इन दोनों बातों में क्या साम्य है?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम ज़िम्मेदारी लेते हो, ये एक बात हुई। बच्चे जैसा होने से ज़िम्मेदारी लेने में कोई ख़लल नहीं पड़ता है। बल्कि इससे तुम्हें ज़िम्मेदारी लेने में मदद ही मिलती है।

बचकाना होने में और बालवत होने में क्या अंतर है? बचकानेपन में तुम ज़िम्मेदारी नहीं लेते हो! बालवत होकर ज़िम्मेदारी लेते हो, तुम स्वाभाविक रहते हो, सबसे तालमेल में रहते हो, सबकी प्रतिक्रिया मांगते हो, और अगर कोई प्रतिकूल प्रतिक्रिया हो तो तुम उस आलोचना से परेशान नहीं हो जाते हो। हमें आलोचना का सामना करना चाहिये। अगर आलोचना सार्थक है तो उसे स्वीकार करो, और अगर वह निरर्थक है तो बिना अपना आपा खोये उसे नज़रंदाज़ कर दो।

प्रश्न : ये कितना आवश्यक है कि हम इस ग्रह के लिये काम करें? हम क्या कर सकते हैं? हम इसे कैसे बनाये रख सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर
: हमें इस ओर जागरूक होना है कि यह ग्रह हमारा घर है। जब आप ऊपर जाते हैं तो आप विभाजन रेखायें नहीं देखते हैं। विभाजन रेखायें हमारी समझ की सीमा है, हमारा भ्रम है। असलियत में कोई विभाजन रेखा नहीं है। आकाश कोई विभाजन रेखा नहीं जानता। बादल कोई सीमा नहीं जानते। हवा कोई सीमा नहीं जानती है। इस पृथ्वी के पंचतत्व, विभाजन रेखायें नहीं जानते हैं। ये ग्रह सभी का घर है। हम सब एक ही परिवार हैं, इसलिये हमें बृहद दृष्टिकोण रखने की आवश्यकता है। सही दृष्टिकोण क्या है? ये कि ये पूरा ग्रह हमारा है।

हम अपना पणमाणु कचरा किसी और स्थान पर नहीं फेंक सकते हैं। दुनिया में कोई भी स्थान हो, पर वह वापस हमारे पास ही पहुंचेगा! हम किसी एक स्थान को सीमाबद्ध कर के साफ़ सुथरा नहीं बनाये रख सकते हैं। ऐसा संभव ही नहीं है। हमे पूरे ग्रह की ही देखभाल करनी है। हमें पूरी दुनिया को जैविक खेती की ओर ले जाना है। जब भोजन या अन्न उगाने की बात हो तो आप ये नहीं कह सकते हैं कि, ‘ठीक है, मैं केवल यहां ही जैविक खेती करूंगा, बाकी दुनिया में रसायनों से प्रदूषण होने दो!’ क्योंकि, हवा से प्रदूषण तो सभी जगह पहुंचने वाला है! हमने प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कर के बहुत से वाइरसों को जन्म दिया है। हमने पृथ्वी पर कई जीव लुप्त कर दिये हैं। हमने पृथ्वी की देखभाल नहीं की है, जिसकी वजह से भोजन का उत्पादन बहुत कम हो गया है। आने वाली पीढ़ी को इस से बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।

मुझे लगता है कि इस ग्रह पर हरेक व्यक्ति को पृथ्वी को प्रदूषण से मुक्त करने की, पृथ्वी को बनाये रखते हुये विकास करने की, जलाशयों और जल के संरक्षण की तथा और अधिक वृक्ष लगाने की ज़िम्मेदारी लेनी होगी। ये बहुत आवश्यक है!

विश्व की एक और बड़ी समस्या है जल की कमी। लाखों लोग भुखमरी की कगार पर हैं! हमें पूरे विश्व पर दृष्टि रखते हुये पूरे विश्व का ही ध्यान रखना चाहिये। हां, हमें अपने घर, अपने आस पड़ोस, जिस जगह हम रहते हैं, उसका तो ख़्याल रखना ही है। ये सबसे ज़्यादा ज़रूरी है, पर साथ ही हमें ये ध्यान रखना चाहिये कि इस ग्रह पर हर कोई एक ही परिवार का अंग है।

प्रश्न : क्या ये संभव है कि हम प्रेम भी करें और भीतर से मज़बूत भी रहें, प्रेम भी करें और तर्कसंगत भी रहें, प्रेम भी करें और वैराग्य में भी रहें, प्रेम भी करें और ईर्ष्या और परिग्रह से दूर भी रहें?

श्री श्री रवि शंकर : यक़ीनन। अगर ज्ञान है, तो ये संभव है कि तुम प्रेम भी करो और इन नकरात्मक भावों से दूर भी रहो। ज्ञान के साथ प्रेम का होना आनंदमय है। अगर प्रेम के साथ ज्ञान ना हो, तो वो सब होता है जो तुमने अभी कहा – ईर्ष्या, लालच, इत्यादि।

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, क्या आप मेरा मार्गदर्श्न करेंगे – मैं जिस व्यक्ति से एक साल से प्रेम करती आई हूं, क्या वो मेरे लिये सही व्यक्ति है?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम किसी से गहरा प्रेम करती हो तो वह व्यक्ति अभी के लिये ठीक ही होगा। पर वह भविष्य में भी तुम्हारे लिये ठीक होगा, ये तो कोई नहीं कह सकता है। ये तुम पर निर्भर करता है कि तुम स्थिति को कैसे संभालती हो! तुम किसी से प्रेम करती हो, पर पहले ये पता लगाओ कि क्या वो भी तुम से प्रेम करता है। अगर वह व्यक्ति भी तुम से प्रेम करता है तो तुम दोनों मिल कर ज्ञान को साथ रख कर देखो कि इस प्रेम को कैसे बनाये रखोगे – कैसे आगे चलोगे, कैसा बर्ताव करोगे, इत्यादि। ठीक है?

प्रेम की शुरुवात बहुत सरल होती है, पर कई लोग प्रेम को बनाये रखना नहीं जानते हैं।
किसी को तुम से प्रेम हो जाये और तुम्हें उसे स्वीकार करना, उसे पुष्ट करना ना आये तो उस प्रेम को खो देते हो। ‘Celebrating Love’ किताब में मैंने उस कौशल के बारे में बताया है जिससे तुम प्रेम को संजो सको।

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