Tuesday 17 August 2010

तुम में इच्छायें हों, पर तुम इच्छाओं से नियंत्रित ना हो जाओ"

बाद अन्तौगस्त, जरमनी
८ अगस्त, २०१०

राष्ट्रों ने बहुत हानि पंहुचायी है।
बम - इराक़ पर टनों बम बरसाये गये, जिनसे कि लोगों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ा है।
ऐसबेस्टस – दुनिया भर में ऐस्बेस्टस के प्रयोग हो रहा है जिससे कि बहुत हानि हुई है।
और आजकल के सेलफ़ोन! – कहते हैं कि सेलफ़ोन और उनके ताररहित खंभे इतनी रेडियशन दे रहे हैं जिसे मनुष्य सहन नहीं कर सकते हैं। शहरों से पक्षी ग़ायब होते जा रहे हैं! गौरया चिड़िया को आप जानते हैं? पहले, शहरों में गौरया चिड़िया होती थी। बैंगलोर में भी लोगों के घरों में गौरया चिड़िया आती थीं। वे आकर घर में या घर के आस पास अपने घोंसलें बनाती थीं। आज एक भी गौरया नहीं दिखती है। हां, आश्रम में बहुत सारी चिड़िया आती हैं, क्योंकि वह शहर से और उन ऊंचे ताररहित खंभों के जंगल से दूर है।

इस रेडियेशन तथा हमारी जीवनशैली की वजह से बहुत सी स्वास्थ्य की समस्यायें पैदा होती हैं। हम ठीक से व्यायाम नहीं करते हैं। और भोजन! कीटनाशक, रसायन, होर्मोन! जानवरों में, भोजन में सुई द्वारा होर्मोन्ज़ डाले जाते हैं! तो, कई मुद्दे हैं। हर चीज़ पर तुम्हारा नियंत्रण नहीं है। तुम केवल कुछ ही चीज़ें नियंत्रित कर सकते हो। साथ ही तुम ये भी जानते हो कि तुम्हारे शरीर में ताक़त है, रोग प्रतिरोधक शक्ति है तथा प्रकृति का सहयोग है, इसलिये तुम इन स्वास्थ्य समस्याओं से निबट लोगे।

और, एक ना एक दिन हमें जाना ही है, कोई और रास्ता नहीं है। ऐसा सोच कर परेशान होना, ज्ञान का लक्षण नहीं है।

तुम सभी को एक दिन जाना है, भले ही स्वस्थ हो या बीमार। ऐसा नहीं है कि केवल बीमार लोग ही मरते हैं। स्वस्थ लोग भी मरते हैं। ये तय बात है। तो, कोई बीमारी आती है तो हम सावधानी से उससे निबटते हैं। जो भी करने की आवश्यकता होती है, हम करते हैं। पर इतना ही। बीमारी के बारे में सोचते मत रहो, ना ही दिन भर उस के बारे में बात करते रहो। इससे तुम्हारी ऊर्जा कमज़ोर पड़ जाती है! और तुम्हें लोगों पर तरस नहीं खाना चाहिये, ‘ओह, तुम कितने बेचारे हो! तुम्हें ये समस्या है, तुम्हें वो समस्या है...’

छोड़ो भी! आत्मा को कोई बीमारी नहीं है, कोई समस्या नहीं है, कोई मृत्यु नहीं है। पर शरीर के आथ तो हर समय कुछ ना कुछ लगा ही रहता है। कभी उसे कोई छोटी मोटी बीमारी हो जाती है तो कभी कोई बड़ी बीमारी हो जाती है। पर उससे निबटा जा सकता है। शरीर बीमारी से लड़ लेगा, है ना?

प्रश्न-उत्तर

प्रश्न : मैं इच्छाओं के बारे में जानना चाहता हूं, और ये कि हमें इच्छाओं के साथ क्या व्यवहार करना चाहिये? मुझे लगता है कि मुझे इच्छाओं में नहीं जीना चाहिये, पर मैं बहुत कुछ प्राप्त करना चाहता हूं, या खुद को किसी व्यक्ति के प्रति आकर्षित पाता हूं। अगर इच्छा ही ना हो, तो जीवन में कुछ भी करने की उमंग कहां से आयेगी? धन्यवाद।

श्री श्री रवि शंकर :
ठीक है, इच्छायें रखो। किसने मना किया है? तुम में इच्छायें हों, पर तुम इच्छाओं से नियंत्रित ना हो जाओ। घुड़सवारी करते हुये तुम्हें घोड़े पर नियंत्रण करना है ना कि घोड़े से नियंत्रित होना है। अगर तुम घोड़े के नियंत्रण में हो जाओ तो ये मुसीबत वाली बात है।
मुल्ला नसरुद्दिन की एक कहानी है। वो एक घोड़े पर सवार था और घोड़ा एक ही जगह पर चक्कर लगा रहा था! तो, लोगों ने पूछा, ‘मुल्ला, कहां जा रहे हो?’ वो बोला, ‘मैं क्या जानूं, घोड़े से पूछो!’

हम भी अपने जीवन में अक्सर इसी स्थिति में होते हैं। हमारी इच्छायें हम पर सवार हो जाती हैं और हमें बर्बाद कर देती हैं। बल्कि होना यूं चाहिये कि तुम में इच्छायें तो हों, पर तुम जब चाहे उन्हें छोड़ सको, और जब चाहे उन्हें धारण कर सको! तुम जब चाहे घोड़े पर चढ़ सके और जब चाहे घोड़े से उतर सको, बजाये इसके कि घोड़े की पीठ पर ही तुम फंस जाओ, या जब चाहे घोड़ा तुम्हें नीचे गिरा दे! ठीक है? नहीं तो घोड़े पर बैठना दुखदायी है।

प्रश्न : कुछ आर्ट आफ़ लिविंग कोर्स करने के बाद मैंने बहुत खुशी महसूस की! मुझे ऐसे लगा कि मैं खुशी से फूल कर फट जाऊंगा! कुछ समय बाद मुझे लगा कि उस खुशी के साथ एक किस्म का ज्वर था, तब मैं दुखी हो गया। ये एक भावनात्मक चक्करघिन्नी की तरह था। मैं ज्वर को संभालूं?

श्री श्री रवि शंकर : तुम पहले ही इस के दृष्टा बन गये हो। तुमने देखा कि तुम एक भावनात्मक चक्करघिन्नी पर हो। तुम देख रहे हो कि तुम्हारे भाव आ रहे हैं और जा रहे हैं। ग़ौर करो, भाव पहले भी आते जाते थे, पर अब ऐसा धीरे धीरे कम होता जा रहा है। पहले तुम इसके प्रति सजग नहीं थे। अब कम से कम तुम भावों के इस आवागमन के प्रति सजग तो हो। इस पथ पर चलने से, इस ज्ञान में रहने से तुम मज़बूत बनते जाते हो। हां!

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, अपने पिता की नकरात्मकता देख कर मुझे बहुत दुख होता है। जितना ही अधिक मैं और मेरे भाई बहन आध्यात्म की ओर जाते हैं, उतना ही उन्हें कष्ट होता है। उन्हें लगता है कि हमने जीवन में कुछ हासिल नहीं किया है। हम में से किसी ने भी विवाह नहीं किया है, और उन्हें पोते पोतियों को देखने की इच्छा है। उनका कष्ट देखा नहीं जाता। ईश्वर ने मुझे ज़रूरत की हर चीज़ दी है। मैं अपने माता पिता की मदद कैसे करूं?

श्री श्री रवि शंकर :
मेरी शुभकामना और आशीर्वाद है! जितना हमसे हो सके हमें करना चाहिये। कभी कभी बहुत कुछ करने पर भी माता पिता दुखी ही रहते हैं। तब हम जान नहीं पाते कि उन्हें आशीर्वाद दें, या उनकी मदद करें।

उनके साथ अच्छा समय बिताओ। उन्हें हर समय पढ़ाओ मत कि उन्हें क्या होना चाहिये, क्या करना चाहिये, उन्हें आध्यात्मिक होना चाहिये, क्योंकि तुम भी आध्यात्मिक हो, इत्यादि। उन्हें ऐसे प्रवचन मत दो।

तुम्हें पता है कि बुज़ुर्ग लोग सिर्फ़ तुम्हारा साथ चाहते हैं। जब तुम उनके साथ रहते हो तो बस गाओ, खेलो, हंसी मज़ाक करो, उनके साथ में भोजन करो, उनसे उनकी रुचि की बातें करो। उन्हें तुमसे ज्ञान की बातें सुनने में, या कोई नई प्रणाली सीखने में रुचि नहीं होती। अपने बुज़ुर्ग माता पिता के साथ साथ अध्यापक जैसा व्यवहार मत करो। बीच बीच में ज्ञान की कुछ बात करो, और देखो कि क्या वे उसमें रुचि दिखा रहे हैं या उसे ग्रहण कर रहे हैं। वर्ना, केवल उनके साथ समय बिताना ही काफ़ी है।

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, मेरे लिये अपना मुंह बंद करना आसान है, पर अपने विचारों को बंद करना आसान नहीं है। कृपया मेरी मदद कीजिये।

श्री श्री रवि शंकर
: तुम्हें कुछ करने की ज़रूरत नहीं है। यहां तुम्हारे लिये सब कुछ किया जा रहा है। हिरेन सभी कोर्स ले रहा है। वह तुम्हें अलग अलग समय पर अलग अलग ध्यान तथा प्रक्रियायें करायेगा, और स्वतः ही तुम्हारे मन के विचार शांत हो जायेंगे। इसीलिये तुम्हारा यहां होना ज़रूरी है। शुरु में Hollow and empty – तुम्हारा अडवांस कोर्स, तुम्हें कुछ कठिन लगेगा, पर उस में आगे जाओगे तो निश्चित ही वो तुम्हें बहुत उपयोगी लगेगा।

प्रश्न : स्थिति को स्वीकार करना और उसे बदलने के लिये क्रिया के बीच विभाजन रेखा कहां आती है?

श्री श्री रवि शंकर
: कोई विभाजन रेखा नहीं है। ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, आप ही मेरे गुरु हैं, और मैं आपसे बहुत प्रेम करता हूं, और जहां आप जाते हैं, मैं भी जाता हूं। पर फिर भी मैं व्यक्तिगत रूप से बहुत दूरी महसूस करता हूं। कभी कभी मुझे डर लगता है। ये मुझे समझ नहीं आता है। ये एक प्रश्न नहीं है, पर क्या आप इस पर कुछ कहेंगे?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम्हें पता हम विभिन्न भावों से गुज़रते हैं। हम किसी को पसंद करते हैं, और फिर उसी व्यक्ति को नापसंद करते हैं। हम किसी पर विश्वास करते हैं, फिर उसी पर शक करने लगते हैं। तो विभिन्न भाव आते जाते रहते हैं। उनसे डरो नहीं। ये सभी भाव तुम्हें भीतर से एक बहुत मज़बूत व्यक्ति बनाते हैं। जब तुम जान लेते हो कि ये सभी भावनायें आती जाती रहती हैं, परिवर्तनशील हैं, और तुम उनसे कहीं बड़े हो, तब तुम मज़बूत और केन्द्रित हो जाते हो। किसी भी भावना में अटक मत जाओ, या उसे मन में एक सिद्धांत के रूप में ना बांध लो।

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, मैं क्या कर सकता हूं जब मैं किसी को बहुत काम कर के अपने शरीर और भावनाओं को बीमार बनाते देखती हूं? वे मुझ से उम्र में बहुत बड़ी हैं, और मैं उन्हें बहुत प्रेम और सम्मान देती हूं। उन्हें देख कर मुझे बहुत दुख होता है।

श्री श्री रवि शंकर : देखो, चाहे कोई काम करे या ना करे, बीमार तो हो ही सकता है! इस पृथ्वी पर आलसी लोग भी हैं जो बीमार हो जाते हैं। वे ज़्यादा बीमार होते हैं, क्योंकि उनका मन बीमार है, और शरीर और अधिक बीमार हो जाता है! तुम्हें काम को बीमारी से जोड़ने की आवश्यकता नहीं है। कुछ लोग स्वास्थ्य के प्रति इतने सजग रहते हैं, फिर भी बीमार हो जाते हैं! तो, बीमारी किसे एक वजह से नहीं आती है। बीमारी के कई कारण हो सकते हैं। एक कारण तो है पिछले कर्म, पिछ्ली छाप। दूसरा कारण है, प्रकृति के नियमों का उल्लंघन। तीसरा कारण है जेनेटिक, या परिवार में जन्म से मिली बीमारी।

कभी कभी तुम समय से सोती नहीं हो, खाती नहीं हो, और शरीर से अधिक काम लेते हो, उससे अधिक काम करवाते हो - हां, ये भी एक कारण है।

फिर, पृथ्वी का पर्यावरण भी बीमारी का एक कारण हो सकता है। देखो, अमरीका, गल्फ़ आफ़ मेक्सिको के सागर में तेल रिसने से कितना नुक्सान हुआ है!

‘मुझे इस दुनिया से जो थोड़ा बहुत चाहिये, मैं उसे लेकर तृप्त हो जाऊं। और मैं दुनिया को क्या दे सकता हूं, इस ओर मेरी दृष्टि हमेशा रहे।’ – यही सफलता की कुंजी है। तुम इस भाव में रहो कि, ‘मैं दुनिया के लिये और अधिक क्या कर सकता हूं, और कम से कम लेकर कैसे जीऊं।’ मैं ये नहीं कह रहा हूं कि सब कुछ छोड़ कर गरीबी में रहो। नहीं नहीं, तुम आराम से रहो, संपन्नता में रहो। पर अधिक मांग, मन की गरीबी दर्शाती है।

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, क्या ये सच है कि शिक्षक आपको अधिक प्रिय हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
बिल्कुल नहीं। अगर उन्होंने तुम्हें ऐसा जतायाअ है तो उनकी इस बात पर विश्वास मत करो। मुझे सभी प्रिय हैं, चाहे हो वे शिक्षक हों, या ना हों, चाहे वे आर्ट आफ़ लिविंग में हों, या ना हो। कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मुझे सभी प्यारे हैं। पर, अगर तुम आर्ट आफ़ लिविंग में हो तो तुम मुझ से अधिक प्राप्ति करते हो, बस इतना ही है।

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, मेरे पास शब्द नहीं हैं जिनसे मैं आपके प्रेम और संरक्षण के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रगट कर सकूं। मुझे लगता है जैसे आपने मुझे अपनी हथेली पर उठा रखा है। आप मुझे प्रेम करते हैं। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। मैं हमेशा आपकी आज्ञा पालन करने के लिये उपस्थित हूं।

श्री श्री रवि शंकर :
बहुत बढ़िया। मुझे तुम सब की आवश्यकता है। तुम में से हरेक बहुत क़ीमती है – तुम सब ने ज्ञान का दीपक आने वाली पीढ़ियों के लिये जला कर रखा है। तुम सब, तनाव में, हिंसा में, निराशा में डूबती हुई दुनिया के लिये ज्ञान के स्तंभ हो। तुम सब का योगदान बहुत ही महत्वपूर्ण है धर्म के, ज्ञान के संरक्षण के लिये। तुम सब को ये ज्ञात हो कि तुम सभी क़ीमती हो, और जीवन के उत्थान के लिये, विश्व को बेहतर बनाने के लिये कार्यशील रहो।

No comments:

Post a Comment